Saturday, October 13, 2012


  बनवारी नै कुण मार् यो 




जिनगी अर मौत बिचाळै एक  पड़दौ हुवै। झीणौ-सोक । जको  नीं सरकै  इत्तै भींत जिस्यौ काम करै अर सरक्यां? दिन...महीना अर बरसां रौ फासलौ पल-छिन मांय सांवटीजै।
म्हैं बनवारी री बात करूं..........बनवारी स्याग री। स्यात थे उण नै जाणौ कोनी। पंचोटियौ मिनख है। साढी छै फुट रौ डील। तड़ींग-सौ। सफाचट मूंडौ अर कलफ गेरेड़ौ चोळौ-पजामौ। ऊमर पैंताळीस रै लगैटगै। गामै कठैई रोळौ-बेदौ हुवै तौ भाजनै बनवारी नै बुलाइजै। किण ई गरीब-गुरबै री छोरी रौ ब्याव नीं हुंवतौ लागै तौ बनवारी रौ बटुऔ त्यार। थाणेदार-बीडीऔ आवै तौ बनवारीआळै घरां। गाम तौ गाम, गुवांड मांय ई चौगड़दै बनवारी ई बनवारी हौ। एक  गेड़ै सरपंच ई रैय लियौ, पण कोई मोद नीं। वा ई आ-बैठ, वा ई मनवार। बिंयां’स राम री मेर ही। सत्तर बीघा जमीन। खूडोखूड भीजै। मांय बीजळीआळौ ट्यूबैल न्यारौ। दाणा कांकरा  ज्यूं भेळा करै। दौ ई भाई। आगड़ा ठाठ हा।
बूढिय़ौ तिसळ्यौ तौ दोनूं भाई न्यारा हुयग्या। बिंयां बूढियै रै जींवतां थकां ई दौ आंगणवाई बणा ली ही बनवारी। दोनू आंगणां बिचाळै कड़-सूदी भींत। लुगाई-पता कड़ पाधरी करै तौ कीं ओट रैय जावै। न्यारा हुया तौ पुराणियौ आंगणौ छोटियै भाई श्योंदै रै अर नुंवोड़ौ बनवारी रै पांती आयौ। हां... बिचाळै री भींत अबार ई बिंयां ई ही।
बनवारी म्हारौ लंगोटियौ हौ। घूतौ-गिंडी अर कुरां री बातां जाणै काल री-सी लागै। बांकळी कींकर रै थोथै पेडै सूं तोतै रा बचिया काढतां थकां गिट्योड़ी आखी दुपारी हाल ई आंख्यां मांय तपै। कींकर री सूळां सूं पिंडी  अर साथळ बींधिज जांवती पण वां दिना रौ बी एक नसौ हुवै। गोडा-अकुणी छुलै तौ छुलौ भलां ईं। छेक·ड़ खरखोदरै मांय हाथ घाल बचिया काढ ई लेंवता। केई ताळ तांईं कींकर हेठै बैठ्या रैंवता। बचियां साथै रमता। वां रै कवळै-कवळै डील नै परसता। दिन कद मांयकर ढळ जांवतौ, ठाह ई कोनी लागतौ। दोनुवां री निजरां मिलती अर घरां चालण री मून बात  हुंवती। बनवारी कींकर रै पेडै ओजूं चढतौ। सर·नै खरखोदरै तांईं पूगतौ अर म्हारै कानी लाम्बौ हाथ पसारतौ, ‘ल्या पूठा छोड देवूं।’ म्हैं उण री आंख्यां मांय झांकतौ। साफ अर झीणी आंख्यां। ठाह नीं कांई  हौ उण री आंख्यां मांय। आज ई जद कदेई वां दिनां री ओळ्यूं आवै, ‘क्यां खातर गोडा छुलांवता हा.........’ तौ हांसी री जिग्यां आंख्यां मांय पाणी झबळक आवै।
साची......भीतर सूं ब्होत नरम हौ बनवारी। न्यारा हुया उण दिन तौ रोवण ई ढुकग्यौ। सिंझ्या मोड़ै-सीक म्हैं गयौ हौ। वौ बारलै ·मरै मांय एकलौ ई बैठ्यौ हौ। घूंड घाल्यां। ठाह तौ म्हनै हौ ई। मजाक करी...‘न्यांगळ-न्यूंगळ ?’ 
उण म्हारै कानी देख्यौ। पाणी सूं हळाबोळ आंख्यां। औ कांईं ? म्हारौ भीतर धूजग्यौ। उतावळी-सी कनै बैठ्यौ। वौ खिंडग्यौ...‘हू ऽ..हू ..ऽऽ।’
‘बावळौ हुयग्यौ रैय.....। लोगां रा फैसला न्यारा करावै। डील रौ धणी, यार। इंयां रोया करै? न्यारा ई तौ हुया हौ, कांईं दूर हुयग्या? न्यारी तौ दुनिया हुवै। न्यारा ई नीं हुंवता, तौ गाम बारकर बाड़ हुंवती नीं?’ 
म्हैं घणी ई ताळ तांईं सबदां री कारी लगांवतौ रैयौ, पण, भीतर पाट्योड़ै रै कारी कद लागै?
बखत भाजतौ रैयौ। कठैई खोज मंड्या, कठैई कोनी। 
च्यार साल हुयग्या न्यारा हुयां नै। आंगणै बिचाळै री भींत अबार ई बिंयां ई ही....·ड़्यां-·ड़्यां। छोटियै भाई स्योंदै रै छोरै राजियै अर बनवारी री छोरी कमलेस रौ ब्याव हौ। जाणै एक  ई आंगणौ हुवै। टाबर.......? टाबर तौ बिंयां ई सोरपाई चावै। टाबर कद भींत चावै?
ब्याव पछै स्योंदै रै आंगणै बीनणी आयी तौ दुराजै मांय बड़तां ईं बनवारी रा पग एकर झिझको  खांवता। वौ खंखारौ करनै आंगणै मांय आंवतौ। टाबरां सूं ऊंची आवाज मांय बतळांवतौ....जाणनै। भींत सूं परै बीनणी बुहारी काढती, पाणी भरती। ऊंची आवाज बीनणी अर बनवारी बिचाळै पड़दौ हुय जांवती।
बिंयां बीनणी आयां पछै बनवारी आंगणै मांय कमती ई रैंवतौ। रोटी जीमी अर पार....। एक बंधण-सौ हुयग्यौ जाणै, पण फेर ई भींत नै ऊंची करण री बात सूं जीभ ताळवै चिप जांवती।
सिंझ्या रौ बखत हौ। भींत सारै उठावड़ै चूल्है माथै रोटी बणै ही। बनवारी बारै सूं आयौ। खंखारौ ·र्यौ अर माची माथै आयनै बैठग्यौ।
‘रोटी घाल द्यो  भई।’
टाबर जीमै हा। इण आंगणै ई अर उण आंगणै ई। बीनणी भींत सारै धरेड़ी माट मांय पाणी भरै ही। पल्लौ सरकग्यौ। बिच्यारी बीनणी। सरमां मरगी। उतावळी-सी हाथ सूं पाणी री बाल्टी फैंकी  अर हाथ सूं पल्लौ साम्यौ। जीमतां-जीमतां बनवारी री निजर एकर  चकिजी अर ओजूं थाळी मांय टिकगी। देखै सगळा ई हा पण कोई कोनी बोल्यौ। राजियौ आंगणै मांय ई ऊभौ हौ। अचाणचक ई पाटग्यौ, ‘इंयां......ऊंट-सौ मूंडौ चक्यां राखौ.......बहू-बेटी री कीं  सरम है’· कोनी?’
हाथ रौ कोर हाथ मांय ई रैयग्यौ। निजर थाळी मांय ई चिपनै रैयगी जाणै। पळ·तौ सफाचट मूंडौ, स्याह हुयग्यो । होठ एकर धूज्या पण आवाज कोनी नीसरी। भीतर ई मुडग़ी। कानां सुण्या बोल काळजै जमग्या।
सिंझ्या म्हैं पूग्यौ जद बारलै कमरै मांय बैठ्यौ हौ। घूंड घाल्यां।
‘बनवारी ·कांईं बात?’
पण मूंडै बोल कोनी। एकर  म्हारै कानी देख्यौ। आंख्यां मांय पाणी तिर आयौ अर निजरां हेठै झुकगी। स्योंदौ कठैई गमीतरै गयोड़ौ हौ। आंवतां ई राजियै नै रोळा कर्या । भाई सूं माफी मांगी। राजियै नै पगां लगायौ, पण बनवारी....? पाथरीजग्यौ जाणै। एक कानी देखतौ रैवै। टुकर-टकर। एक· ई ठौड़ माथै निजर टिकायां राखै। आंख्यां पाटण नै हुंवती तौ निजर सरकनै किण ई दूजी ठौड़ माथै जा टिकती।
हनुमानगढ़-बीकानेर, छेकड़ जैपुर तांईं जा पूग्या। डागदर माथै डागदर। दुवाई माथै दुवाई। आठूं पौर चूंच राखता, पण होठ कोनी हाल्या। भूख लागती, जीम लेंवतौ। नींद आंवती, सोय जांवतौ। पड़्यां-पड़्यां डील रौ वजन बधै हौ.....स्यात भीतर रौ ई।
इकांतरै-दूसरै री जिग्यां म्हैं इब रोज ई जावण लाग्यौ। म्हनै आयौ देख बनवारी एकर म्हारै कानी देखतौ पछै वा ई बात। गामगा चालनै आंवता। निसकारौ मार सरक जांवता। कुण ·कांईं करै?  एक  दिन, मोड़ौ ई हुयर्यो  हौ। म्हैं कमरै मांय बड़्यौ, तौ उण म्हारै कानी देख्यौ। देखतौ रैयौ....देखतौ रैयौ। निजर म्हारी निजर मांय टांग दी। म्हैं उण री आंख्यां मांय देख्यौ। डूंगी .... अर और डूंगी आंख्यां। डूंगै तांईं पाणी ई पाणी। अचाणचक ई पाणी री कोई लैर चकिजी अर देखतां ई देखतां टप्पां चढगी।
‘म्हैं इस्यौ तौ कोनी, यार.....।’
लैर किनारै आयनै ढुळगी। सुण्यौ तौ म्हारै पांख लागगी। म्हीना पछै म्हारौ यार म्हारै साम्ही हौ। म्हारौ हाथ उण रै मगरां माथै हौ इब.. अर वौ ‘टप...टप’ पंघळै हौ।
उण दिन म्हैं ब्होत राजी हौ। घरां आयौ तद तांईं रात ढळगी ही, पण म्हारै मन मांय उमाव हौ...‘ बनवारी इब ठीक हुय जासी।’
म्हारौ औ उमाव घणा दिन कोनी रैयौ। बनवारी अबार ई बिंयां ई हौ। अलबत कदे-कदास होठ हालता...‘म्हैं इस्यौ तौ कोनी ...यार...?’ इण सूं बेसी कीं नीं बोलतौ। हां, म्हारै सारु एक काम लाधग्यौ। रोज बनवारी कनै बैठक करणी अर उण नै बिलमावण री कोसिस करणी। भीतर किण ई कूणै मांय एक · भरोसौ हाल ई कायम हौ...‘स्यात बात बण सकै ।’
‘म्हैं इस्यौ तौ कोनी ....यार,’ का फेर  ‘आ ·कांईं हुयी बटी...’ सूं आगै कोनी बध्यौ बनवारी। 
म्हारौ भरोसौ डिगौ खावण लाग्यौ। छेकड़ म्हैं उण नै मजाक मांय लेवण लाग्यौ।
‘नां कुण कैवै थूं इस्यौ है।’
वौ कान मांड्यां राखतौ, जाणै म्हारी बात नै गोखतौ हुवै।
काल सिंझ्या री बात है। वौ होठां ईं होठां मांय कीं  बरड़ावै हौ। म्हैं आयौ तौ   म्हारै कांनी देख्यौ। कुरतै री ·कालर हटायी अर नाड़ म्हारै साम्ही कर दी। देख्यौ लील जमरी ही।
‘कांईं हुयौ ?’ म्हनै चिंत्या हुयी।
‘फांसी लगावै हौ...पण, जेवड़ी मुरदी ही बटी। टूटगी।’
म्हारी समझ मांय कोनी आयौ कै कांईं कैवूं। खेत मांय पाणी री बारी ही। फगत राजियै नै कैवण सारु आयौ हौ कै  गाडौ लेयनै आवै तौ म्हारलै घर कानीकर आ जायी।
केई ताळ चुप रैयनै म्हैं बनवारी कानी देख्यौ। दया-सी आयी। पछै हांसियां मांय ले लियौ।
‘यार,  कुंटल पक्कौ डील है...इसी जेवड़ी सूं कांईं हुवै हौ। दौ बोरांआळौ जेवड़ौ ले लेंवतौ ?’
उण म्हारी आंख्यां मांय देख्यौ। ठाह नीं कांईं हौ उण री आंख्यां मांय। म्हनै खुद रै सबदां माथै सरम आयी। पछै केई ताळ तांईं म्हैं उण नै समझांवतौ रैयौ। ओजूं राजियै नै हेलौ पाड़्यौ अर घरां आयग्यौ।
पाणी री बारी हाल खतम कोनी हुयी ही। बड़ै झांझकै  ई राजियै सूं छोटियौ खेत मांय पूग लियौ। ऊपरसांसां।
‘ता..ऊ...फांसी खा...ली।’ 
कैय वौ रोवण ढुकग्यौ। म्हारै हाथ सूं कस्सी छुटगी। स्योंदौ...राजियौ, सैंग रोवै हा। म्हैं भींत बण्यां ऊभौ हौ।
अबार, स्योंदै गाडौ जोड़्यौ है। म्हे सगळा गाडै माथै हां। पांवडै-पांवडै गाम नेडै़ आंवतौ जावै। गामै बड़तां ईं घर आसी। बनवारी रौ घर..अर घरां? म्हैं स्योंदै कानी देखूं। स्योंदौ चुप है। राजियौ... अर म्हैं ई चुप हूं। बता कोनी सकूँ  रातआळी बात। ...पण, भीतर कोई है, जको    बांग मारै...‘बनवारी नै कुण मार्यो ..ऽऽ?’
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