खाज अर राज
खाज खाज ई हुवै अर राज राज ! पण फेर ई दोनूंवां री परकीरती, ढंगढाळै अर रीत-नीत मांय इतणो मेळ है कै लागै स्यात आं री चोभ मांय किण ई भांत री दुभांत कोनी। अेक ई पाणी सूं सींचिजै दोनूं।
मानां कै राज मांय किण ई हद तांई गुमेज बापर आवै पण इण सूं अळगो ओ बी अेक साच है कै राज मांय जको मजो हुवै उण नै किण ई सबदां री सींव मांय कोनी बांध्यो जा सकै। गूंगै रो गुड़ हुवै ओ मजो ! अैन खाज रै मजै दांई ! खाज मांय मिनख जिंयां जिंयां आपरै डील नै कुचरतो जावै ओ मजो और ई बधतो जावै। खुरड़तां-खुरड़तां चामड़ खुरड़ीजै भलां ई पण खाज रो मजो खतम कोनी हुवै। केई-केई तो लाई हाथां नुंवां सूं ई कोनी सारै, छुरियो का दांती सूं बी लाग जावै।
बियां आ तो थे पकायत ई मानता हुयसी कै जे किण चीज मांय खास रस का मजो नीं हुवै तो बा घणै बखत तांई चायिजती कोनी रैय सकै। मिनख रो ओ सुभाव हुवै है कै बो किण ई अेक थिति, किण ई अेक मिनख का किण ई अेक चीज सूं उतावळी ई थक-अक जावै। हां.. जे लोक-लिहाज सूं का ठड्डो कर`र कीं धिकावणो ई चावै, तो ई दो-च्यार पांवडा धकै बध`र पग फ्या देवै। पण खाज अर राज सारू आ बात लागू कोनी हुवै। राज रो चस्को अेकर लाग्यो अर लाग्यो। पछै पाछ कोनी देवै। बियां तो आपणै अठै साठ साल री उमर पछै सरकार नौकरी सूं रिटायर ई कर देवै पण राज मांय रैवण री कोई उमर तै कोनी। 'साठी बुध न्हाठी` हुवै तो हुवो भलां ई। नाड़ हालण लागै तो लागो भलां ई। सूझणो-बूझणो नीं हुवै तो नीं सई। राज कोनी छोडिजै। हुंवण नै तो इण देस मांय 'लोक तन्त्र` है। लोक रो तंत्र है तो लोक नै बांधण रा आंटा ई घणा है। 'आरक्षण` री लाव सूं तकड़ी जेवड़ी और कांई हुय सकै ही! अर इंयां सगळां सारू राज रो मजो 'संवैधानिक` हक हुयग्यो। पण हक हुयां सूं कांई हुवै ! मजा तो लेवणिया ई लेयसी। जका अेकर राज रै चौभींतै मांय बड़ग्या, पूठा जावण रो बै तो नांव लेवै आथ नीं। लागू करता रैवै आरक्षण मोकळो। थांनै-म्हनै कांई ठाह ! ओ ई तो बां रो आंटो है। सांप ई मर जावै अर लाठी ई नीं टूटै। कांई हुयो जे आरक्षण रै तांण किण ई दूजै नै राज रै इण चौभींतै मांय बाड़ लियो। असल मांय बां रै मगरां माथै हाथ तो आं रो ई है। नींतर बां नै कांई ठाह राज किण नै कैवै। बांदर रै हाथ मांय दे देवो नारेळ ! दड़ी बणाय`र रूड़ांवतो भलां ई रैवै। मजाक है फोड़`र खा लेवै ! बीं लाई नै कांई ठाह फोड़`र खावण रो मजो ? नारेळ तो फोड़णिया ई फोड़सी। मजा तो लेवणिया ई लेयसी। राज तो करणिया ई करसी। राज रो कांई ! राज तो बेटा, पोता, रिस्तेदारां अर अठै तांई कै आपरै कारू-कुरबां तकात रै मिस ई हुय जावै। पण राज हुवै आं रै कनै ई है।
कांई कैयो... सरम ? सरम किण री सा ! अर संको किण बात रो ? आ बात तो थे-म्हे ई सोच सकां हां जकां नै नां तो राज रै मजै रो ठाह अर नां खाज रै ! खाज करतां करतां तो मिनख इतणो मगन हुय जावै है जाणै आखी धरती माथै बीं सूं दूजो और कोई नीं है। गळी बगतां, दफतर मांय काम करतां, रिस्तेदारी मांय, घर मांय, आंगणै-बारणै मांय, छोरी छापरी अर टाबरां तकात रै साम्ही ई खाज करतो मिनख इस्यो रम जावै है कै हाथां-पगां री तो छोडो, कदे कदे तो नीं बतावणजोग जिग्यां ई कुचरण लागै तो कुचरतो ई जावै। कुचरतो कुचरतो जाणै किण ई दूजै लोक मांय जा पूगै। साम्ही कुण बैठ्यो है कुण नीं, दर ई होस नीं रैवै।
असल मांय खाज रो मजो ई इस्यो हुवै, इण मांय बिच्यारै मिनख रो कांई खोट ! खोट है कुदरत रो। जकी किण किण ई चीज नै इतणी रसाळ बणा देवै है कै छोडण रो जी ई कोनी करै। खाज करतो-खुरड़तो मिनख भलां ई लोही-झार हुय जावै। राज करतो-भोगतो मिनख, भैंस रा गाय तळै अर गाय रा भैंस तळै करतां, धोळां नै काळा करतां अर काळां नै धोळा करतां-करांवतां छेकड़ धोळां मांय धूड़ गेर लेवै पण राज अर खाज रो मजो.....? ओ हो...हो....छोड देवो थे बात ! इस्यै मांय किंयां छुटै राज अर किंयां छुटै खाज ! आपां तो आ ई कैय सकां कै अै दोनूं भागी रै ई हाथ आवै।
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