Sunday, April 25, 2010

अेकलपौ

अेकलपौ


आभै सूं पड़ती
ओळ्यूं री अेक छांट सूं
किंया ठंडो हुवै
उकळती रेत सौ
म्हारो अेकलपौ


रूसेड़ी सी धरती
अैरकेड़ौ सौ
आभौ
कदै-कदै चिलकता
डर्योड़ा सा तारा
अर
च्यांचप अंधारौ
सैंग अेकला है
म्हारली दांई


टाबरपंणै री
कोथळी झड़काय
जुवांनी रौ दग्गड़
चक्यां फिरै आजकलै
म्हारौ अेकलपौ


म्हैं जागूं
पंण
होळै सीक
पसवाड़ौ फोर्यां सूत्यौ है
म्हारै भीतर अेकलपौ

Saturday, April 24, 2010

अनोखी बात

अनोखी बात

आऔ अनोखी बात करां
धोळै दिंन री रात करां
बादळ फोड़ां तारां तोड़ां
पळपळांवतौ गात करां
पून टूळावां चांद भुळावां
ऊद कोई घड़ीस्यात करां
ऊदां लमूटां आभौ पटकां
धरती टांगंनै छात करां
पगड़ी खोलां दाढ़ी छोलां
ओजूं मिनख जात करां

आपंणौ रंग

आपंणौ रंग

आऔ टाबरौ आऔ लाडी
आऔ चलावां पगां गाडी
किरतिया लेले रावंणहत्थौ
थूं ई आज्या भादर ढाढी
धोळौ उरंणियौ, गोरौ बाच्छौ
साथै टोरल्यौ काळी पाडी
टीबै री झौ कातीसरौ करां
तेजौ गावां बीजां साढी
ऊकळां जेठ, भीजां सावंण
धंवर री चादर ओढां जाडी
डाकंणियै जोड़ै नाव चलावां
गुच्ची मारां काळती नाडी
रोड कढांवां, टोपी ओढां
पगड़ी बांधां ठाडी ठाडी
सगळा रंग कुंणसै रंग मांय
आऔ आऔ बूझां आडी।

Monday, April 12, 2010

घर




घर

धड़ाधड़ धुड़ै
घर
तौ ई उण नै लागै
नीं हुवंण सूं बेसी हुवै
हुवंण रौ डर।


मुच्योड़ी सी देगची
थाळी
बाटकिया
अर पेडै सारै दौ ठीया
औ ई है
.....उण रौ घर।


आंगंणौ
नीं बारंणौ
लीपंणौ
नीं सुवांरंणौ
अर नां ई
छात पड़ंणै रौ डर।


वा चीड़ी
रोज ल्यावै घोचा
लांबा-ओछा
जचावै
इन्नै-बिन्नै सरकावै
अर वौ
खुद नै समझावै।


काल
उण अेक घर देख्यौ
ढूंढां मांय ढूंढा
अर ढूंढां माथै ई ढूंढा
जठै बारै बैठ्या अेक डोकरौ अर डोकरी
तावड़ी सेकै हा
नां....नां
स्यात कीं उडीकै हा।

Saturday, April 10, 2010

बिरछ अर आदमी

बिरछ अर आदमी


बिरछ
बिरछ हुवै
आदमी, आदमी
बिरछ
बिरछ ई रैवंणौ चावै
पंण आदमी ?
नां आदमी ई रैवंणौ चावै
नां
बिरछ ई हुवंणौ चावै।


कदै-कदै
मिनख रै मरंणै सूं पैलां ई
मर जावै
मिनखपंणौ
पंण बिरछ
मर्यां पछै ई जींवतौ रैवै
कठै न कठै।


थे
किंण ई
मर्योड़ै मिनख नै
बोलतां देख्यौ है ?
कोनी नीं ?
पंण
थे सुंण सकौ
किंण ई ठूंठ हुयोड़ै बिरछ रै
खरखोदरै सूं आंवती
'चूं..चीं , चूं...चूं...`
री आवाज।


लफंणा मांय
चिंचाट करता चिड़िया
इण डाळी सूं उण डाळी तांई
उडती पांख्यां
खरखोदरां मांय उडीकती आंख्यां
अर अठै तांई कै
मुस्कल सूं ठरड़ीज आई
सांसां नै ई
कीं नां कीं देयां पछै
उबरतौ ई रैवै
उण कंनै बिरछपंणौ।


टाबरपंणै मांय
छादी
रोज सुणांवती
घर साम्ही ऊभै नींम रै
हांसंणै
मुळकंणै
सांस लेवंणै
अर बतळावंणै री बातां
पंण हाल
नां दादी है
नां नींम ई।

Wednesday, April 7, 2010

बापू




बापू


थे हा
जद ई
घंणी बरियां
मां ठुसका भरती
सिसकती
हाल थे कोनी
तौ ई
मां री आंख्यां बगै
धारोळा बंण नै
बियां ई।


थांनै गुजर्यां
बखत हुयग्यौ
पंण हाल ई
रोज सिंझ्या
बारंणै मांय लोटौ ढाळतां
उडीक रैवै
'लोटौ ढाळ दियौ कांई बेटा ?`


ओळ्यूं रै मिस
थे आवौ
बोलौ
बतळावौ
सोचूं...
आ सिरधा है
का संस्कार !


म्हैं घूमंण जावूं
रोज भखांवटै ई
चिड़ियां सारू
तगरै मांय पांणी घालूं
गाय रै सींगां बिचाळै खाज करूं
होकौ भरंनै राखूं
हताई मांय
सौ कीं करूं बियां ई
थारली दांई
पंण खंखारौ करंनै
घरां बावड़ूं
तौ
केई ताळ तांई
मां म्हारौ
मूंडौ जोंवती रैवै।

Tuesday, April 6, 2010

गोडा पुरांण

आं दिनां म्हनै आखो दिन माचै माथै ई काटणो पड़ै। स्यात थांनै ठाह नीं हुयसी, म्हारै डावड़ै पग माथै अेक रतकड़ निसरर्यो है। पण फगत पग कैयां थे सावळ नीं समझ्या हुयसी। हम्बै सा ! समझस्यो बी किंयां ? चिटली आंगळी सूं लेय`र अेडी, पंजो, टंटो, पिंडी, नळी, ढकणी, गोडो, गाबची, साथळ अर ठेठ ढुगरै तांई आखो पग ई तो हुवै। पण सा.. इण लाम्बी-चौड़ी लिस्ट मांय अैन बिचाळै चोभ मांय रैंवतै गोडै रो जिकर करणो चावै हो म्हैं।
गोडै माथै गूमड़ो हुयो तो म्हारा गोडा-सा टूटग्या। नीं नीं गोडा तोड़ दिया नीं। ब्होत फरक हुवै 'गोडा टूटग्या` अर 'गोडा तोड़ दिया` मांय। म्हारी तो किण ई साथै दुसमणी नीं है, पछै कुण तोड़ै हो म्हारै गोडा ! हां.. जकी पैलड़ी बात म्हैं थांनै कैयी बा इंयां ई कैय दीवी ही। बिंयां आं दिनां म्हैं कोई खास काम मांय नीं लाग्योड़ो हो जकै रै नीं सर्यां म्हारा गोडा-सा टूटता। ..खैर ओ अेक न्यारो साच है कै गोडै माथै रतकड़ हुय जावणो गोडा टूटण सूं कितणो कमती-बेसी हुवै। उठो तो गोडां माथै हाथ, बैठो तो गोडां माथै हाथ ! चालो तो गोडां रै तांण अर ऊभा हुवो तो गोडां रै पांण। अर इस्यै मांय रतकड़ न्यारो ! आखै दिन गोडो.. गोडो। गोडै सूं अळगो कीं नीं सूझै।
गोडै री बात चाली है तो म्हनै म्हारी भुआ री ओळ्यूं आवै ! भुआ हाल है तो कोनी। राम नै प्यारी हुयां नै बखत हुयग्यो, पण बां री अेक अेक बात आज ई जींवती है जाणै। भुआ जद ई म्हारै घरां आंवती, आखो घर अेक नूंवै चेळकै सूं भर जांवतो। अुणो-कूणो पळपळाट करण लागतो। पळकै बी क्यूं नीं। साळ-ढूंढां रै गारो लीपीजतो। भींतां रै पुस्ती बंधती। गूदड़ गाभा धोयिजता। मिरच-मसालो पिसीजतो। अर इंयां सगळा कामां साथै साथै चालती बास री काकी-ताईयां री हताई ! दिन तो दिन, रात री इग्यारहा बज जांवती। ओजूं दिन उगतां ई बै सागी समचार ! घरां जाणै मेळो-सो लाग्यो रैंवतो। साल खंड रा लटक्योड़ा काम हफ्तै खंड मांय ई सळट जांवता। अर आं सगळा कामां रै अैन बिचाळै हुंवती भुआ। भुआ... फगत भुआ !
बास री लुगाईयां ई भुआ नै चक्यां राखती.... 'बाई अे थारो तो अठै गोडां तांई रो राज है।`
म्हारी चिन्नी-सै दिमाग मांय आ बात कदेई कोनी सुळझी कै लुगाईयां भुआ री बडाई करती हुंवती का आपरो रोजणो रोंवती हुंवती। पछै म्हैं सोचण ढुकतो कै गोडां तांई ओ राज कड़तू तांई क्यूं नीं हुवै ? कड़तू तो आखै डील रो बिचाळो हुवै। पण समझ मांय जद आयी नीं अर आज ई।
बियां गोडो बी पग रै अैन बिचाळै ई हुवै। सक री गुंजास ई कोनी। अर पग रै ई क्यूं ! आपणी बतळावण, संस्कार अर भासा-संस्कीरती री बी तो चोभ हुवै गोडो। कोनी मानो ? चलो नां मानो ! पण म्हैं कूड़ो कोनी कैवूं। किण ई सजोरै मिनख रै डील कानी अेक सांतरी निजर मार`र आपरै मूंडै सूं मतै ई निसर जावै, 'हाड-गोडां रो धणी है भई.... थू..थू !` तो फेर ? अर गोडां मांस ढळणै री बात कांई म्हारी गोडां घड़्योड़ी है ? कोनी नीं ? झूठ-साच री कूंत गोडां सूं ई हुवै। '... नां भई नां, आ तो गोडां घड़्योड़ी है` अर 'गिरधारियो कद रो हरिस्चंदर है... बीं रा तो गोडा ई गोळ है।` अबैं बोलो सा ! म्हैं गळत कैयी ही कांई ? हुवै नीं भासा री डोर सूं संस्कारां री कूंत ? इंयां तो कांई किण ई रो मंूडो पकड़ीजै ! कैवण नै तो थे आ बी कैय सको हो कै खुद री पिलाणै सारू म्हैं गोडा ई दे दिया। भाई जी आ पिलाणै री बात कोनी समझणै री बात है। चलो थे ई बता देवो, संस्कार कठै सूं आवै ? कोई बाप आपरै घरां माची माथै बैठ`र आपरा टाबरां नै संस्कारां रो पाठ पढा सकै है कांई ? बोल्या कोनीं ?.... खैर, अै सगळी बातां तो आपणै काम करण रै ढंगढाळै, बोलण-बतळाणै सूं ई धकै बधै। बोलण-बतळाणै री बात हुवै तो 'बात-कहाणी री बात हुंवणी लाजमी है। लोक री बात ! हां.. हां कीं लारै मुड़`र देखो दखां। चेतै आयसी दादी-नानी रै मंूडै सूं झरती लाखीणी बातां रो रस। आंधी नानी घरां आयोड़ै आपरै दोहितै रो सिर पळूंस्यो। सिर साथै ऊभा दोनूं गोडा ई। अर पूछ्यो, 'तीनूं भाई ई आयग्या कांई ? दे देवो पडूतर ! किण ई रो सिर गोडै बरगो हुवै तो हुवै ई। अर किण ई रा गोडा सिर बरगा तो कुण कांई करै !
थे सोचता हुयसी कै डील तो और घणो ई ठाडो पड़्यो हो, इंयां गोडा-पुरांण रै लारै पड़णै री कांई जुरत ही ? जुरत ही सा ! जुरत घणी ई है। जमानो बदळीज रैयो है। घणी तेजी सूं। जठै कदेई भाखर हुया करता हा बठै आज फैक्टरियां लागरी है। जठै टीब्बा हुया करता हा अर टीटण जाम्या करती ही, बठै सूं नाज रा बोरा भरीजै। आपणो खावणो-पीवणो, ओढणो-पै`रणो अर अठै तांई कै आखो लाजमो-संस्कार अर साहित तकात रा पासा फुर रैया है। जका सैंग सूं लारै हुंवता हा, बै आज आगै आय`र माकड़ी कूट रैया है। सईकां संू जका खुद पींचिजता आया हा... आज मळाई चाट रैया है। नूंवी पूंन चालै अर नूंवां बूंटा रोपीजै। 'स्त्री चेतना` अर 'दलित विमर्श` री डैरूं बाजै अर आं रै लारै ऊभा पळगोड आपरी तूंद माथै हाथ फेर रैया है। इस्यै मांय संस्कार-लाजमै-साहित री कठै पगी लागै ? जाणै सो कीं ओजूं लिखीजसी। पै`लां लिख्योड़ै अेक अेक सबद रा बचिया कढसी। ओ सो कीं सोच`र म्हारो माथो भूंगग्यो। समाज मांय वरग री थापना हुंवती बरियां सूद्र नै सैंग सूं हेटै मानिज्यो हो। जद रै 'सूद्र` नै आज रो 'दलित` बणाय`र टोगी माथै बिठाइजणै री आफळ हुय रैयी है। तो पछै डील मांय सैंग सूं हेटै मानिजणआळो पग कद तांई भूंडीजतो रैयसी। अर बिंयां ई स्यात समाज रै वरगां नै थरपती बरियां डील नै तो चेतै राखिज्यो ई हुयसी। क्यूं कै सिर सूं बामण, हाथ सूं छत्री, पेट सूं बाणियै अर पग सूं सूद्र रो मेळ मानिज्यो हो। आयगी बात बठै ई ! हरमेस पग री जूती मानिजती लुगाई अर पींचिजतो दलित आज दूजां रै मोडां चढ`र टीकली कमेड़ी हुंवण नै त्यार है तो बिच्यारै पग कांई मोरड़ी रै भाटो मार दियो ? अर गोडो ? गोडो तो अैन पग रै बिचाळै ई हुवै। पड़ी`क नीं कीं पल्लै ? ठीक है फेर ! चालू राखूं गोडा-पुरांण ? कांई कैयो... थकग्या ? चलो खैर... अेक कमरसियल बरेक ले लेवां। जाईयो नां कठै ई। बरेक रै पछै ओजूं मिलस्यां।

ओल्यूं रै मिस


म्हारै बारंणै
अर आंगंणै
थूं आवै रोज
पंण म्हनै दीसै फगत
थारा
जांवता खोज।


आखी रात
भीज्यो म्हारौ गात
अर
'टप...टप चोयी छात।


थूं आवै
रोज आवै
अर आपरी चूंच सूं
आडा-टेडा तिणकला जचावै
उडीकूं
कद पूरो हुयसी थारौ आलंणौ
म्हारै भीतर।


म्हारै काळजै मांय
अंधारै रो रूं रूं टूटै
स्यात...
कोई किरंण फूटै।


मेळै जिसी भीड़ मांय ई
म्हनै
आवड़ै कोनी
तद कळमळायनै पूगंणौ चावूं
थारै तांई
पंण
हाथ पूगै कोनी।


'छंण...छंण..छुंण`
संणूं
म्हारै काळजै मांय
थारी पाजेब री
रूंण-झुंण


उकळती दुपारी मांय
म्हारै साथै
तपंणी नीं चावै
तारां छाई रात मांय
रमंणी नीं चावै
तौ बता
किंयां अवेरूं थारा पांवडा
थूं
छिंन-अेक ई
थमंणी नीं चावै।


म्हारै सूं नीं बोलै
अर ओलै-ओलै
हीयौ खोलै
ठुसका भरै
बावळी !
इंयां रूस्यां
कांई सरै ?


हींडतौ देखूं थंनै
ओळ्यूं रै हींडै
तौ
देही रै ठींडै-ठींडै
केई झरंणा फूटै
अर
पोर-पोर सूं
धारोळा छूटै।

१०
ऊमटती आंधी रै लारै
दीसतौ थंनै
मेह
धोबां-धोबां धोंवती
आंख्यां री खेह
देख आज ओजूं ऊमटी है
कळायण,
हुयसी हळाबोळ
बंजड़-झंखड़-बाढ
इंयां रीतौ कोनी जावै
म्हारी आंख्यां रौ असाढ।

११
टीबै री टोगी
चांद नीसरर्यौ है
चौगड़दै च्यानणौ पसरर्यौ है
भाजनै चढूं म्हैं
टोगी माथै
पंण
रेत मांय किंयां तिसळूं
अेकलौ ई।

१२
उडीकूं थंनै
सुपंनां मांय अंवेरूं
थूं उतरै होळै-सी`क
ओळ्यूं रै गातां
परूंसै
मैंदी राच्या हाथां
साची.... उण दिंन
रोटी ब्होत सुवाद हुवै।

१३
ढळती किरत्यां
कोई तेजौ गावै
'टिहू-टिहू` टिटूड़ी
किंण ई नै बुलावै
पूरब मांय भाग पाटती
झिझकै
आभै रै पटपड़ै
पसेवौ चूअ आवै
इस्यै मांय लागै
स्यात... थूं आवै।

१३
सरर-सरर सरकती
रेत रा ठीया
उतरती सिंझ्या रा
कूं-कूं पगलिया
आथूंणी कूंट तांई पसरती
बूढियै नींम री छिंयां
सोचूं... अै सगळा
थारै आवंण रा
अैनांण ई तौ है।

Monday, April 5, 2010

राज.... नीति

राज.... नीति


स्यात थे सोचता हुयसी कै अबार ई राजनीति रा डंड कढसी। बिंयां`स थारो इंयां सोचणो बेजां कोनी, क्यूंकै 'राजनीति` आजकलै कै`नाण दांई बरतीजै। कठैई कीं आछो हुंवतो हुवै तो झट कहिजै, 'थानै ठाह कोनी.... इण मांय कांई राजनीति है...।` अर जे कठैई कीं माड़ो ई हुय जावै तो.... 'आं ई तो बां री राजनीति है।` देख्या मजा ? इन्नै ई म्हे अर बिन्नै ई म्हे।
अेक बखत हो जद राजनीति सूं सीधो सनमन राखणिया ब्होत कमती मिनख हा। इंयां बी कैय सकां हां कै आंगळियां माथै गिणिजणआळा अै लोग राजनीति रै चौगड़दै बाड़ दांईं ऊभा रैंवता हा। ... बापड़ी राजनीति ! आम जनता सारू तो राजनीति चांद हो अेक्यूं रो। जको कदेई उग्यो ई कोनी। रजवाड़ां रो बखत फुर्यो तो राज ई फुरग्यो। राज रै फुरतां ई पासा फुरग्या अर आम जनता रै हाथ आयग्यो बो अेक्यंू रो चांद ..... मतलब झुणझुणियो। इब म्हैं ई लाडो री भुआ अर म्हैं ई ! दे घूत माथै घूत बिच्यारी राजनीति रो डील पाधरो कर न्हाख्यो। इस्यै मांय बणीठणी (?) आपरो डील बचावै का सिणगार ? नीति रो सिणगार छूटग्यो अर राज रा बोरिया खिंडग्या। राज...नीति छेकड़ छेकड़लै मिनख री नियति बणगी। कांई कैयो..गळत कैय दियो ? चलो खैर..
अेक बात तो थे ई मानस्यो कै राज तो जनता रो ई है। जनता सारू अर जनता रो राज। आपणै संविधान मांय ई आ ई बात लिख्योड़ी है। पण कुणसी जनता रो राज कुणसी जनता खातर ? समझ मांय आयी ? आपणा बडेरा आपणै सूं पै`लां जाम्या हा। ऊंच-नीच अर आगै-पाछै रो चेतो हो बां नै। संविधान मांय जनता रो जनता सारू राज लिखती बरियां बां रै दिमाग मांय आ ख्यांत तो लाजमी ई रैयी हुयसी कै अेक जनता बा जकी राज भोगसी अर.... अेक बा जकी राज भुगतसी। हुयसी तो दोनूं ई जनता। कोई समझै तो समझ लेवो अर नीं समझ मांय आवै तो कुचरबो करो सिर। क्यूं है नीं राज री बात ?
ल्यो ओजूं बठै ई पूगग्या। राज हुयसी तो नीति तो हुयसी ई। पण म्हैं थांनै आ बात मांड`र बता देवूं कै न्यारां रा बारणां अेक कोनी हुया करै। जद राज भोगणआळी जनता अर राज भुगतणआळी जनता न्यारी न्यारी हुय सकै तो बां माथै राज सारू नीति अेक किंयां हुय सकै ? मतलब फगत अेक सबद 'राजनीति` सूं किंयां नाको लाग सकै ! लागै ई कोनी अर लागणो बी नीं चाइजै। राज भोगणआळी जनता सारू राजनीति अर राज भुगतणआळी जनता सारू राजनियति...। अबार तो सावळ है ?
कैवण नै तो थे कैय सको हो कै इंयां कांई ठाह लागसी कै कुण राज भोगणआळो है अर कुणसो राज भुगतणआळो ? गतागम मांय अळूझण री जुरत कोनी। हरेक गांठ रो आंटो हुया करै। फेफां बाई राम राम ! किंयां पिछाण्यो ? ...डौळ देख`र। राज भुगतणआळी जनता रो डौळ कांई छांनो रैवै ? खुद रै राज मांय जकी जनता रै मूंडै माथै अेकर चेळको बापरै, समझल्यो राज भुगतणआळी जनता है अर जकां रा मूंडा हरमेस पळपळाट करता रैवै... राज भोगणिया।
बियां पिछाण रा अै झीणा आंटा स्यात थारै कीं कमती पल्लै पड़ता दीसै। कोई बात नीं सा... म्हैं कांई बारै रो हूं ? हूं तो थारै मांयलो ई। किण ई दूजी ढाळ सोध लेस्यां।
अेक रेवड़ मांय पांच सौ रै नेड़ै-तेड़ै भेड-बकरियां है। जे भेड बकरियां सूं चौगुणी हुवै तो न्यारी न्यारी गिणणै सारू थे कांई करस्यो ? कांई कैयो बकरी गिण`र पांच सौ मांय सूं घटा लेस्यो ? स्याबास... ! आ ई बात म्हैं कैवणो चावै हो कै इण भेड-बकरियां रै ठाडै टोळ मांय बकरी कमती है, तो बां नै ई गिणणी चाइजै। राज भोगण-भुगतणियां रै इण टोळ मांय राज भोगणियां नै सावळ तरियां चांक्या जाय सकै।
नूंवी ढाळ ई सई ! थे किण ई धोबी कनै जाय`र पूछ सको हो कै भाया कड़प लगा`र धोवण सारू कितणा चोळा-पजामा आयोड़ा है (बियां धोती सारू बी पूछ सको हो पण कांई है कै धोतीआळा कमती ई रैया है) ? का फेर टेलिफून मै`कमै मांय जाय`र ठाह लाग सकै कै मोटोड़ा बिल कितणा`क बकाया चालै ? बिंयां पूछण नै तो ओ ई पूछ्यो जा सकै कै किण किण रै घरां खेतर रा सगळा अखबार पूगै !
थे कैवो तो अेक लुकवां बात बतावूं सा ! हरेक थिति पूरमपट हुवण सूं पै`लां अेक 'प्रोसेस` मांय चालै। राज भोगणआळी जनता बी कोई अचाणचक ई त्यार कोनी हुवै। अेक लाम्बी अर आंटपटीली 'प्रोसेसिंग` चालतां थकां त्यार हुवै आ पौध। इस्कूल मांय क्लास री मानिटरी सूं बी सरू हुय सकै आ जातरा अर चमची सूं कुड़छो बणणै री 'प्रोसेसिंग` बी इण री चोभ हुय सकै। आंटा और ई घणा सारा है। कदे कदे 'आरक्षण` री सी`ल सूं बी नाको लाग सकै। मेह चायै ऊपरियां पटकीजै चायै धरती हेटै सूं चूवै.... मतलब तो कादै सूं है नीं ?

Thursday, April 1, 2010

विकास बनाम न्यारपणो

विकास बनाम न्यारपणो


दिन दसेक पै`लां म्हे न्यारा हुया अर अेक घर रा तीन घर हुयग्या। जबरी हुयी बटी ! पण घरआळी रो चेळको देख्यां ई जावो थे ! टाबर.....? अेक तो साल पांचेक रो.... बिच्यारै नै ठाह ई कोनी कै हुयो कांई है। दूजी छोरी है, बरस तेरहा चौदहा री। जकी नूंवै आंगणै घाट अर दादीआळै आंगणै बेसी ! लारै बच्यो म्हैं.... लाई ! लोगां रै सुवालां रो उथळो देंवतो देंवतो बेदमाल हुयग्यो। और तो और बो ई जकै सूं कदेई राम रूमी ई कोनी रैयोड़ी, खट पूछ लेवै... 'किंयां न्यारपणो जचा लियो कांई ?` अर लुगाईयां ? ओ..हो...हो, छोड देवो गल्ल ! कुम्हारां रो बास, चंडीगढ मोहल्लो, भूतियां रो टीब्बो.... घणी कांई बतावंू आखै गाम मांय आग लागगी जाणै। मिलै जको ई अेकर पूछ्यां बिना कोनी रैवै। केई तो जाणै आपरी पीड दाबता सा लागै...'निहाल हुयग्यो रैय !` अर लुगाईयां... 'आछो कर्यो देवरा ! म्हारी द्योराणी नै ई कीं सुख हुय जासी !` अबैं बां नै कोई पूछणियो हुवै कै थूं कितणी`क पांगरगी ? पै`लां तो कीं गोतो ई मार लेंवती ही। 'आज तो सिर दुखै, म्हारै सूं खेत कोनी जाइजै।` का फेर 'आज तो म्हारो बरत है.... आज तो सिर धो`स्यूं। सुकरवार है।` कैय दियो तो कैय दियो। कुण पालै ? इण नै ई तो कैवै सीर ! जठै आला-सूका सैंग बळै। कोई न्हावो तो कोई खावो। कठै कुण कांई करै, घणी गिनरत नीं। पण न्यारो तो न्यारो ई हुवै। गाम-गामितरै जावणो तो सेको। घरां सोयसी कुण ! खेत गयोड़ा हुवै तो घरां आयोड़ो बटाऊ सिर मारतो फिरो भलां ई। चाय रो कोपड़ो कोई पाड़ौसी झला देवै तो सावळ नींतर उडीकबो करो। बिंयां`स चाय मायं डोको तो न्यारा हुयोड़ा घरां मांय कोनी ऊभौ हुय सकै। बूढिया तो बिच्यारा हांस्यां बिना कोनी रैवै, 'आ रै खीर रा घसाक `। बां रो खोट ई कांई है। हरमेस ओ ई मानीजतो आयो है कै न्यारो हुंवणियै रै मन मांय लाडू फूटता रैवै कै अबार तो जी करसी जद ई खीर बणा`र खायस्यां। अरै बावळा ! खीर छोड`र चाय ई ढंगसर मिल जावै तो ई चोखी।
बिंयां`स आ कोनी कै न्यारा हुंवणिया धीणौ कोनी राखै। कुणसै नै ई टोक लेवो भलां ई, ' धीणौ क्यांरो है ?` पडूतर हुयसी, 'भैंस रो !` पण जे बांं नै पूछिजै कै खावो हो कांई ? तो पडूतर कोनी लाधसी। अलबत तो डेयरी मांय देयां पछै दूध बचै ई कोनी अर जे कोई घणो ई सुंवाजी अर जाचो हुवै तो बिलोवा-बिलोवी ई कर सकै। पण बिलोवणै रै चक्कर मांय सिंझ्या जको दूध टाबरां नै घालिजै, उण रै कानी कोनी देखिजै। लाल... बम्म ! लीली छिंयां रळ्योड़ो ! पळियो खंड ठरकायो अर वा ! दिनुगै किसी दही हुवै। ढंगसर री लासी रो ई तोड़ो ! लासी मांय बाल्टी भर`र पाणी नीं सरकावै तो पाड़ौसी निराज हुय जावै....'आं रै ई धीणौ देख्यो `! अबैं सगळो बास लासी लेवण नै आवै तो बिच्यारा टाबरां नै दही कठै ? अर चोपड़ ? बो कठै हो ? ' थनै आज चोपड़्यो है पप्पूड़ा... थनै विकासिया आगलै अदीतवार नै तपास्यूं जद... अर..अर !` कांई बतावूं सा ! बाकियां रो नम्बर आंवतां आंवता जे दिन फळांणां पड़ै तो कांई इचरज।
खैर... म्हैं म्हारली बात बतावै हो थांनै। काल रात री ई बात है। दसेक बज्या हुयसी। म्हैं नींद रै बारणै बड़ै-निसरै हो।
'नींद आयगी कांई ?` जोड़ायत ही।
'आं...।` म्हैं नींद रै दुराजै सूं बारै ई ऊभौ हुयग्यो।
'आपणै न्यारो बारणो तो काढल्यो।`
ल्यो करल्यो बात ! न्यारा हुयग्या इण मांय ई कोई सक रैयग्यो ना ? आपरी पोवो अर आपरी खावो। बारणै सूं कांई हंकरावै ही ! पण लुगाई पीदै कुण ?
'घर सीर अर बटोड़ा न्यारा... धिकै कांई ? न्यारा घरां रा तो न्यारा ई बारणा हुवै। `
झूठ हुवै भलां ई पण जोर सूं बोलिजै तो साच सूं बत्तो असर करै। सेवट म्हे आज आपरो न्यारो बारणो काढ ई लियो। इब थारै सूं कांई लुकोवणो है। दिनुगै सूं जी ब्होत उदास है ... भांत भांत री घड़ामंडी चालै अर मांय घिरळमिरळ सी हुय रैयी है। कांई हुयसी ? किंयां हुयसी ? घरां अमूझणी सी आवै। अर बारै ? बारै संको।
दिनुगै दिनुगै ई हरलाल ताऊ आयग्या। फौजी मिनख। हांसै जद खुल`र हांसै। म्हारै साथै तो आछी पटै। आंवतां ई कारो मचा दियो, 'अरै भई ! न्यारो हुयो जको तो आछो... पण कोई न्यांगळ-न्यूंगळ ? सीरो ना सई लापसी ई बणा लेवो।`
घरआळी चाय बणा`र ले आयी। म्हे बैठग्या। म्हैं ताऊ नै भीतरली बात बतादी। ताऊ ठठा`र हांस्या। ' बावळो हुयग्यो रैय मास्टर ! टाबरां नै पढावै न्यारो है। अरै बावळा, न्यारो हुंवणो कांई गाळ है ? थूं तो विकास री बातां कर्या करै। न्यारो हुंवणो तो विकास रो पांवडो है। समाज रो विकास ! समाज बणै परवारां सूं। जठै मिनख फगत जामै ई कोनी, मिनख नै घड़िजै बी है। हम्बै.... साची कैवूं ! ठाडा परवारां मांय हरेक जणै माथै पूरी ख्यांत कोनी करीजै। कुण टाबर पढाई मांय हुंस्यार है, किण मांय किस्यो`क लक्खण है, इण री कूंत रळगडै मांय कोनी हुय सकै। अर ना ई बिस्या मौका ई देयिजै, जिस्या टाबर नै दरकार हुवै।` कीं थम`र ताऊ ओजूं कैवण लाग्या, 'मानां कै अेकल परवारां रा आपरा खोट हुवै है पण आज भाजम भाज रो बखत है जठै दिमाग रा पीसा बंटै। बावळा आपणै परवारां मांय ठाह नीं कितणां विग्यानिक जाम्या बैठ्या है। जे बां माथै सावळ ध्यान देयिजै तो आपां कांई औरां सूं लारै रैयस्यां ? अर आ ई क्यूं ! जद समाज रै विकास री बात करां तो थूं ई बता कै जद मिनख जंगळी हो अर अेक टोळ मांय भेळो रैवणो सरू कर्यो हो तो बठै सूं धकै बधण मांय ओ न्यारपणो काम कोनी आयो ? जे ओ न्यारपणो नीं हुंवतो तो आपणै कनै अळगा-अळगा लाजमा किंयां हुंवता। सिंधु अर नील रै लाजमै री बात तो छोड पण आज रै भारत री कूंत करणै सारू पिच्छम रै लाजमै रो नांव कठै हुंवतो ? ओ तो जुगां जुगां सूं ई चालतो आवै है गूंगा ! इण मांय जी दोरौ करण री कांई बात है ? लोग जे न्यारा ई नीं हुंवता तो गाम बारैकर बाड़ ई हुंवती नीं। इंयां घरां घरां भींत ऊभी करणै री कांई जुरत ही ! पण जुरत ही अर जुरत है। लगोलग है। क्यूंकै आपां नै आगै बधणो है, आगै चालणो है। पूठो नीं जावणो। आगै रो नांव ई विकास है.... अर विकास रो नांव है न्यारो हुंवणो।`
म्हैं बाको पाड़्यां हरलाल ताऊ रै मूंडै कानी देखै हो। ताऊ अेकर म्हारै चेरै कानी ख्यांत्यो अर भळै बोल्या, 'जिंयां जिंयां मिनख बधै, बिंयां बिंयां सेका ई बधता जावै। पछै दो ई आंटा साम्ही रैवै... का तो न्यारा हुवो अर का पछै घरां बधतै जण मांय कट-बढ`र मर जावो। थूं कांई मानै ? न्यारो हुंवणो चाइजै का कट-बढ`र मर जावणो ?`
म्हारै मूंडै सूं उतावळी सी निसरग्यो, ' न्यारो !`
ताऊ तो गया परा पण ताऊआळी बात हाल ई म्हारै जची कोनी। थारै जचगी कांई ?

सीर

सीर


बखत फुरै तो मिनख री सोच ई फुरै। अर सोच फुर्यां सो कीं फुरै। छेकड़ समाज री बुणगट है तो मिनख रै तांण ई। पण कदे- कदे ओ बदळाव कीं कीं अजोगतो-सो हुय जावै। अेक बखत हो जद समाज री मूळ धुरी, जको परवार नै मानिजै, सीर रो खास महत्त हो। अेक अेक परवार मांय सौ सूं ई बत्ता लोग अेक साथै रैंवता हा, पण मजाक है ओ अेकठपणो खिंड जावै ! हां... आ हुय सकै है कै इण अेकठपणै का सीर नै बचाणै रै चक्कर मांय परवार री आगळ आगै लारै सरकीजती रैंवती। पण फेर ई सीर जींवतो रैंवतो। असल मांय कांई है कै उण बखत लोगां रो ओ सीर फगत बारै रो सीर ई नीं हो, सीर रो ओ भाव बां रै भीतर ई जींवतो-जागतो रैंवतो हो। पण आज तीन तीन च्यार च्यार पीढीयां रै लोगां रै अेक चौभींतै रै भीतर अेक गाम दांई रैवण री सोचतां ई धड़धड़ी सी आवै। जद कै उण बखत लोग रैय लेंवता हा....अर रैंवता ई कांई ठाठ सूं रैंवता हा सा ! कदेई कोई राड़ कोनी। कठैई कोई बाड़ कोनी। इब तो सा.. बखत कांई फुर्यो पासा ई फुरग्या। सीर री दुसमी भींत घरां बिचाळै कांई लोगां रै मनां बिचाळै हुयगी। जकां रै भीतर-बारै सीर हुंवतो हो अबार बां रै भीतर-बारै सीर री जिग्यां भींत हुवै। जका कदेई सीर नै महतावू मानता हा अबार भींत नै खास मानै।
आ सगळी गांगरत तो ही घर री। सीर फगत घर मांय ई नीं खेती-पाती मांय बी हुंवतो हो अर काम-धंधै मांय ई। पण कांई है कै घर-सीर अर बारै रै सीर री तासीर मांय रात दिन रो फरक हुवै। स्यात इण खातर ई जठै आज इण नूंवै जमानै मांय घर सीर रा सुपनां ई नीं आवै बठै ई बारलै सीर री आंगळियां घी मांय है। हां इतणो लाजमी है कै घर बारलै इण सीर रो नूंवो नांव 'गठबंधन` हुयग्यो है। जूनै बखत रो ओ सीर मरतो-पड़तो छेकड़ आपरी ठौड़ ऊभौ तो रैय ई गयो। नांव रो कांई बखत फुर्यां तो सो कीं फुर जावै ! पण घर बारलै इण सीर मतलब गठबंधन रो टिकाव सीर करणियां री परकीरती अर सुभाव माथै टिक्योड़ो हुवै। नींतर उतावळी ई घर सीर अर बटोड़ा न्यारा हुंवता हुंवता छेकड़ खाता पाटतां जेज कोनी लागै।
बारलै सीर मांय खास बात आ हुवै है कै सीरवाळी जे अेकसा हुवै तो ई फोड़ो अर जे भोळा स्याणां हुवै तो जाबक ई सेको। क्यूंकै दोनूं सीरवाळी जे भोळा हुवै तो ई सीर धिक जावै लाजमी कोनी। घोचांआळा ई तो आप री बांण भुगतावै है। कोई सावळ दिन तोड़ लेवै, आ कद सुहावै आं नै। अर भोळा तो भोळा ई हुवै। ऊंदी खांनै बैठगी तो बैठगी। पछै सीर रो कांई माजणो ! सीरवाळियां मांय जे अेक जणो भोळो अर दूजो चंट हुवै तो ई नाको लाग जावै पकायी कोनी। चंट सीरवाळी नै भोळो थ्या जावै तो और कांई चाइजै ? इस्यै मांय सीर हुंवतो रैवो भलां ई लीरमलीर ! अर दोनूं पासै रा सीरवाळी ई जे चंट हुवै तो सीर चालण रो खानो ई कोनी। पत्थर सूं पत्थर भिड़ै जद तो आग ई पाटै। दो सीरवाळी अर दोनूं ई अेक दूजै री आंख्यां संू काजळ काढण री कोसिस मांय लाग्या रैवै तो सीर नै कठै जिग्यां ?
पण फेर ई सा ! आ दुनिया है। अर दुनिया मांय सो कीं हुय सकै। आंट अड़ै पण आंटा ई काढिजै। सीर री गुळजट पार नीं पड़ी तो लोगां नांव फोर न्हाख्यो। सीर इब गठबंधन हुंवतां ई परवार अर गाम नै छेक`र देस अर आखी दुनियां तांई पसरण री कोसिस मांय है। आजकलै कुणसी ई तारीख रो अखबार चक`र देख लेवो भलां ई। फलाणी टूथपेस्ट री कंपनी फलाणी कंपनी नै आपरा से`र बेच`र बीं मांय रळगी। फलाणी मोबाइल कंपनी धिकड़ी मोबाइल कंपनी साथै रळ`र आपरो नूंवो नांव धर लियो।
घर बारलै सीर मतलब गठबंधन रो ओ पसराव कंपनियां अर बौपार आद मांय ई हुयो हुवै, आ बात कोनी ! आजकलै तो राज ई गठबंधन रो है। इण राज्य री सरकार गठबंधन री। उण राज्य री सरकार गठबंधन री। और तो और सेंटर री सरकार ई गठबंधन री ! जाणै आ पुखता हुयगी कै जे सरकार बणसी तो गठबंधन री मतलब सीर री ई बणसी नींतर बणै ई कोनी।
कितणै इचरज री बात है कै जकै मिनख सईकां री पिछांण सीर-संस्कीरती नै हळवां हळवां बिसार दीवी ही, गमा न्हाखी ही उण नै ई अचाणचक इब इंयां छाती रै चेपली ? मिनख ई कितणो खेलो करै ! अेक बखत हो जद घर-परवार सीर मांय हुंवता पण राज-सरकार अेकल अर न्यारी-निरवाळी। खुदमुख्त्यार। आज जद सरकार सीर (गठबंधन) री हुवै पण घर परवार अेकला-न्यारा अर मां मर्योड़ी गधियै-सा। जद मिनख रै संस्कार मांय सीर रळ्योड़ो हो तद सरकार रळ्योड़ी कोनी हुंवती। इब जद सरकार रळगड हुवै तो घरां सीर कोनी। करै तो कोई कांई करै ? बूढो-ठेरो कोई कैय बैठै का सीर-सांझै रो जिकर ई कर बैठै तो लेणै रा देणां पड़ज्यै। 'मायतां...सीर री तो होळी हुया करै...... जकी नै फूंक्यां ई सरै।` कर लेवो बात ! बिच्यारो बूढियो टुकर-टुकर भलां ई देखबो करो। जीभ ताळवै रै चिप जावै।