Tuesday, November 30, 2010

धीवड़ नै सीख

मराठी कहांणी

धीवड़ नै सीख
मूल- सांईनाथ पाचारणे
अनुवाद- पूर्ण ार्मा 'पूरण`

भाख पाटंणंनै ई ही कै तारा रै रूड़ उठंण लागी। उण रै पेट मांय जांणै वीज रौ कड़ड़ाट उठै हौ। 'अरया ई` कैंवतां थकां वा ऊभी हुयगी। कामळियै नै पासै सरकाय दोंनूं हाथां सूं आपरौ पेट थाम्यौ तौ मूंड़ै सूं चिरळी नीसरगी अर मूंडै माथै पीड़ री लकीरां मंड आयी। कीं ताळ पछै पेट मांय वा वीज ओजूं कड़ड़ाई। अबकाळै उण री चिरळी घंणी जोर सूं ही। कनै ई उण रौ घरधंणी दसरथ सूत्यौ हौ। तारा री चिरळी सुंण वौ जागग्यौ।
''कांई हुयौ ?`` वंण पूछ्यौ।
''पेट मांय रीळ चाळै।`` तारा कैयौ।
''कद सूं ?``
''घंणी ई ताळ सूं। थारी नींद मांय भिचोळ नीं पड़ै इण खातर थांनै जगायौ कोंनी। समझ मांय कोंनी आवै....कांई करूं ?`` उण रै मूंडै पीड़ री लकीरां ओजूं मंड आयी अर वंण दसरथ कांनी देख्यौ।
''पांणी मांय सोडौ रळाय पीवंण नै देवूं कांई ? का बिंना दूध री चाय बणायंनै झलावूं ?`` दसरथ टाबरां री ढाळ पूछ्यौ।
''थे जकी समझौ हौ बिसी पीड़ कोंनी म्हारै।``
''तौ ?``
''अबैं थांनै कियां बतावूं ? अबार म्हारै टाबर हुवंणवाळौ है.... आ उण री ई पीड़ है।``
दसरथ हांस पड़्यौ। पछै आपरै सिर माथै थाप मारतां बोल्यौ, ''आ बात तौ म्हैं सोची ई कोंनी।``
''थे थारी मां नै जगावौ।`` तारा बोली।
दसरथ फुरती सूं ऊभौ हुयग्यौ। आपरौ कामळियौ पगां सूं परै धक दियौ अर भाजंनै बारै आयग्यौ। बारंणौ खोल वौ आंगणै मांय आयौ।
हाल तांई भाग तौ पाटगी ही पंण मूंअंधारौ हौ। घराळा सैंग आंगंणै मांय सूत्या हा। गाढी नींद मांय। अेक ई बिछावंणै मांय सूत्या सगळा अेक दूजै रै चिप्यां सूत्या हा। बायरै मांय ठंड ही। ठंडी पूंन लाग्यां दसरथ भेळौ-भेळौ हुवै हौ पंण हाल ठंड री चिंत्या करंण रौ बखत नीं हौ। भीतर तारा हाल-बेहाल हुयरी ही। वौ आपरी मां कंनै गयौ अर धंधोळतां थकां कैयौ, ''मां जाग..... जाग मां !``
दसरथ री बोली सुंण मां जागगी। उतावळी-सी ऊभी हुय दसरथ सूं पूछ्यौ, ''कांई हुयौ रै दसरथ ?``
''तारा रै पेट मांय रूड़ उठरी है।``
''....हैं ? कद सूं ?``
''घंणी ई ताळ सूं।``
''तौ बेटा..... पैलां क्यूं नीं जगायौ म्हंनै ?``
चंदरोबाई फुरती सूं ऊभी हुयगी। आपरै डील माथै साड़ी सावळ करी अर घर रै मांय जावंण लागी। उण बखत उण रै कांनां मांय तारा रै टसकंण री आवाज पड़ी। उण मंन-मंन ई सोच्यौ? '....ब्होत दुख पांवती हुयसी बीनंणी..।` पछै वा बेटै कांनी मंूडौ फोरंनै बोली , '' थूं इंयां क्यूं ऊभौ है....खंबै दांई ? जा कोई गाडी-गूडी रौ सराजांम कर। उण नै सफाखांनै मांय ले जावंणौ चाइजै।``
''इण वेळा किंण री गाडी ढूंढूं। अबार दिंन उगाळी ई कोंनी हुयौ।`` दसरथ दाझतौ-सौ बोल्यौ।
''चायै किंण री ई देख। किंण ई नै हेलौ पाड़, इस्यै बखत मांय कोई नटै कोंनी। अर हां.... उण नै उतावळ करंण री कैय देयी। भलां ई भाड़ै रा दौ पीसा बेसी लाग जावै।``
''काळू नरकै री गाडी देखूं दखां।`` दसरथ बोल्यौ।
''जा जा... देखै वा ई देख, पंण जा तौ सरी।``
इतंणौ कैय चंदरोबाई भीतर आपरी बीनंणी कंनै गयी अर दसरथ बारै। इस्यै अंधारै मांय आंगंणै सूं ढळतां ई वौ काळू रै घर कांनी ढणकां हुय लियौ।
दसरथ रै औ पैलीपोत रौ कांम पड़्यौ है। उण री जोड़ायत रै पैलीपोत रौ टाबर हुंवणवाळौ है। दसरथ अर तारा रौ ब्याव हुयां नै दौ साल हुयग्या। नौ महींना पैलां तारा जद दसरथ नै आ आछी खबर दीवी कै वा उण रै टाबर री मां बणणवाळी है तद दसरथ उमाव सूं भरीज्यौ। आपरौ अंस तारा रै पेट मांय पळै इण बात सूं वौ घंणौ राजी हुयर्यौ हौ। बियां ब्याव रै बखत तारा दसरथ सारू कोई अणचौबड़ छोरी कोंनी ही। तारा उण रै मांमै री बडोड़ी छोरी ही। दोंनूं अेक-दूजै नै टाबरपंणै सूं ई जांणै हा। उनाळै री छुटि्टयां मांय दसरथ जद मांमै रै अठै जांवतौ तद वै दोंनूं साथै-साथै खूब खेलता पंण खेलंण सूं ब>ाा चड़भड़ता घंणा हा। इयां चड़भड़तां-चड़भड़तां ई वै जुवांन हुयग्या। आं ई दिंनां मांय सरंमा-सरंमी अेक-दूजै नै चावंण लाग्या। सेवट अेक दिंन ब्याव री चंवरी आय ऊभा हुया। ब्याव पछै घरवाळा सूं ओलै-छांनै जकौ कीं हुंवतौ रैयौ वौ सौ कीं आज लोगां रै साम्ही चौड़ै हुवंण वाळौ है, दसरथ नै इण ई बात माथै रीस आवै ही। '... माड़ी हुयी बटी.... माड़ी` दसरथ खाकौबिळळौ सौ आपरी नाड़ हलांवतां थकां फटक....फटक अंधारै मांय बगै हौ। मंन ई मंन बातां करतौ। औचट गैलै मांय आपरी पूंछ मांय मूंड़ौ घाल्यां बैठ्यै अेक गंडक माथै उण रौ पग मेलीज्यौ। गंडक 'कोय...कोय` करतौ पासै भाजग्यौ। अचाणचक ई गंडक री 'कोय....कोय` सुंण दसरथ हाकौ-धाकौ रैयग्यौ। काळजौ फड़कै हुयग्यौ। बियां तौ हेठै पड़तौ-पड़तौ बचग्यौ पंण फेर ई वंण गंडक नै भूंडी-सी गाळ ठोकी अर आगींनै चाल पड़्यौ।
गांम हाल तांईं सूंत्यौ पड़्यौ हौ। काळू नरकौ गरंमी सूं आखतौ घरां आंगंणै मांय तुलछी-पलींडै सारै सूत्यौ हौ। उण री काळी-पीळी गाडी आंगंणै रै साम्ही ऊभी ही। धामंण गांम सूं लेय मोरवाड़ी तांईं वौ लोगां नै ढोयां फिरतौ। इण सूं ई उण रौ टाबर-टापरौ पळै हौ। धंधौ चालै ई सावळ हौ अर वौ चलावंणौ ई जांणै हौ। आधी रात कुंण ई बुलावौ, काळू निधड़क उण रै साथै हुय जांवतौ।
गाडी लावंण सारू दसरथ रै साम्ही सैंग संू पैलां काळू रौ ई चैरौ आयौ। वौ झांझरकै पैलां ई काळू रै घरां आया हेलौ पाड़ै हौ।
''काळू.....औ.... काळू।``
काळू री आंख खुलगी। कामळियौ सरकाय पूछ्यौ।
''कुंण ?``
''म्हैं हूं.... दसरथ।``
'' किंयां रै दसरथ..... इत्तै झांझरकै ई.... कांईं बात है ?``
''गाडी लेयंनै चाल..... म्हारी जोड़ायत नै सफैखांनै ले जावंणौ है।``
''सफैखांनै ?`` काळू इचरज सूं पूछ्यौ।
''और कांई .... मींदर जावंण सारू कैयौ है थंनै ?`` दसरथ तमकतां थकां कैयौ। काळू नै लाग्यौ उण री आवाज मांय तमक है। वौ बोल्यौ ''तमकै क्यूं है ? म्हैं तौ इंयां ई पूछ्यौ हौ।``
''तौ फेर ? म्हैं इसी भाखपाटी क्यूं आयौ थारै कंनै ?``
''किस्यै सफैखांनै ले जावंणौ है ?`` काळू पूछ्यौ।
''थूं ऊभौ हौ पैलां। गाभा पैहर अर गाडी काढ, पछै सौ कीं बता देस्यूं। घरां म्हारी जोड़ायत कुरळायरी है। ....वा पूरै दिंनां है। ``
काळू हांस्यौ। कामळियौ पासै करंनै वौ ऊभौ हुयग्यौ। हांसतां-हांसतां दसरथ सूं कैयौ, '' थारै कारंण ई उण लाई री आ हालत हुयी है। ब्याव पछै अेकलौ बीनंणी नै लियां घूमंण गयौ हौ। कदे अठै तौ कदे बठै। उण नै रांम रौ दरस करायौ। कानूड़ै रौ दरस करायौ। वै दोनूं थारै माथै क्यूं कोंनी राजी हुवै ?``
कैयां पछै काळू मांय गयौ पंण दसेक मिनट पछै हाथ-मूंडौ धोय, गाभा पैहर बारै आयग्यौ। दसरथ रै तालामेली हुयरी ही। उण नै अेक-अेक मिनट री उतावळ ही। काळू माथै रीस आयी पंण करै कांईं।
बारै आय काळू आपरी गाडी टोरी अर दसरथ सूं बोल्यौ, '' आज्या बैठज्या उतावळी-सी......``। दसरथ उतावळी-सी गाडी मांय बैठग्यौ। काळू गाडी नै दसरथ रै घर कांनी भजादी।
गाडी पूगगी। घर रै आंगंणै रै अैन सारै। दसरथ गाडी सूं कूद पड़्यौ अर काळू सूं कीं कैयां पछै आंगंणै मांय भाज्यौ। मांय तारा हाल ई चिरळी मारै ही। उण री मां आपरी बीनंणी नै धीर बंधावै ही, ''थोड़ी थ्यावस कर.... इंयां नां कर बेटी ! जरड़ी भींच ! लुगाई रै भाग मांय औ ई सौ कीं हुवै।``
''आग लागै इस्यै भाग रै`` तारा कुरळांवतीं-कुरळांवतीं दसरथ नै गाळ ठोकै ही।
उण ई बखत दसरथ आंवतां थकां कैयौ, ''मां उतावळ करौ ! गाडी बारै ऊभी है।``
दसरथ री मां चंदरौ बाई आपरी बीनंणी नै कैयौ, ''चाल ! उतावळ कर..... मंूडौ धोय ले, गाडी आयरी है।``
''चालौ`` कैय तारा ऊभी हुयगी। उण रै पेट री रूड़ इब बधगी ही। चंदरोबाई उण रौ बूकियौ पकड़ राख्यौ हौ। तारा उण रौ सारौ लेय ई चालै ही। उण चळू-अेक पांणी चेरै माथै नाख्यौ अर साड़ी रै पल्लै सूं पूंछ लियौ। पछै गाडी कांनी चालंण लागी। उण रौ सूंधौ हाथ दसरथ अर ऊंदौ हाथ चंदरोबाई थांम राख्यौ हौ। दोनूं पासै रै सारै तांण तारा आंगंणै ढळ गाडी कंनै पूगगी। तद तांईं काळू तींन-च्यार बरियां गाडी रौ होरंण बजा दियौ हौ। होरंण सूं आंगंणै मांय सूत्या और लोगां री नींद खुलगी। तारा री नणद ई जागगी। तारा कुरळावै ही। दसरथ नै उण रौ कुरळावंणौ चोखौ कोंनी लागै हौ। दिनुगै-दिनुगै नींद मांय भिचोळ पड़्यां, पैलां ई वौ फळीबंट हुयर्यौ हौ। इब तारा नै इंयां कुरळांवतौ देख बोल्यौ, ''चुप रै....क्यूं कंठ पाड़ै ? दीसै कोंनी कांई..... सगळा जागर्या है।`` चंदरोबाई नै दसरथ रौ रीसांणौ हुवंणौ चोखौ कोंनी लाग्यौ। बोली, ''थूं क्यूं रातौ हुवै उण माथै ! दीसै कोंनी बिच्यारी कितंणी दुख पावै.....! रोयां कांई मजौ आवै उण नै ?``
दसरथ चुप रैयौ।
पछै दोनुवां तारा नै गाडी मांय बिठायौ। चंदरोबाई तारा रै कंनै बैठगी। उण तारा रौ सिर आपरी झोळी मांय ले लियौ। तारा री नणद अेक कामळियौ लायंनै आपरी भावज नै दियौ। दसरथ काळू साथै बैठग्यौ। उण काळू नै गाडी टोरंण रौ कैयौ।
''थोड़ी हळवां.......।`` चंदरोबाई बोली।
काळू होळै-होळै गाडी चलावै हौ। पक्की सड़क माथै ई वंण गाडी चांपी कोंनी। तारा रै पेट मांय अबैं पैलां सूं घंणी रूड़ आवंण लागी। पीड़ रै कारंण वा आपरी नाड़ मारै ही। हाथ-पगां नै हलावै ही। बिचाळै ई दोंनूं हाथां सूं आपरौ पेट थांमै ही। कुरळांवती-कुरळांवती चिरळी मारै ही,....''औ रै मावड़ी....मरगी।``
चंदरोबाई उण नै धीर बंधावै ही।
''जी नां हला..... सौ कीं सावळ हुयसी..... अबैं सफाखांनौ नेड़ै ई है...... हिम्मत राख....।``
कैवंणौ सोरौ। तारा रौ हाल देखीजै कोंनी। कित्तीक हिम्मत राखै। अेक मोड़ माथै तौ उण रै पेट मांय जोर सूं वीज कड़ड़ाई। उण जोर सूं चिरळी मारी अर दोंनूं पग पसार दिया। पछै बेचेत हुयगी। चंदरोबाई रौ काळजौ जिग्यां छोड़ग्यौ। उण काळू नै गाडी थामंण रौ कैयौ। काळू गाडी थांमी अर पूछ्यौ, ''घंणी तकलीफ हुवै कांई ?``
''हम्बै ! लागै..... पूगंणै सूं पैलां ई टाबर हुयसी।``
पछै उण दसरथ सूं कैयौ ,''लाडी, बारै देख दखां ! किंण ई रौ घर का दरखत हुयसी जकै रै लारै तारा नै लेय जावूं।``
''अठै किस्यौ दरखत है ? घर ई किंण रौ हुवै हौ अठै ? अर जे हुवै ई तौ वौ क्यूं आपां नै खुद रै घरां बड़ंण देसी ?`` दसरथ बोल्यौ।
''देख तौ सरी।`` चंदरोबाई ओजूं कैयौ।
दसरथ हेठै उतरग्यौ। उण आपरी जिग्यां ई ऊभौ हुय इन्नै-बिन्नै ख्यांत्यौ तौ थोड़ी दूर दौ-तींन घरां री ढांणी दीसी। हाल तांईं दिंन ऊग्यौ कोंनी हौ। ढांणी रा लोग नींद सूं जाग्या ई हा। दसरथ बिंना कीं सोच्यां उण ढांणी कांनी भाज्यौ। उरलै पासै पैलीपोत रै घरां साम्ही बारंणै मांय जाय हेलौ पाड़्यौ, ''घरां कोई है कांईं ?``
दिनुगै पैलां कुंण आयौ है औ देखंण सारू अेक बूढळी बारै आयी। उण आपरै बारंणै माथै ऊभ्यै दसरथ नै देख्यौ अर पूछ्यौ, ''कुंण....? किंण नै देखै हा ?``
दसरथ अड़वड़तां थकां कैयौ, ''बडकी.... थोड़ी इमदाद चाइजै ही ! म्हे तौ रासै मांय पजग्या।``
''कांईं इमदाद चाइजै ?``
''म्हे नंद गांम सूं आया हां। म्हारी जोड़ायत रै टाबर-टीकर बापरंण वाळौ है। उण रै रूड़ माथै रूड़ सरू हुयरी ही इण खातर म्हे उण नै मोर गांम रै सफैखांनै लेय जावै हा पंण गैलै मांय ई वा बेचेत हुयगी। लागै स्यात टाबर तौ गैलै बिचाळै ई हुयसी। जे थारै घर-चौभींतै मांय आसरौ मिल जावै तौ ......``
कैंवतां-कैंवतां दसरथ गळगळौ हुयग्यौ। इंयां लाग्यौ जांणै वौ अबार ई रोवंण ढुकसी।
डोकरी नै दसरथ माथै दया आयगी। दर ई नीं सोच वा बोली, ''हां...हां, उडीक किंण बात री ? जावौ अर उतावळी-सी उण नै मांय ले आवौ। औ थारौ ई घर है। संकौ करंण री कांईं बात ?``
दसरथ नै डोकरी री बातां आसरीवचंन-सी लागी। वौ उतावळी-सी भाजंनै गाडी कंनै आयौ अर बोल्यौ, ''मां चालौ, उतावळ करौ। तारा नै हेठै उतारौ। वा बडकी तौ ब्होत भली लुगाई है। वंण तारा नै मांय लावंण रौ कैयौ है।``
''भगवांन भोळै री मेर.....। भलौ हुवै वां रौ ! कंम सूं कंम आसरौ तौ मिल्यौ....।`` चंदरौ बाई हेठै उतरतां थकां कैयौ।
काळू गाडी रौ बारंणौ खोल दियौ। दसरथ तारा नै अेकलौ ई गोदी मांय चक उण घर कांनी भज पड़्यौ। रूड़ इब जोर पकड़गी अर तारा री चिरळी ई। पीड़ इब उण री कड़तू अर पेडू तांईं बधगी ही। उण रा दोंनूं पग जांणै लकवौ मारग्या हा। चंदरोबाई अर काळू ई दसरथ रै लारै-लारै भाज पड़्या।
दसरथ पैलीपोत रै उण घरां आंगंणै मांय आ पूग्यौ। उण बखत वा बडकी आंगंणै मांय ई ऊभी ही। उण री दोंनूं बीनणियां ई उण रै कंनै ई ऊभी ही। बडकी आपरै घरां पैलां ई सौ-कीं बता दियौ हौ। घर रा धंणी-टाबर आंगंणै मांय ऊभा दांतंण करै हा। दिनुगै-दिनुगै आपंणै घरां अेक नुंवौ पावंणौ बापरसी, इण बात सूं वां रै चेळकौ हौ। सगळां रै चेरै री रूंआड़ी ऊभी हुयरी ही।
दसरथ तारा नै गोदी मांय चक्यां आंगंणै मांय पूग्यौ। उण ई बखत बडकी अर उण री दोंनूं बीनणियां उतावळी-सी साम्ही आयी। वां तारा नै साम्यौ अर मांय लेयगी। चंदरोबाई ई वां रै लारै-लारै मांय बड़गी। जद दसरथ मांय जावंण लाग्यौ तौ बडकी उण नै बारंणै मांय ई थांम लियौ। बोली, ''मांय थारौ कांईं कांम ? टाबर हुवंण बखत मरद मांय कोंनी रैवै। म्हे संभाळ लेस्यां सौ-कीं। थे बारै आंगंणै मांय ई बिराजौ।``
दसरथ रौ मंन पाछौ पड़ग्यौ।
पछै काळू आपरी गाडी बसती रै कंनै लाय ऊभी करदी अर खुद दसरथ कंनै आंगंणै मांय आयग्यौ।
आंगंणै मांय दांतंण करतां-करतां घर रै लोगां दसरथ सूं जांणपिछांण काढंणी सरू करी।
''कठै रा रैवासी हौ ?``
''नंद गांम रा।``
''कांई नांव है आपरौ ?``
''म्हारौ नांव दसरथ अर बाबै रौ बालारांम घोलप है सा।`` दसरथ बतायौ।
दांतंण करणियां तींनूं जंणा बाबौ-बेटा हा। पूछणियौ मांणस वां दोंनुआं रौ बापू हौ। पाकी उमर। सिर रा बाळ धोळा। इरिगेसंन मांय नौकरी ही पैलां। अबैं नौकरी पूरी हुयां पछै घरां ई हा वै। वां आगै कैयौ, ''म्हैं सांतारांम घोलप नै जांणूं।``
''किंयां ?``
''म्हे दोंनूं इरिगेसंन मांय साथै-साथै ई हा।``
''वै तौ म्हारा काकौ सा है।`` दसरथ कैयौ।
''चोखी जांण-पिछांण नीसरी।`` बिचाळै ई काळू बोल्यौ। तद दांतंण करतां थकां बूढै कैयौ, ''चोखी बात है...... सांतारांम अर म्हैं सागड़दी हां। वां नै कैय देेईयौ म्हे सीतारांम जी रै घरां गया हा। पछै डोकरै आपरै दोंनूं छोरां सूं परिचै करायौ। दसरथ वां सूं रांम-रूंमी करी।
''चलौ पुरांणी पिछांण अबैं कांम आयगी.....``काळू बोल्यौ।
''वा बात कोंनी। जे आ पिछांण नीं हुवंती तौ ई म्हे थारी इमदाद करता.... अर आ पिछांण तौ हुयी ई पछै है।``
काळू अर दसरथ दोंनूं हांसंण लाग्या।
डोकरै सीतारांम रा दोंनूं छोरा हाल तांईं दांतंण करै हा। सीतारांम वां सूं कैयौ, ''मांय सूं दौ कुरसी ल्यावौ, पावंणा सूं आपां ऊभा-ऊभा ई बतळाय रैया हां।..... अर मालती सूं दौ चाय रौ कैय देवौ।``
बडोड़ौ छोरौ मांय सूं रबड़वाळी दौ कुरसी ल्यायौ। दसरथ अर काळू कुरसियां माथै बैठग्या।
''पैलीपोत रौ जापौ है नीं ?``
''हम्बै !`` दसरथ हामळ भरी।
''रूड़ कदसी`क सरू हुयगी ही ?``
''बडै झांझरकै ई।``
''सुसरौजी कठै रा है ?`` सीतारांम जी पूछ्यौ।
''राऊनबांडी रा है। वां रौ नांव संभाजी राऊन है।``
''वै होटळवाळा ?``
''हां, वां रौ होटल है। थे जांणौ वां नै ?`` दसरथ पूछ्यौ।
''चोखी तरियां......।``
''किंयां ?``
''भई झ्यांन मांय फिरेड़ौ हूं। हरेक गांमै म्हारी जांण-पिछांण है। जठै ई जावूं आपरी बोली रै बंट लोगां सूं जुड़ जावूं।``
सीतारांम जी घंणी अंजस सूं बात करै हा। थोड़ी ताळ पछै दोनुंवां खातर छोटकी बीनंणी चाय ले आयी। दसरथ मूंडौ धोवंण खातर पांणी मांग्यौ।
मांय सूं हाल ई तारा रै कुरळावंण री आवाज आवै ही। चाय पींवतीं बरियां जोर सूं चिरळी सुणीजी। पछै च्यांचप हुयगी। सैंग ठौड़ अबोलौ फिरग्यौ जांणै। थोड़ी ताळ.... फगत थोड़ी ताळ पछै टाबर री 'उआं....उआं` कांना मांय पड़ी। उण ई बखत बायरौ जोर सूं बैवंण लाग्यौ। दरखत री डाळी अर पानका हालंण लाग्या। बसती मांय चेळकौ बापर आयौ। सीतारांम जी री बडोड़ी बीनंणी भाजंनै बारै आयी अर बोली, ''नानियौ हुयौ है।``
''दसरथ रै चेरै अंजस बापरग्यौ।
''म्हारी गाडी बरदाऊ है जकै सूं थारै पैलीपोत रौ छोरौ हुयौ है।`` काळू छोरै री बडाई खुद लेवंण री कोसिस करी।
''आ बात कोंनी ! म्हारै घरां हमेस इंयां ई हुंवतौ आयौ है। इण घर मांय जपायत रै पैलीपोत रौ छोरौ ई हुवै। म्हारी मां रै सगळा छोरा हुया। म्हारी जोड़ायत रै ई दोंनूं छोरा हुया अर म्हारी बीनणियां रै ई पैलीपोत रा छोरा हुया है। इण खातर म्हैं तौ म्हारी बीनणियां नै जापै सारू पीअर कोंनी जावंण देवूं।`` सीतारांम जी कैयौ।
दसरथ रै नानियौ हुवंण री बडंम दोनुवां बांटली पंण दसरथ सारू कीं छोडां आ किंण रै ई मंन मांय कोंनी आयी।
सुरजी कद रौ ई ऊगाळी हुयग्यौ हौ। उण री झमाल चौगड़दै पसरगी ही। तद तांईं सीतारांम अर वां रा दोंनूं बेटां न्हावा-धोयी करली। सिरावंणौ कर लियौ। भीतर तारा रै संपाड़ै सारू पांणी तातौ हुयर्यौ हौ। उण नै जीमंण खातर ई कीं देईज्यौ हौ। दसरथ पूछ्यौ तौ भीतरियां कैयिज्यौ कै मां-बेटौ दोंनूं सावळ है। चिंत्या री कोई बात कोंनी।
.........अचुम्बै री बात.... तारा बीच गैलै मांय अणचौबड़ घरां टाबर जंाम लियौ......... दसरथ सोचै हौ। वां री घंणी इमदाद हुयगी, इब घंणी ताळ अठै थमंणौ आछौ कोंनी इण खातर वौ सीतारांम जी सूं बोल्यौ ,''चंगा.... अबैं म्हांनै सीख दीरावौ। थारी घंणी ई मेर रैयी, और तफौ सावळ कोंनी.......... पैलां ई घंणी मैरबांनी हुयगी।``
''मैरबांनी री कांईं बात है ? ओड़ी मांय तौ चोर ई इमदाद करै, म्हे तौ मिनख हां।`` सीतारांम जी कैयौ।
उण ई बखत चंदरौ बाई बारै आयी अर बोली, ``दसरथ ! काळू नै गाडी टोरंण रौ कैयदे। अबैं आपां नै पूठौ चालंणौ है। ``
सीतारांम जी बोल्या, ''इत्ती उतावळ कांईं है ? जीमं-जूठंनै जावौ।``
''नीं... नीं सा। थे ब्होत इमदाद करी है। और घंणा फोड़ा कोंनी घालां थांनै।`` दसरथ कैयौ।
''उण नै म्हे फोड़ा कोंनी मांना। थे तौ म्हारा पावंणा हौ। थांनै जीम्यां पछै ई जावंण देस्यां।`` कैयां पछै सीतारांम जी आपरी नाड़ आंगंणै कांनी फोरी अर हेलौ पाड़्यौ, ''मालती, जीमंण री त्यारी करौ दखां, पावंणा जीमंनै ई जासी।``
इब दसरथ कांईं बोलै हौ। वौ अबोलौ रैयग्यौ।
सीतारामजी फेरूं दसरथ कांनी देखतां थकां कैयौ, ''थे तौ मोरवाड़ी रै सफैखांनै जावै हा नीं ?``
''हां सा।``
''तौ गाडी बारै काढौ।``
''किंण सारू ?`` काळू पूछ्यौ।
''मोरवाड़ी मांय म्हारौ थोड़ौ-सौ कांम है..... जीमंण त्यार हुयां सूं पैलां आपां पूठा पूग लेस्यां।``
दसरथ अचुम्बै मांय काळू कांनी देख्यौ। सीतारामजी रै मांयली बात दोनुवां रै समझ कोंनी आयी। काळू अबोलौ ऊभौ हुयग्यौ अर गाडी कांनी चाल पड़्यौ। पछै दसरथ अर सीताराम ई चाल पड़्या।
मोरवाड़ी मांय सीतारामजी अेक गाभां री दुकांन साम्ही गाडी थांमंण रौ कैयौ। काळू गाडी थांमदी। दोनुवां नै गाडी मांय बैठ्या रैवंण रौ कैय सीतारामजी अेकला दुकांन मांय बड़ग्या। कीं ताळ पछै जद पूठा बावड़्या तद वां रै हाथ मांय अेक झोळौ हौ। दसरथ सोच्यो..... बूढै नै आपरी कीं चीज-बस्त लेवंणी ही पंण वंण कीं पूछ्यौ कोंनी।
पछै गाडी अेक सोंनी री दुकांन साम्ही थमवायी। सीतारांम वठै ई कीं लियौ। सगळौ कांम हुयां पछै सीतारांम जी बोल्या, ''चालौ ! इब पूठा चालां।``
काळू गाडी टोरी अर वै पूठा आयग्या।
दस बाजग्या हा। हाल सुरजी ई दौ लाठी चढग्यौ हौ। सीतारामजी रा दोंनूं छोरा आप-आपरै कांम माथै टुरग्या हा। वां री बीनणियां जीमंण त्यार कर लियौ हौ। तारा हाल सावळ ही। बडकी अर चंदरोबाई दोनुवां रळ मां-बेटै नै संपाड़ौ करा दियौ हौ। तारा जीसोरै सूं नानकियै कांनी देखै ही।
बडकी सगळां सारू जीमंण लगायौ। दसरथ रौ भूख सूं काळजौ टूटै हौ। सैंग धापंनै जीम्या। जीम्यां पछै दसरथ बोल्यौ, ''मायतां, अबैं म्हे चालां ! ब्होत मोड़ौ हुयग्यौ।``
''थोड़ी ताळ और थंमौ।`` सीतारामजी कैयौ।
''अबैं कांईं रैयग्यौ........... घंणौ ई कर दियौ थे तौ...।`` दसरथ बोल्यौ।
''दुनियां मांय लोग जावंण सारू ई आवै। म्हे कुंण हुवां हां थांनै थामणिया ? भला पधार्या थे...... म्हारै कांनी सूं कीं अकोर तौ अंगेजौ।`` पछै बूढै सीतारांम मांय झांकतां थकां आपरी जोड़ायत नै हेलौ पाड़्यौ, '' मालती ! म्हैं अबार जकौ झोळौ लेयंनै आयौ हौ वौ अठींनै ल्यायी दखां।``
मालती वौ झोळौ ल्यायी अर सीतारांम जी नै पकड़ा दियौ। उण झोळै मांय तारा खातर अेक साड़ी अर नानियै खातर झुगला-टोपी हा।
दसरथ बोल्यौ, ''मायतां ! औ कांईं कर्यौ थे ?``
''भला मांणसौ.... आ कांईं बात हुयी ! दिनुगै-दिनुगै म्हारै घरां नुंवौ जीव बापर्यौ है, उण री खातर म्हे नीं करस्यां तौ और कुंण ई करसी ? आ सोनै री सांकळी नानियै खातर !`` सोंनी री दुकांन सूं लायोड़ी अेक डब्बी दसरथ नै दिखांवतां थकां सीतारांम जी कैयौ।
औ सौ-कीं देख्यां पछै दसरथ अर चंदरोबाई री आंख्यां मांय पांणी भर आयौ। दसरथ सोच्यौ, कित्तौ-कीं कर्यौ है आं ! बोल्यौ, ''मायतां, थे तारा नै आपरी बेटी मांन ब्होत कीं कर दियौ....।``
''वा म्हारी बेटी ई समझौ... । बेटी आपरै पैलै जापै मांय पीअर आवै। आज म्हारी बेटी पीअर ई आयी है। म्हारै बेटी कोंनी ही। उपरलै री मेर सूं आज म्हंनै बेटी मिलगी। साच्यांणी जे म्हारै बेटी हुंवती तौ उण खातर म्हैं औ सौ-कीं नीं करतौ ! म्हैं जकौ कीं कर्यौ है वौ म्हारी बेटी खातर ई समझौ। .... अर अेक बात और ! इण बूढै री अेक बात मांनल्यौ। म्हारै बेटां रै कोई भांण नीं ही। आज रै पछै चायै रखपून्यू हुवै चायै दीयाळी पछै भाई-दूज..... भांण मांन म्हारै घरां आवंण देईयौ। इत्ती-सी बातड़ी जे मानस्यौ तौ म्हैं जाणस्यूं कै म्हारै दोंनूं बेटां रै अेक भांण है..... अर म्हारै अेक धीवड़।
कैंवतां-कैंवतां सीतारांम जी गळगळा हुयग्या। काळजै रौ हेत आंख्यां मांय ओलर आयौ। चौगड़दै च्यांचप्प हुयगी। कोई कीं कोंनी कैवै हौ। कुंण ई किंण सूं बतळायौ नीं।
औचट दसरथ रै कांईं जी मांय आयी ठाह नीं, झुकंनै सीतारामजी रै पगां लागग्यौ। इंयां करतां उण री आंख्यां मांय पांणी तिर आयौ। थोड़ी ताळ पछै सौ-कीं सावळ हुयग्यौ। रळी-किरंणां चौफेर पसरगी। दसरथ मंन ई मंन सोच्यौ, चलौ आच्छौ हुयौ, अेक नूंवौ नांनौ हुयग्यौ। नूंवौ मांणस नूंवौ रिस्तौ ! म्हे इण रिस्तै नै आखी जिनगी पार घालस्यां।
तारा आपरै नानियै नै गोदी मांय लियां बारै आयी। वंण सीतारामजी री लायोड़ी नूंवी साड़ी पैहर राखी ही। पल्लै सूं सिर नै बांध राख्यौ हौ। बारै आय गोदी मांय टाबर नै सावळ कर वा सीतारामजी रै पगां लागी। सीतारांम जी सीली आंख्यां आसीस दीवी।
''म्हैं आंवती-जांवती रैयस्यूं बाबा.......।`` तारा कैयौ।
डोकरै सीतारांम उण नै आपरी छाती सूं चेप लियौ।
पछै सैंग पूठा चाल पड्या। उण बखत सीतारांम जी रै घर रा सैंग जंणा गाडी कंनै ऊभा हा........धीवड़ नै सीख दीरावंण सारू... !

Saturday, May 8, 2010

बावळी




तावड़ी बावळी
करै उतावळी
सुरजियै रै भकायां बाळै
मरूधरा रौ सिर
अर आभै री पगथळी
हाल ठाह कोनी उण नै
कै वा
कमावै पाप
भोळी झळ रौ साप
डस लेसी जद सगळा नै
तौ हुयसी वा आप ई
गळगळी।

Sunday, April 25, 2010

अेकलपौ

अेकलपौ


आभै सूं पड़ती
ओळ्यूं री अेक छांट सूं
किंया ठंडो हुवै
उकळती रेत सौ
म्हारो अेकलपौ


रूसेड़ी सी धरती
अैरकेड़ौ सौ
आभौ
कदै-कदै चिलकता
डर्योड़ा सा तारा
अर
च्यांचप अंधारौ
सैंग अेकला है
म्हारली दांई


टाबरपंणै री
कोथळी झड़काय
जुवांनी रौ दग्गड़
चक्यां फिरै आजकलै
म्हारौ अेकलपौ


म्हैं जागूं
पंण
होळै सीक
पसवाड़ौ फोर्यां सूत्यौ है
म्हारै भीतर अेकलपौ

Saturday, April 24, 2010

अनोखी बात

अनोखी बात

आऔ अनोखी बात करां
धोळै दिंन री रात करां
बादळ फोड़ां तारां तोड़ां
पळपळांवतौ गात करां
पून टूळावां चांद भुळावां
ऊद कोई घड़ीस्यात करां
ऊदां लमूटां आभौ पटकां
धरती टांगंनै छात करां
पगड़ी खोलां दाढ़ी छोलां
ओजूं मिनख जात करां

आपंणौ रंग

आपंणौ रंग

आऔ टाबरौ आऔ लाडी
आऔ चलावां पगां गाडी
किरतिया लेले रावंणहत्थौ
थूं ई आज्या भादर ढाढी
धोळौ उरंणियौ, गोरौ बाच्छौ
साथै टोरल्यौ काळी पाडी
टीबै री झौ कातीसरौ करां
तेजौ गावां बीजां साढी
ऊकळां जेठ, भीजां सावंण
धंवर री चादर ओढां जाडी
डाकंणियै जोड़ै नाव चलावां
गुच्ची मारां काळती नाडी
रोड कढांवां, टोपी ओढां
पगड़ी बांधां ठाडी ठाडी
सगळा रंग कुंणसै रंग मांय
आऔ आऔ बूझां आडी।

Monday, April 12, 2010

घर




घर

धड़ाधड़ धुड़ै
घर
तौ ई उण नै लागै
नीं हुवंण सूं बेसी हुवै
हुवंण रौ डर।


मुच्योड़ी सी देगची
थाळी
बाटकिया
अर पेडै सारै दौ ठीया
औ ई है
.....उण रौ घर।


आंगंणौ
नीं बारंणौ
लीपंणौ
नीं सुवांरंणौ
अर नां ई
छात पड़ंणै रौ डर।


वा चीड़ी
रोज ल्यावै घोचा
लांबा-ओछा
जचावै
इन्नै-बिन्नै सरकावै
अर वौ
खुद नै समझावै।


काल
उण अेक घर देख्यौ
ढूंढां मांय ढूंढा
अर ढूंढां माथै ई ढूंढा
जठै बारै बैठ्या अेक डोकरौ अर डोकरी
तावड़ी सेकै हा
नां....नां
स्यात कीं उडीकै हा।

Saturday, April 10, 2010

बिरछ अर आदमी

बिरछ अर आदमी


बिरछ
बिरछ हुवै
आदमी, आदमी
बिरछ
बिरछ ई रैवंणौ चावै
पंण आदमी ?
नां आदमी ई रैवंणौ चावै
नां
बिरछ ई हुवंणौ चावै।


कदै-कदै
मिनख रै मरंणै सूं पैलां ई
मर जावै
मिनखपंणौ
पंण बिरछ
मर्यां पछै ई जींवतौ रैवै
कठै न कठै।


थे
किंण ई
मर्योड़ै मिनख नै
बोलतां देख्यौ है ?
कोनी नीं ?
पंण
थे सुंण सकौ
किंण ई ठूंठ हुयोड़ै बिरछ रै
खरखोदरै सूं आंवती
'चूं..चीं , चूं...चूं...`
री आवाज।


लफंणा मांय
चिंचाट करता चिड़िया
इण डाळी सूं उण डाळी तांई
उडती पांख्यां
खरखोदरां मांय उडीकती आंख्यां
अर अठै तांई कै
मुस्कल सूं ठरड़ीज आई
सांसां नै ई
कीं नां कीं देयां पछै
उबरतौ ई रैवै
उण कंनै बिरछपंणौ।


टाबरपंणै मांय
छादी
रोज सुणांवती
घर साम्ही ऊभै नींम रै
हांसंणै
मुळकंणै
सांस लेवंणै
अर बतळावंणै री बातां
पंण हाल
नां दादी है
नां नींम ई।

Wednesday, April 7, 2010

बापू




बापू


थे हा
जद ई
घंणी बरियां
मां ठुसका भरती
सिसकती
हाल थे कोनी
तौ ई
मां री आंख्यां बगै
धारोळा बंण नै
बियां ई।


थांनै गुजर्यां
बखत हुयग्यौ
पंण हाल ई
रोज सिंझ्या
बारंणै मांय लोटौ ढाळतां
उडीक रैवै
'लोटौ ढाळ दियौ कांई बेटा ?`


ओळ्यूं रै मिस
थे आवौ
बोलौ
बतळावौ
सोचूं...
आ सिरधा है
का संस्कार !


म्हैं घूमंण जावूं
रोज भखांवटै ई
चिड़ियां सारू
तगरै मांय पांणी घालूं
गाय रै सींगां बिचाळै खाज करूं
होकौ भरंनै राखूं
हताई मांय
सौ कीं करूं बियां ई
थारली दांई
पंण खंखारौ करंनै
घरां बावड़ूं
तौ
केई ताळ तांई
मां म्हारौ
मूंडौ जोंवती रैवै।

Tuesday, April 6, 2010

गोडा पुरांण

आं दिनां म्हनै आखो दिन माचै माथै ई काटणो पड़ै। स्यात थांनै ठाह नीं हुयसी, म्हारै डावड़ै पग माथै अेक रतकड़ निसरर्यो है। पण फगत पग कैयां थे सावळ नीं समझ्या हुयसी। हम्बै सा ! समझस्यो बी किंयां ? चिटली आंगळी सूं लेय`र अेडी, पंजो, टंटो, पिंडी, नळी, ढकणी, गोडो, गाबची, साथळ अर ठेठ ढुगरै तांई आखो पग ई तो हुवै। पण सा.. इण लाम्बी-चौड़ी लिस्ट मांय अैन बिचाळै चोभ मांय रैंवतै गोडै रो जिकर करणो चावै हो म्हैं।
गोडै माथै गूमड़ो हुयो तो म्हारा गोडा-सा टूटग्या। नीं नीं गोडा तोड़ दिया नीं। ब्होत फरक हुवै 'गोडा टूटग्या` अर 'गोडा तोड़ दिया` मांय। म्हारी तो किण ई साथै दुसमणी नीं है, पछै कुण तोड़ै हो म्हारै गोडा ! हां.. जकी पैलड़ी बात म्हैं थांनै कैयी बा इंयां ई कैय दीवी ही। बिंयां आं दिनां म्हैं कोई खास काम मांय नीं लाग्योड़ो हो जकै रै नीं सर्यां म्हारा गोडा-सा टूटता। ..खैर ओ अेक न्यारो साच है कै गोडै माथै रतकड़ हुय जावणो गोडा टूटण सूं कितणो कमती-बेसी हुवै। उठो तो गोडां माथै हाथ, बैठो तो गोडां माथै हाथ ! चालो तो गोडां रै तांण अर ऊभा हुवो तो गोडां रै पांण। अर इस्यै मांय रतकड़ न्यारो ! आखै दिन गोडो.. गोडो। गोडै सूं अळगो कीं नीं सूझै।
गोडै री बात चाली है तो म्हनै म्हारी भुआ री ओळ्यूं आवै ! भुआ हाल है तो कोनी। राम नै प्यारी हुयां नै बखत हुयग्यो, पण बां री अेक अेक बात आज ई जींवती है जाणै। भुआ जद ई म्हारै घरां आंवती, आखो घर अेक नूंवै चेळकै सूं भर जांवतो। अुणो-कूणो पळपळाट करण लागतो। पळकै बी क्यूं नीं। साळ-ढूंढां रै गारो लीपीजतो। भींतां रै पुस्ती बंधती। गूदड़ गाभा धोयिजता। मिरच-मसालो पिसीजतो। अर इंयां सगळा कामां साथै साथै चालती बास री काकी-ताईयां री हताई ! दिन तो दिन, रात री इग्यारहा बज जांवती। ओजूं दिन उगतां ई बै सागी समचार ! घरां जाणै मेळो-सो लाग्यो रैंवतो। साल खंड रा लटक्योड़ा काम हफ्तै खंड मांय ई सळट जांवता। अर आं सगळा कामां रै अैन बिचाळै हुंवती भुआ। भुआ... फगत भुआ !
बास री लुगाईयां ई भुआ नै चक्यां राखती.... 'बाई अे थारो तो अठै गोडां तांई रो राज है।`
म्हारी चिन्नी-सै दिमाग मांय आ बात कदेई कोनी सुळझी कै लुगाईयां भुआ री बडाई करती हुंवती का आपरो रोजणो रोंवती हुंवती। पछै म्हैं सोचण ढुकतो कै गोडां तांई ओ राज कड़तू तांई क्यूं नीं हुवै ? कड़तू तो आखै डील रो बिचाळो हुवै। पण समझ मांय जद आयी नीं अर आज ई।
बियां गोडो बी पग रै अैन बिचाळै ई हुवै। सक री गुंजास ई कोनी। अर पग रै ई क्यूं ! आपणी बतळावण, संस्कार अर भासा-संस्कीरती री बी तो चोभ हुवै गोडो। कोनी मानो ? चलो नां मानो ! पण म्हैं कूड़ो कोनी कैवूं। किण ई सजोरै मिनख रै डील कानी अेक सांतरी निजर मार`र आपरै मूंडै सूं मतै ई निसर जावै, 'हाड-गोडां रो धणी है भई.... थू..थू !` तो फेर ? अर गोडां मांस ढळणै री बात कांई म्हारी गोडां घड़्योड़ी है ? कोनी नीं ? झूठ-साच री कूंत गोडां सूं ई हुवै। '... नां भई नां, आ तो गोडां घड़्योड़ी है` अर 'गिरधारियो कद रो हरिस्चंदर है... बीं रा तो गोडा ई गोळ है।` अबैं बोलो सा ! म्हैं गळत कैयी ही कांई ? हुवै नीं भासा री डोर सूं संस्कारां री कूंत ? इंयां तो कांई किण ई रो मंूडो पकड़ीजै ! कैवण नै तो थे आ बी कैय सको हो कै खुद री पिलाणै सारू म्हैं गोडा ई दे दिया। भाई जी आ पिलाणै री बात कोनी समझणै री बात है। चलो थे ई बता देवो, संस्कार कठै सूं आवै ? कोई बाप आपरै घरां माची माथै बैठ`र आपरा टाबरां नै संस्कारां रो पाठ पढा सकै है कांई ? बोल्या कोनीं ?.... खैर, अै सगळी बातां तो आपणै काम करण रै ढंगढाळै, बोलण-बतळाणै सूं ई धकै बधै। बोलण-बतळाणै री बात हुवै तो 'बात-कहाणी री बात हुंवणी लाजमी है। लोक री बात ! हां.. हां कीं लारै मुड़`र देखो दखां। चेतै आयसी दादी-नानी रै मंूडै सूं झरती लाखीणी बातां रो रस। आंधी नानी घरां आयोड़ै आपरै दोहितै रो सिर पळूंस्यो। सिर साथै ऊभा दोनूं गोडा ई। अर पूछ्यो, 'तीनूं भाई ई आयग्या कांई ? दे देवो पडूतर ! किण ई रो सिर गोडै बरगो हुवै तो हुवै ई। अर किण ई रा गोडा सिर बरगा तो कुण कांई करै !
थे सोचता हुयसी कै डील तो और घणो ई ठाडो पड़्यो हो, इंयां गोडा-पुरांण रै लारै पड़णै री कांई जुरत ही ? जुरत ही सा ! जुरत घणी ई है। जमानो बदळीज रैयो है। घणी तेजी सूं। जठै कदेई भाखर हुया करता हा बठै आज फैक्टरियां लागरी है। जठै टीब्बा हुया करता हा अर टीटण जाम्या करती ही, बठै सूं नाज रा बोरा भरीजै। आपणो खावणो-पीवणो, ओढणो-पै`रणो अर अठै तांई कै आखो लाजमो-संस्कार अर साहित तकात रा पासा फुर रैया है। जका सैंग सूं लारै हुंवता हा, बै आज आगै आय`र माकड़ी कूट रैया है। सईकां संू जका खुद पींचिजता आया हा... आज मळाई चाट रैया है। नूंवी पूंन चालै अर नूंवां बूंटा रोपीजै। 'स्त्री चेतना` अर 'दलित विमर्श` री डैरूं बाजै अर आं रै लारै ऊभा पळगोड आपरी तूंद माथै हाथ फेर रैया है। इस्यै मांय संस्कार-लाजमै-साहित री कठै पगी लागै ? जाणै सो कीं ओजूं लिखीजसी। पै`लां लिख्योड़ै अेक अेक सबद रा बचिया कढसी। ओ सो कीं सोच`र म्हारो माथो भूंगग्यो। समाज मांय वरग री थापना हुंवती बरियां सूद्र नै सैंग सूं हेटै मानिज्यो हो। जद रै 'सूद्र` नै आज रो 'दलित` बणाय`र टोगी माथै बिठाइजणै री आफळ हुय रैयी है। तो पछै डील मांय सैंग सूं हेटै मानिजणआळो पग कद तांई भूंडीजतो रैयसी। अर बिंयां ई स्यात समाज रै वरगां नै थरपती बरियां डील नै तो चेतै राखिज्यो ई हुयसी। क्यूं कै सिर सूं बामण, हाथ सूं छत्री, पेट सूं बाणियै अर पग सूं सूद्र रो मेळ मानिज्यो हो। आयगी बात बठै ई ! हरमेस पग री जूती मानिजती लुगाई अर पींचिजतो दलित आज दूजां रै मोडां चढ`र टीकली कमेड़ी हुंवण नै त्यार है तो बिच्यारै पग कांई मोरड़ी रै भाटो मार दियो ? अर गोडो ? गोडो तो अैन पग रै बिचाळै ई हुवै। पड़ी`क नीं कीं पल्लै ? ठीक है फेर ! चालू राखूं गोडा-पुरांण ? कांई कैयो... थकग्या ? चलो खैर... अेक कमरसियल बरेक ले लेवां। जाईयो नां कठै ई। बरेक रै पछै ओजूं मिलस्यां।

ओल्यूं रै मिस


म्हारै बारंणै
अर आंगंणै
थूं आवै रोज
पंण म्हनै दीसै फगत
थारा
जांवता खोज।


आखी रात
भीज्यो म्हारौ गात
अर
'टप...टप चोयी छात।


थूं आवै
रोज आवै
अर आपरी चूंच सूं
आडा-टेडा तिणकला जचावै
उडीकूं
कद पूरो हुयसी थारौ आलंणौ
म्हारै भीतर।


म्हारै काळजै मांय
अंधारै रो रूं रूं टूटै
स्यात...
कोई किरंण फूटै।


मेळै जिसी भीड़ मांय ई
म्हनै
आवड़ै कोनी
तद कळमळायनै पूगंणौ चावूं
थारै तांई
पंण
हाथ पूगै कोनी।


'छंण...छंण..छुंण`
संणूं
म्हारै काळजै मांय
थारी पाजेब री
रूंण-झुंण


उकळती दुपारी मांय
म्हारै साथै
तपंणी नीं चावै
तारां छाई रात मांय
रमंणी नीं चावै
तौ बता
किंयां अवेरूं थारा पांवडा
थूं
छिंन-अेक ई
थमंणी नीं चावै।


म्हारै सूं नीं बोलै
अर ओलै-ओलै
हीयौ खोलै
ठुसका भरै
बावळी !
इंयां रूस्यां
कांई सरै ?


हींडतौ देखूं थंनै
ओळ्यूं रै हींडै
तौ
देही रै ठींडै-ठींडै
केई झरंणा फूटै
अर
पोर-पोर सूं
धारोळा छूटै।

१०
ऊमटती आंधी रै लारै
दीसतौ थंनै
मेह
धोबां-धोबां धोंवती
आंख्यां री खेह
देख आज ओजूं ऊमटी है
कळायण,
हुयसी हळाबोळ
बंजड़-झंखड़-बाढ
इंयां रीतौ कोनी जावै
म्हारी आंख्यां रौ असाढ।

११
टीबै री टोगी
चांद नीसरर्यौ है
चौगड़दै च्यानणौ पसरर्यौ है
भाजनै चढूं म्हैं
टोगी माथै
पंण
रेत मांय किंयां तिसळूं
अेकलौ ई।

१२
उडीकूं थंनै
सुपंनां मांय अंवेरूं
थूं उतरै होळै-सी`क
ओळ्यूं रै गातां
परूंसै
मैंदी राच्या हाथां
साची.... उण दिंन
रोटी ब्होत सुवाद हुवै।

१३
ढळती किरत्यां
कोई तेजौ गावै
'टिहू-टिहू` टिटूड़ी
किंण ई नै बुलावै
पूरब मांय भाग पाटती
झिझकै
आभै रै पटपड़ै
पसेवौ चूअ आवै
इस्यै मांय लागै
स्यात... थूं आवै।

१३
सरर-सरर सरकती
रेत रा ठीया
उतरती सिंझ्या रा
कूं-कूं पगलिया
आथूंणी कूंट तांई पसरती
बूढियै नींम री छिंयां
सोचूं... अै सगळा
थारै आवंण रा
अैनांण ई तौ है।

Monday, April 5, 2010

राज.... नीति

राज.... नीति


स्यात थे सोचता हुयसी कै अबार ई राजनीति रा डंड कढसी। बिंयां`स थारो इंयां सोचणो बेजां कोनी, क्यूंकै 'राजनीति` आजकलै कै`नाण दांई बरतीजै। कठैई कीं आछो हुंवतो हुवै तो झट कहिजै, 'थानै ठाह कोनी.... इण मांय कांई राजनीति है...।` अर जे कठैई कीं माड़ो ई हुय जावै तो.... 'आं ई तो बां री राजनीति है।` देख्या मजा ? इन्नै ई म्हे अर बिन्नै ई म्हे।
अेक बखत हो जद राजनीति सूं सीधो सनमन राखणिया ब्होत कमती मिनख हा। इंयां बी कैय सकां हां कै आंगळियां माथै गिणिजणआळा अै लोग राजनीति रै चौगड़दै बाड़ दांईं ऊभा रैंवता हा। ... बापड़ी राजनीति ! आम जनता सारू तो राजनीति चांद हो अेक्यूं रो। जको कदेई उग्यो ई कोनी। रजवाड़ां रो बखत फुर्यो तो राज ई फुरग्यो। राज रै फुरतां ई पासा फुरग्या अर आम जनता रै हाथ आयग्यो बो अेक्यंू रो चांद ..... मतलब झुणझुणियो। इब म्हैं ई लाडो री भुआ अर म्हैं ई ! दे घूत माथै घूत बिच्यारी राजनीति रो डील पाधरो कर न्हाख्यो। इस्यै मांय बणीठणी (?) आपरो डील बचावै का सिणगार ? नीति रो सिणगार छूटग्यो अर राज रा बोरिया खिंडग्या। राज...नीति छेकड़ छेकड़लै मिनख री नियति बणगी। कांई कैयो..गळत कैय दियो ? चलो खैर..
अेक बात तो थे ई मानस्यो कै राज तो जनता रो ई है। जनता सारू अर जनता रो राज। आपणै संविधान मांय ई आ ई बात लिख्योड़ी है। पण कुणसी जनता रो राज कुणसी जनता खातर ? समझ मांय आयी ? आपणा बडेरा आपणै सूं पै`लां जाम्या हा। ऊंच-नीच अर आगै-पाछै रो चेतो हो बां नै। संविधान मांय जनता रो जनता सारू राज लिखती बरियां बां रै दिमाग मांय आ ख्यांत तो लाजमी ई रैयी हुयसी कै अेक जनता बा जकी राज भोगसी अर.... अेक बा जकी राज भुगतसी। हुयसी तो दोनूं ई जनता। कोई समझै तो समझ लेवो अर नीं समझ मांय आवै तो कुचरबो करो सिर। क्यूं है नीं राज री बात ?
ल्यो ओजूं बठै ई पूगग्या। राज हुयसी तो नीति तो हुयसी ई। पण म्हैं थांनै आ बात मांड`र बता देवूं कै न्यारां रा बारणां अेक कोनी हुया करै। जद राज भोगणआळी जनता अर राज भुगतणआळी जनता न्यारी न्यारी हुय सकै तो बां माथै राज सारू नीति अेक किंयां हुय सकै ? मतलब फगत अेक सबद 'राजनीति` सूं किंयां नाको लाग सकै ! लागै ई कोनी अर लागणो बी नीं चाइजै। राज भोगणआळी जनता सारू राजनीति अर राज भुगतणआळी जनता सारू राजनियति...। अबार तो सावळ है ?
कैवण नै तो थे कैय सको हो कै इंयां कांई ठाह लागसी कै कुण राज भोगणआळो है अर कुणसो राज भुगतणआळो ? गतागम मांय अळूझण री जुरत कोनी। हरेक गांठ रो आंटो हुया करै। फेफां बाई राम राम ! किंयां पिछाण्यो ? ...डौळ देख`र। राज भुगतणआळी जनता रो डौळ कांई छांनो रैवै ? खुद रै राज मांय जकी जनता रै मूंडै माथै अेकर चेळको बापरै, समझल्यो राज भुगतणआळी जनता है अर जकां रा मूंडा हरमेस पळपळाट करता रैवै... राज भोगणिया।
बियां पिछाण रा अै झीणा आंटा स्यात थारै कीं कमती पल्लै पड़ता दीसै। कोई बात नीं सा... म्हैं कांई बारै रो हूं ? हूं तो थारै मांयलो ई। किण ई दूजी ढाळ सोध लेस्यां।
अेक रेवड़ मांय पांच सौ रै नेड़ै-तेड़ै भेड-बकरियां है। जे भेड बकरियां सूं चौगुणी हुवै तो न्यारी न्यारी गिणणै सारू थे कांई करस्यो ? कांई कैयो बकरी गिण`र पांच सौ मांय सूं घटा लेस्यो ? स्याबास... ! आ ई बात म्हैं कैवणो चावै हो कै इण भेड-बकरियां रै ठाडै टोळ मांय बकरी कमती है, तो बां नै ई गिणणी चाइजै। राज भोगण-भुगतणियां रै इण टोळ मांय राज भोगणियां नै सावळ तरियां चांक्या जाय सकै।
नूंवी ढाळ ई सई ! थे किण ई धोबी कनै जाय`र पूछ सको हो कै भाया कड़प लगा`र धोवण सारू कितणा चोळा-पजामा आयोड़ा है (बियां धोती सारू बी पूछ सको हो पण कांई है कै धोतीआळा कमती ई रैया है) ? का फेर टेलिफून मै`कमै मांय जाय`र ठाह लाग सकै कै मोटोड़ा बिल कितणा`क बकाया चालै ? बिंयां पूछण नै तो ओ ई पूछ्यो जा सकै कै किण किण रै घरां खेतर रा सगळा अखबार पूगै !
थे कैवो तो अेक लुकवां बात बतावूं सा ! हरेक थिति पूरमपट हुवण सूं पै`लां अेक 'प्रोसेस` मांय चालै। राज भोगणआळी जनता बी कोई अचाणचक ई त्यार कोनी हुवै। अेक लाम्बी अर आंटपटीली 'प्रोसेसिंग` चालतां थकां त्यार हुवै आ पौध। इस्कूल मांय क्लास री मानिटरी सूं बी सरू हुय सकै आ जातरा अर चमची सूं कुड़छो बणणै री 'प्रोसेसिंग` बी इण री चोभ हुय सकै। आंटा और ई घणा सारा है। कदे कदे 'आरक्षण` री सी`ल सूं बी नाको लाग सकै। मेह चायै ऊपरियां पटकीजै चायै धरती हेटै सूं चूवै.... मतलब तो कादै सूं है नीं ?

Thursday, April 1, 2010

विकास बनाम न्यारपणो

विकास बनाम न्यारपणो


दिन दसेक पै`लां म्हे न्यारा हुया अर अेक घर रा तीन घर हुयग्या। जबरी हुयी बटी ! पण घरआळी रो चेळको देख्यां ई जावो थे ! टाबर.....? अेक तो साल पांचेक रो.... बिच्यारै नै ठाह ई कोनी कै हुयो कांई है। दूजी छोरी है, बरस तेरहा चौदहा री। जकी नूंवै आंगणै घाट अर दादीआळै आंगणै बेसी ! लारै बच्यो म्हैं.... लाई ! लोगां रै सुवालां रो उथळो देंवतो देंवतो बेदमाल हुयग्यो। और तो और बो ई जकै सूं कदेई राम रूमी ई कोनी रैयोड़ी, खट पूछ लेवै... 'किंयां न्यारपणो जचा लियो कांई ?` अर लुगाईयां ? ओ..हो...हो, छोड देवो गल्ल ! कुम्हारां रो बास, चंडीगढ मोहल्लो, भूतियां रो टीब्बो.... घणी कांई बतावंू आखै गाम मांय आग लागगी जाणै। मिलै जको ई अेकर पूछ्यां बिना कोनी रैवै। केई तो जाणै आपरी पीड दाबता सा लागै...'निहाल हुयग्यो रैय !` अर लुगाईयां... 'आछो कर्यो देवरा ! म्हारी द्योराणी नै ई कीं सुख हुय जासी !` अबैं बां नै कोई पूछणियो हुवै कै थूं कितणी`क पांगरगी ? पै`लां तो कीं गोतो ई मार लेंवती ही। 'आज तो सिर दुखै, म्हारै सूं खेत कोनी जाइजै।` का फेर 'आज तो म्हारो बरत है.... आज तो सिर धो`स्यूं। सुकरवार है।` कैय दियो तो कैय दियो। कुण पालै ? इण नै ई तो कैवै सीर ! जठै आला-सूका सैंग बळै। कोई न्हावो तो कोई खावो। कठै कुण कांई करै, घणी गिनरत नीं। पण न्यारो तो न्यारो ई हुवै। गाम-गामितरै जावणो तो सेको। घरां सोयसी कुण ! खेत गयोड़ा हुवै तो घरां आयोड़ो बटाऊ सिर मारतो फिरो भलां ई। चाय रो कोपड़ो कोई पाड़ौसी झला देवै तो सावळ नींतर उडीकबो करो। बिंयां`स चाय मायं डोको तो न्यारा हुयोड़ा घरां मांय कोनी ऊभौ हुय सकै। बूढिया तो बिच्यारा हांस्यां बिना कोनी रैवै, 'आ रै खीर रा घसाक `। बां रो खोट ई कांई है। हरमेस ओ ई मानीजतो आयो है कै न्यारो हुंवणियै रै मन मांय लाडू फूटता रैवै कै अबार तो जी करसी जद ई खीर बणा`र खायस्यां। अरै बावळा ! खीर छोड`र चाय ई ढंगसर मिल जावै तो ई चोखी।
बिंयां`स आ कोनी कै न्यारा हुंवणिया धीणौ कोनी राखै। कुणसै नै ई टोक लेवो भलां ई, ' धीणौ क्यांरो है ?` पडूतर हुयसी, 'भैंस रो !` पण जे बांं नै पूछिजै कै खावो हो कांई ? तो पडूतर कोनी लाधसी। अलबत तो डेयरी मांय देयां पछै दूध बचै ई कोनी अर जे कोई घणो ई सुंवाजी अर जाचो हुवै तो बिलोवा-बिलोवी ई कर सकै। पण बिलोवणै रै चक्कर मांय सिंझ्या जको दूध टाबरां नै घालिजै, उण रै कानी कोनी देखिजै। लाल... बम्म ! लीली छिंयां रळ्योड़ो ! पळियो खंड ठरकायो अर वा ! दिनुगै किसी दही हुवै। ढंगसर री लासी रो ई तोड़ो ! लासी मांय बाल्टी भर`र पाणी नीं सरकावै तो पाड़ौसी निराज हुय जावै....'आं रै ई धीणौ देख्यो `! अबैं सगळो बास लासी लेवण नै आवै तो बिच्यारा टाबरां नै दही कठै ? अर चोपड़ ? बो कठै हो ? ' थनै आज चोपड़्यो है पप्पूड़ा... थनै विकासिया आगलै अदीतवार नै तपास्यूं जद... अर..अर !` कांई बतावूं सा ! बाकियां रो नम्बर आंवतां आंवता जे दिन फळांणां पड़ै तो कांई इचरज।
खैर... म्हैं म्हारली बात बतावै हो थांनै। काल रात री ई बात है। दसेक बज्या हुयसी। म्हैं नींद रै बारणै बड़ै-निसरै हो।
'नींद आयगी कांई ?` जोड़ायत ही।
'आं...।` म्हैं नींद रै दुराजै सूं बारै ई ऊभौ हुयग्यो।
'आपणै न्यारो बारणो तो काढल्यो।`
ल्यो करल्यो बात ! न्यारा हुयग्या इण मांय ई कोई सक रैयग्यो ना ? आपरी पोवो अर आपरी खावो। बारणै सूं कांई हंकरावै ही ! पण लुगाई पीदै कुण ?
'घर सीर अर बटोड़ा न्यारा... धिकै कांई ? न्यारा घरां रा तो न्यारा ई बारणा हुवै। `
झूठ हुवै भलां ई पण जोर सूं बोलिजै तो साच सूं बत्तो असर करै। सेवट म्हे आज आपरो न्यारो बारणो काढ ई लियो। इब थारै सूं कांई लुकोवणो है। दिनुगै सूं जी ब्होत उदास है ... भांत भांत री घड़ामंडी चालै अर मांय घिरळमिरळ सी हुय रैयी है। कांई हुयसी ? किंयां हुयसी ? घरां अमूझणी सी आवै। अर बारै ? बारै संको।
दिनुगै दिनुगै ई हरलाल ताऊ आयग्या। फौजी मिनख। हांसै जद खुल`र हांसै। म्हारै साथै तो आछी पटै। आंवतां ई कारो मचा दियो, 'अरै भई ! न्यारो हुयो जको तो आछो... पण कोई न्यांगळ-न्यूंगळ ? सीरो ना सई लापसी ई बणा लेवो।`
घरआळी चाय बणा`र ले आयी। म्हे बैठग्या। म्हैं ताऊ नै भीतरली बात बतादी। ताऊ ठठा`र हांस्या। ' बावळो हुयग्यो रैय मास्टर ! टाबरां नै पढावै न्यारो है। अरै बावळा, न्यारो हुंवणो कांई गाळ है ? थूं तो विकास री बातां कर्या करै। न्यारो हुंवणो तो विकास रो पांवडो है। समाज रो विकास ! समाज बणै परवारां सूं। जठै मिनख फगत जामै ई कोनी, मिनख नै घड़िजै बी है। हम्बै.... साची कैवूं ! ठाडा परवारां मांय हरेक जणै माथै पूरी ख्यांत कोनी करीजै। कुण टाबर पढाई मांय हुंस्यार है, किण मांय किस्यो`क लक्खण है, इण री कूंत रळगडै मांय कोनी हुय सकै। अर ना ई बिस्या मौका ई देयिजै, जिस्या टाबर नै दरकार हुवै।` कीं थम`र ताऊ ओजूं कैवण लाग्या, 'मानां कै अेकल परवारां रा आपरा खोट हुवै है पण आज भाजम भाज रो बखत है जठै दिमाग रा पीसा बंटै। बावळा आपणै परवारां मांय ठाह नीं कितणां विग्यानिक जाम्या बैठ्या है। जे बां माथै सावळ ध्यान देयिजै तो आपां कांई औरां सूं लारै रैयस्यां ? अर आ ई क्यूं ! जद समाज रै विकास री बात करां तो थूं ई बता कै जद मिनख जंगळी हो अर अेक टोळ मांय भेळो रैवणो सरू कर्यो हो तो बठै सूं धकै बधण मांय ओ न्यारपणो काम कोनी आयो ? जे ओ न्यारपणो नीं हुंवतो तो आपणै कनै अळगा-अळगा लाजमा किंयां हुंवता। सिंधु अर नील रै लाजमै री बात तो छोड पण आज रै भारत री कूंत करणै सारू पिच्छम रै लाजमै रो नांव कठै हुंवतो ? ओ तो जुगां जुगां सूं ई चालतो आवै है गूंगा ! इण मांय जी दोरौ करण री कांई बात है ? लोग जे न्यारा ई नीं हुंवता तो गाम बारैकर बाड़ ई हुंवती नीं। इंयां घरां घरां भींत ऊभी करणै री कांई जुरत ही ! पण जुरत ही अर जुरत है। लगोलग है। क्यूंकै आपां नै आगै बधणो है, आगै चालणो है। पूठो नीं जावणो। आगै रो नांव ई विकास है.... अर विकास रो नांव है न्यारो हुंवणो।`
म्हैं बाको पाड़्यां हरलाल ताऊ रै मूंडै कानी देखै हो। ताऊ अेकर म्हारै चेरै कानी ख्यांत्यो अर भळै बोल्या, 'जिंयां जिंयां मिनख बधै, बिंयां बिंयां सेका ई बधता जावै। पछै दो ई आंटा साम्ही रैवै... का तो न्यारा हुवो अर का पछै घरां बधतै जण मांय कट-बढ`र मर जावो। थूं कांई मानै ? न्यारो हुंवणो चाइजै का कट-बढ`र मर जावणो ?`
म्हारै मूंडै सूं उतावळी सी निसरग्यो, ' न्यारो !`
ताऊ तो गया परा पण ताऊआळी बात हाल ई म्हारै जची कोनी। थारै जचगी कांई ?

सीर

सीर


बखत फुरै तो मिनख री सोच ई फुरै। अर सोच फुर्यां सो कीं फुरै। छेकड़ समाज री बुणगट है तो मिनख रै तांण ई। पण कदे- कदे ओ बदळाव कीं कीं अजोगतो-सो हुय जावै। अेक बखत हो जद समाज री मूळ धुरी, जको परवार नै मानिजै, सीर रो खास महत्त हो। अेक अेक परवार मांय सौ सूं ई बत्ता लोग अेक साथै रैंवता हा, पण मजाक है ओ अेकठपणो खिंड जावै ! हां... आ हुय सकै है कै इण अेकठपणै का सीर नै बचाणै रै चक्कर मांय परवार री आगळ आगै लारै सरकीजती रैंवती। पण फेर ई सीर जींवतो रैंवतो। असल मांय कांई है कै उण बखत लोगां रो ओ सीर फगत बारै रो सीर ई नीं हो, सीर रो ओ भाव बां रै भीतर ई जींवतो-जागतो रैंवतो हो। पण आज तीन तीन च्यार च्यार पीढीयां रै लोगां रै अेक चौभींतै रै भीतर अेक गाम दांई रैवण री सोचतां ई धड़धड़ी सी आवै। जद कै उण बखत लोग रैय लेंवता हा....अर रैंवता ई कांई ठाठ सूं रैंवता हा सा ! कदेई कोई राड़ कोनी। कठैई कोई बाड़ कोनी। इब तो सा.. बखत कांई फुर्यो पासा ई फुरग्या। सीर री दुसमी भींत घरां बिचाळै कांई लोगां रै मनां बिचाळै हुयगी। जकां रै भीतर-बारै सीर हुंवतो हो अबार बां रै भीतर-बारै सीर री जिग्यां भींत हुवै। जका कदेई सीर नै महतावू मानता हा अबार भींत नै खास मानै।
आ सगळी गांगरत तो ही घर री। सीर फगत घर मांय ई नीं खेती-पाती मांय बी हुंवतो हो अर काम-धंधै मांय ई। पण कांई है कै घर-सीर अर बारै रै सीर री तासीर मांय रात दिन रो फरक हुवै। स्यात इण खातर ई जठै आज इण नूंवै जमानै मांय घर सीर रा सुपनां ई नीं आवै बठै ई बारलै सीर री आंगळियां घी मांय है। हां इतणो लाजमी है कै घर बारलै इण सीर रो नूंवो नांव 'गठबंधन` हुयग्यो है। जूनै बखत रो ओ सीर मरतो-पड़तो छेकड़ आपरी ठौड़ ऊभौ तो रैय ई गयो। नांव रो कांई बखत फुर्यां तो सो कीं फुर जावै ! पण घर बारलै इण सीर मतलब गठबंधन रो टिकाव सीर करणियां री परकीरती अर सुभाव माथै टिक्योड़ो हुवै। नींतर उतावळी ई घर सीर अर बटोड़ा न्यारा हुंवता हुंवता छेकड़ खाता पाटतां जेज कोनी लागै।
बारलै सीर मांय खास बात आ हुवै है कै सीरवाळी जे अेकसा हुवै तो ई फोड़ो अर जे भोळा स्याणां हुवै तो जाबक ई सेको। क्यूंकै दोनूं सीरवाळी जे भोळा हुवै तो ई सीर धिक जावै लाजमी कोनी। घोचांआळा ई तो आप री बांण भुगतावै है। कोई सावळ दिन तोड़ लेवै, आ कद सुहावै आं नै। अर भोळा तो भोळा ई हुवै। ऊंदी खांनै बैठगी तो बैठगी। पछै सीर रो कांई माजणो ! सीरवाळियां मांय जे अेक जणो भोळो अर दूजो चंट हुवै तो ई नाको लाग जावै पकायी कोनी। चंट सीरवाळी नै भोळो थ्या जावै तो और कांई चाइजै ? इस्यै मांय सीर हुंवतो रैवो भलां ई लीरमलीर ! अर दोनूं पासै रा सीरवाळी ई जे चंट हुवै तो सीर चालण रो खानो ई कोनी। पत्थर सूं पत्थर भिड़ै जद तो आग ई पाटै। दो सीरवाळी अर दोनूं ई अेक दूजै री आंख्यां संू काजळ काढण री कोसिस मांय लाग्या रैवै तो सीर नै कठै जिग्यां ?
पण फेर ई सा ! आ दुनिया है। अर दुनिया मांय सो कीं हुय सकै। आंट अड़ै पण आंटा ई काढिजै। सीर री गुळजट पार नीं पड़ी तो लोगां नांव फोर न्हाख्यो। सीर इब गठबंधन हुंवतां ई परवार अर गाम नै छेक`र देस अर आखी दुनियां तांई पसरण री कोसिस मांय है। आजकलै कुणसी ई तारीख रो अखबार चक`र देख लेवो भलां ई। फलाणी टूथपेस्ट री कंपनी फलाणी कंपनी नै आपरा से`र बेच`र बीं मांय रळगी। फलाणी मोबाइल कंपनी धिकड़ी मोबाइल कंपनी साथै रळ`र आपरो नूंवो नांव धर लियो।
घर बारलै सीर मतलब गठबंधन रो ओ पसराव कंपनियां अर बौपार आद मांय ई हुयो हुवै, आ बात कोनी ! आजकलै तो राज ई गठबंधन रो है। इण राज्य री सरकार गठबंधन री। उण राज्य री सरकार गठबंधन री। और तो और सेंटर री सरकार ई गठबंधन री ! जाणै आ पुखता हुयगी कै जे सरकार बणसी तो गठबंधन री मतलब सीर री ई बणसी नींतर बणै ई कोनी।
कितणै इचरज री बात है कै जकै मिनख सईकां री पिछांण सीर-संस्कीरती नै हळवां हळवां बिसार दीवी ही, गमा न्हाखी ही उण नै ई अचाणचक इब इंयां छाती रै चेपली ? मिनख ई कितणो खेलो करै ! अेक बखत हो जद घर-परवार सीर मांय हुंवता पण राज-सरकार अेकल अर न्यारी-निरवाळी। खुदमुख्त्यार। आज जद सरकार सीर (गठबंधन) री हुवै पण घर परवार अेकला-न्यारा अर मां मर्योड़ी गधियै-सा। जद मिनख रै संस्कार मांय सीर रळ्योड़ो हो तद सरकार रळ्योड़ी कोनी हुंवती। इब जद सरकार रळगड हुवै तो घरां सीर कोनी। करै तो कोई कांई करै ? बूढो-ठेरो कोई कैय बैठै का सीर-सांझै रो जिकर ई कर बैठै तो लेणै रा देणां पड़ज्यै। 'मायतां...सीर री तो होळी हुया करै...... जकी नै फूंक्यां ई सरै।` कर लेवो बात ! बिच्यारो बूढियो टुकर-टुकर भलां ई देखबो करो। जीभ ताळवै रै चिप जावै।

Friday, March 26, 2010

कुचरणी


गठबन्धन री सरकार

पांगळै नै
साथै राखण रौ अळेपौ
जे नीं राखै
तौ ई स्यापौ।


मिनखपणौ

झूठ री नाव माथै
स्वार
मिनख जद
साच सूं परै टिप जावै
तौ मिनखपणौ
कांई लारै रैय जावै।


सत्तापख

पीयेड़ा
कांई कूंतंनै बोलै ?
घणकरा`क तौ
नाळियौ
मूतंनै खोलै।


डतरीउतार

खावै अर सोवै
सैंग सूं बेसी
पंण कांम मांय
लारै रैसी।


गरीब री मनवार

माचली रौ टूट्योड़ौ
बांण
बिठावै पंण
सवै कोनी
खींचातांण।






सीरवाळी

बूढै री
ब्यावली
ठाह नीं
कद तांईं रैयसी
कद भाज जावैली।



कविता
ज्यूं जपायत रै
पीड़ उठै
अर जाम्यां ई
पैंडौ छूटै।



कवि
जकै रै घरां
बटाऊ आंवता डरै
चाय-पाणी पछै
पैलां कविता करै।



सम्पादक
ठाडै रौ डोकौ
पाड़ै
डांग नै जकौ।

Wednesday, March 24, 2010

खाज अर राज

खाज अर राज


खाज खाज ई हुवै अर राज राज ! पण फेर ई दोनूंवां री परकीरती, ढंगढाळै अर रीत-नीत मांय इतणो मेळ है कै लागै स्यात आं री चोभ मांय किण ई भांत री दुभांत कोनी। अेक ई पाणी सूं सींचिजै दोनूं।
मानां कै राज मांय किण ई हद तांई गुमेज बापर आवै पण इण सूं अळगो ओ बी अेक साच है कै राज मांय जको मजो हुवै उण नै किण ई सबदां री सींव मांय कोनी बांध्यो जा सकै। गूंगै रो गुड़ हुवै ओ मजो ! अैन खाज रै मजै दांई ! खाज मांय मिनख जिंयां जिंयां आपरै डील नै कुचरतो जावै ओ मजो और ई बधतो जावै। खुरड़तां-खुरड़तां चामड़ खुरड़ीजै भलां ई पण खाज रो मजो खतम कोनी हुवै। केई-केई तो लाई हाथां नुंवां सूं ई कोनी सारै, छुरियो का दांती सूं बी लाग जावै।
बियां आ तो थे पकायत ई मानता हुयसी कै जे किण चीज मांय खास रस का मजो नीं हुवै तो बा घणै बखत तांई चायिजती कोनी रैय सकै। मिनख रो ओ सुभाव हुवै है कै बो किण ई अेक थिति, किण ई अेक मिनख का किण ई अेक चीज सूं उतावळी ई थक-अक जावै। हां.. जे लोक-लिहाज सूं का ठड्डो कर`र कीं धिकावणो ई चावै, तो ई दो-च्यार पांवडा धकै बध`र पग फ्या देवै। पण खाज अर राज सारू आ बात लागू कोनी हुवै। राज रो चस्को अेकर लाग्यो अर लाग्यो। पछै पाछ कोनी देवै। बियां तो आपणै अठै साठ साल री उमर पछै सरकार नौकरी सूं रिटायर ई कर देवै पण राज मांय रैवण री कोई उमर तै कोनी। 'साठी बुध न्हाठी` हुवै तो हुवो भलां ई। नाड़ हालण लागै तो लागो भलां ई। सूझणो-बूझणो नीं हुवै तो नीं सई। राज कोनी छोडिजै। हुंवण नै तो इण देस मांय 'लोक तन्त्र` है। लोक रो तंत्र है तो लोक नै बांधण रा आंटा ई घणा है। 'आरक्षण` री लाव सूं तकड़ी जेवड़ी और कांई हुय सकै ही! अर इंयां सगळां सारू राज रो मजो 'संवैधानिक` हक हुयग्यो। पण हक हुयां सूं कांई हुवै ! मजा तो लेवणिया ई लेयसी। जका अेकर राज रै चौभींतै मांय बड़ग्या, पूठा जावण रो बै तो नांव लेवै आथ नीं। लागू करता रैवै आरक्षण मोकळो। थांनै-म्हनै कांई ठाह ! ओ ई तो बां रो आंटो है। सांप ई मर जावै अर लाठी ई नीं टूटै। कांई हुयो जे आरक्षण रै तांण किण ई दूजै नै राज रै इण चौभींतै मांय बाड़ लियो। असल मांय बां रै मगरां माथै हाथ तो आं रो ई है। नींतर बां नै कांई ठाह राज किण नै कैवै। बांदर रै हाथ मांय दे देवो नारेळ ! दड़ी बणाय`र रूड़ांवतो भलां ई रैवै। मजाक है फोड़`र खा लेवै ! बीं लाई नै कांई ठाह फोड़`र खावण रो मजो ? नारेळ तो फोड़णिया ई फोड़सी। मजा तो लेवणिया ई लेयसी। राज तो करणिया ई करसी। राज रो कांई ! राज तो बेटा, पोता, रिस्तेदारां अर अठै तांई कै आपरै कारू-कुरबां तकात रै मिस ई हुय जावै। पण राज हुवै आं रै कनै ई है।
कांई कैयो... सरम ? सरम किण री सा ! अर संको किण बात रो ? आ बात तो थे-म्हे ई सोच सकां हां जकां नै नां तो राज रै मजै रो ठाह अर नां खाज रै ! खाज करतां करतां तो मिनख इतणो मगन हुय जावै है जाणै आखी धरती माथै बीं सूं दूजो और कोई नीं है। गळी बगतां, दफतर मांय काम करतां, रिस्तेदारी मांय, घर मांय, आंगणै-बारणै मांय, छोरी छापरी अर टाबरां तकात रै साम्ही ई खाज करतो मिनख इस्यो रम जावै है कै हाथां-पगां री तो छोडो, कदे कदे तो नीं बतावणजोग जिग्यां ई कुचरण लागै तो कुचरतो ई जावै। कुचरतो कुचरतो जाणै किण ई दूजै लोक मांय जा पूगै। साम्ही कुण बैठ्यो है कुण नीं, दर ई होस नीं रैवै।
असल मांय खाज रो मजो ई इस्यो हुवै, इण मांय बिच्यारै मिनख रो कांई खोट ! खोट है कुदरत रो। जकी किण किण ई चीज नै इतणी रसाळ बणा देवै है कै छोडण रो जी ई कोनी करै। खाज करतो-खुरड़तो मिनख भलां ई लोही-झार हुय जावै। राज करतो-भोगतो मिनख, भैंस रा गाय तळै अर गाय रा भैंस तळै करतां, धोळां नै काळा करतां अर काळां नै धोळा करतां-करांवतां छेकड़ धोळां मांय धूड़ गेर लेवै पण राज अर खाज रो मजो.....? ओ हो...हो....छोड देवो थे बात ! इस्यै मांय किंयां छुटै राज अर किंयां छुटै खाज ! आपां तो आ ई कैय सकां कै अै दोनूं भागी रै ई हाथ आवै।

अथ हांडी कथा

अथ हांडी कथा


पेट री आग सैंग सूं भूंडी हुवै। आंगळियां माथै गिणिजणजोग देसां नै टाळ देवां तो सैंग रा सैंग देस इण आग सूं लड़ै ! आपणी तो संस्कीरती ई इण ढाळै री ही। धरती निपजती उण साल सगळो नाज कोठ्यारां मांय जा लुकतो अर इंयां काळ-दुकाळ सोरा टिप जांवता। हाल बखत कीं बदळग्यो पण संस्कार कांई सोरा-सा बदळिजै ? आज ई पढेसरी टाबर नौकरी लागै का दूजै किण ई हीलै, बूढियां रै मंूडै सूं मतै ई निसर जावै, 'चलो रैय...हांडीआळो बार तो मूंदिज्यो...!
हांडी मिनख री 'प्राथमिक` जुरत हुवै। हांडीआळो बार मूंदिज्यो अर मिनख धूंसिज्यो। जिंयां किरकेट मांय 'बैट्समैन` सौ रै आंकड़ै नै पार करतां ई धू..आ..धू लाग जावै।
हांडी रा केई रूप हुवै। अळगी अळगी जिग्यां उण रा नांव ई अळगा अळगा हुवै पण मूल बो ई रैवै। ...गोळ पींदो...चौड़ा कानां। कानां माथै चेतै आयी.... अेक कैवत है नीं, हांडी रीसाणी हुय`र आपरा काना ई तो बाळसी। ब्होत अजीब बात है सा ! हांडी उकळ`र आपरा काना ई बाळ सकै.... और कीं नीं कर सकै ? मतलब कै सैंग सूं कमजोर हुवै हांडी ? चलो सा... कमजोर ई समझल्यो ! क्यूंकै पैली बात तो हांडी माटी री हुवै अर दूजी बा हुवै ई गरीब री है। गरीब मतलब छेकड़लो मिनख। छेकड़लो मतलब जमीन सूं जुड़ेड़ो। अबैं... सोचो थे। जमीन री तलास करता करता तो चोखा चोखा अर खांमखां ई आपरी जूण होम करग्या। फलाणो परधानमंतरी ? अरै सा ! बै तो जमीन सूं जुड़ेड़ा मिनख है। फलाणो साहितकार ? बां रो तो कैवणो ई कांई.... इण री जमीन रा जाया-जलम्या है। बां री भासा जमीन सूं उठ्योड़ी है... लोक सूं उठ्योड़ी। अेक अेक सबद सूं माटी री सौरम आवै जाणै। अर अै ? अै फलाणाराम जी है। कनाडा मांय ठाडो बौपार है आं रो। हाल तीजी पीढी चालै पण अजै तांई सालोसाल आंवता रैवै अठै। ब्होत हेत है आंनै अठै री माटी सूं... आपरी माटी सूं।
अबैं बोलो थे ! आ बा ई माटी है जकी सूं हांडी बणै। अबार ई कैय सको थे... कै हांडी कमजोर हुवै ?
खैर... कीं और पड़ताळ करां। हांडी रा केई रूप हुवै। न्यारा न्यारा रूप अर न्यारी न्यारी बरत्यूं। हांडी रै रूप मांय पाणी तो घलै ई घलै... दळियो-खीचड़ी बी रांधीजै। बिंयां कदे कदे पकवानां (गरीबां रा ई) रो ई नम्बर पड़ जावै। लापसी बणै तो हांडी मांय, ढोकळा बणै तो हांडी मांय अर... । खैर.. आगै सरकां ! दूजो रूप है कढावणी रो। दूध उकाळण सारू। दूध बिलोवणै सारू हांडी बिलोवणो हुय जावै। कीं और ठाडी हुय`र बा माट हुय जावै तो छोटी हुंवती हुंवती कुलड़ियो। कुल मिलाय`र बात आ है कै इण कूणै सूं उण कूंणै तांई हांडी ई हांडी दीसै। आखै घर मांय हांडी सूं अळगो कीं नीं हुवै जाणै। .....थारै जची कोनी स्यात ! खैर जाणद्यो, अेक बात बताओ ! मिंदर मांय चोभ री जिग्यां कुणसी हुवै सा ? गरभघर ई नीं...जठै देवळी थरपीजै ? तो मिंदर मांय सैंग सूं अबोट जिग्यां हुयी गरभघर ! अर घर मांय ? थे कैयस्यो रसोई। अर रसोई मांय सगळो काम-धाम हुवै हांडी रो। अबैं बताओ हांडी सूं बेसी कीमती और कांई हुय सकै..।
हां, आजकलै जमानो कीं फुरग्यो लागै। गरीब रै घरां बी माटी री जिग्यां 'स्टील` लेली। हांडी रसोई सूं अलोप हुय`र माची हेटै का बाड़ै मांय गोबर थापणआळी ठौड़ जा बैठी। कांई कर सकां सा ! आजकलै हरेक चीज उतावळी ई 'आऊट डेटेड` हुय जावै। गाभां री दुकान मांय जावां तो हजारूं डिजाइन रो गाभो हुवै भलां ई पण महीनो ई कोनी निसरै कै सैंग रो सैंग 'आऊटडेटेड` ! फलाणो फैसन 'आऊटडेटेड`। फलाणो खिलाड़ी आऊटडेटेड... फलाणी चीज आऊट...। बिच्यारी हांडी रो तो डौळ ई कांई ! अर फेर कद रोपण लागी ही पग... कांई आज री बात है ? दुनियां मांय सैंग सूं जूनी सभ्यता है सिंधु सभ्यता। सिंधु सभ्यता पूरी री पूरी माटी री सभ्यता ही। बठै काळीबंगा मांय जाय`र देखो दखां ! हांडी कांई इतणी ठाडी हुया करै ? आखै गाम नै जीमा देवो भलां ई।
लारलै पांच हजार साल सूं चालतो आवै हो हांडी रो ओ राज। आज तांई इण सूं बेसी लाम्बो राज किण रो ई नीं हुयो। पण इब ? इब तो जाणै सगळां नाक ई रगड़ लीवी। माटी री हांडी ? छी...छी...। 'बैकवर्ड` हो कांई ? वाह सा वाह ! हांडी बपरायां सूं बैकवर्ड हुयीजै। कुण कैवै आ बात... बै ई भण्या गुण्या नीं जका सिंधु सभ्यता री बात करता थकां गुमेज करै अर ...अर हांडी री बात करतां सरम आवै... बैकवर्ड मानीजै ?
इब कुण बतावै बां नै। अरै भला माणसो ! जे थांनै हांडी सूं इतणी ई चिब है तो हांडी री जिग्यां देगचो क्यूं लेय`र आवो (देगचो बी हांडी रै डौळ बरगो हुवै, कांई हुयो जे बो माटी रो कोनी हुवै) ? इस्यो भांडो ल्यावो दखां जकै रै पींदो ऊपर अर मूंडो हेटै हुवै। का फेर हांडी सूं इतणी ई घिरणा है थांनै तो जेठ मांय पाणी स्टील रै बरतन मांय घाल्या करो। जद तो.. 'मां अे ! सुभानआळै घरां सूं कोरी माट लेय`र आयी अेक`।
हांडी माटी री ई हुया करै, काठ री नीं। हांडी बिनां सरै कोनी अर नीं सरै माटी बिनां। घर घर माटी रा चूल्हा अर माटी री ई हांडी। हांडी सूं दूर नां हुवो। माटी सूं दूर हुय जास्यो... अर हळवां हळवां इतियास सूं ई ! अर जे अचाणचक ई किण ई सेंटरियै मंंतरी रै चित्त चढगी तो ओजूं घर घर माटी री हांडी हुय जासी। पछै ले लेईयो दखां छिंटा ?

पूर्ण ार्मा 'पूरण`
प्रा० स्वा० के० रामगढ़
त० नोहर, जिला- हनुमानगढ़
९८२८७६३९५३

रोटी गोळ क्यूं हुवै

रोटी गोळ क्यूं हुवै ?


आपणै साम्ही सुवाल है कै रोटी गोळ ई क्यूं हुवै ? बियां तो कांई है कै उमावड़ां सूं ई धिका देवो भलां ई पण विग्यान रो जुग है अर किण ई समस्या नै समझणै रो ढंगढाळो जे अविग्यानिक हुवै तो आछो कोनी लागै। रोटी गोळ क्यूं हुवै है, सुवाल री पड़ताळ ई विग्यानिक नीत रीत सूं हुवणी चाइजै। इण ढाळै सोचां तो आपां नै अेतिहासिक, आर्थिक अर मनोविग्यानिक जड़ां री पड़ताळ सोधणी पड़सी।

अेतिहासिक कारण : किण ई देस रै लिखतु इतियास सारू पैलीपोत अेक भासा री दरकार हुवै। आज तांई इसी कोई भासा कोनी जकै मांय लिख्योड़ो इतियास का साहित री उमर आंगळियां माथै नीं गिणिज सकै। हां...लोक साहित री उमर री कूंत करणी मुस्कल है। क्यूंकै जद लोक जाम्यो हुयसी, अैन उण रै साथै साथै ई का अेक पांवडो लारै लोक साहित जाम्यो हुयसी, चायै बो गीत-संगीत हुवै चायै वात-कथा। ओ सो कीं जद लिखिजतो कोनी हो। बातां रा गोट गुड़ता अर आगली पीढी मांय जा रूढ़ता। इंयां जबानी साहित अर कीं पछै लिखतु साहित रै थोगै ई बात करां तो जठै जठै आं लोक कथावां मांय रोटी रो जिकर आयो है, बठै बठै रोटी रो डोळ, गोळ ई थरपीजतो रैयो है।
अेक लोक कथा रै ओलावै बातड़ी कीं और साफ कर लेवां दखां - बा बात तो थारी सुण्योड़ी ई हुयसी..? दो मिनकी ही अर अेक बांदरियो। दोनूं मिनकियां नै अेक रोटी लाधी। पांती करण लागी तो लड़ पड़ी। इण बिचाळै इण कथा मांय अेक बांदर आवै। बांदर खांतिलौ। रोटी रा दो टुकड़ा कर्या अर ताकड़ी मांय धर दिया। पण अेक कानी रो पालड़ो झुकग्यो। झुकतै पालड़ै कांनी सूं टुकड़ो तोड़्यो अर खाग्यो। पछै ओजूं तोली पण अबकाळै दूजी ठौड़ पालड़ो झुकग्यो। घणी बातां मांय कांई है, इंयां करतां करतां पूरी रोटी ई बांदरियो चेपग्यो।
इण कथा मांय मिनकियां नै लड़ाईखोरी अर बांदर नै खांतिलौ बताय`र नीत रीत री बातां करीजगी हुयसी भलां ई... पण असल मांय सोध रो विसै ओ है कै रोटी दो बरोबर हिस्सां मांय करीजगी कोनी का करी कोनी ? सीधी सी बात है, बांदर बिच्यारो कर ई कांई सकै हो। रोटी रो डौळ ई इस्यो हो कै बा दो बरोबर हिस्सा मांय कोनी हुय सकी। हाथां घड़्योड़ी रोटी कितणी`क गोळ हुय सकै ही ! आ ई रोटी जे च्यार कूंटआळी हुंवती तो बिच्यारै बांदर रै मूंडै काळख क्यूं मसळीजती ? आ ई हुय सकै ही कै स्यात मिनकी ई आपसरी मांय नीं लड़ती, क्यूंकै रोटी जे चौकूंटी हुंवती तो बिचाळै सूं दोलड़ी कर`र च्यारूं कूंट मिलाई अर दो बरोबर हिस्सा त्यार! पछै लड़ाई किण बात री ? लड़ाई नीं हुंवती तो आ लोककथा ई कोनी हुंवती अर...अर स्यात आज तांई रोटी च्यार कूंट री ई हुंवती......।

आर्थिक कारण : मिनख जद जंगळी सूं समाजी बण्यो तो ओ बीं रै विकास रो सरूआती पांवडो हो। आगै जा`र पआियै री खोज मिनख रै विकास री इण जातरा रो अेक इस्यो पड़ाव हुयग्यो जठै सूं मंजल चडूड़ दीसण लागी। ओ पआियो गोळ हो। विकास रा पांवडा बध्या तो धंधो बध्यो। धंधो बध्यो तो सुंवाज बध्यो अर छेकड़ रिपीयो जाम्यो.........ओ रिपीयो गोळ हो ( अजै तांई गोळ ई है )। कुल मिला`र कैय सकां हां कै कंद-मूळ अर फळ-फूल (अै सगळा ई गोळ हुवै) खावणियो मिनख आपरी आखी विकास जातरा मांय गोळ जिंसां रो सा`रौ ई लियो। गाडी-मोटर हुवै चायै ठाडा-ठाडा कारखानां, पाणी मांय उतरणो हुवै चायै चांद माथै चढणो, ...पआियै, चकरी, गरारी बिना पांवडो ई कोनी पाटै। अर अै सगळा गोळ ई हुवै। मतलब कै आखो विकास ई गोळ हुवै। जद विकास ई गोळ हुवै तो रोटी च्यार कूंटी किंयां हुवै ही... छेकड़ विकास रा पांवडा भरीज्या तो रोटी रै तांण ई नीं.....?

सामाजिक कारण : मिनख सुपनै मांय जीवणियो हुवै है....सक कोनी। कीं कीं 'सोमशर्मा पितृकथा` दांई। कुरळांवती आंतड़ियां री मून आवाज सूं लेय`र आखै बिरमांड री जातरा पूरी कर`र बठै ई आ पूगै। ओ पूरो रो पूरो गोळ गेड़ो छेकड़ पेट री भूख साम्ही ई आय`र पूरो हुवै। इंयां...रोटी रो डौळ स्यात गोळ थरपीज्यो हुयसी। समाजसास्तरीय अध्ययन रै मुजब रोटी नै गोळ ई हुवणो चाइजै हो। मिनख जद कीं जंगळी सूं मिनख बणण लाग्यो अर कबीलै मांय रैवण लाग्यो तो कंद-मूळ अर लळभख री जिग्यां कीं खेती-पाती रो जुगाड़ सरू हुयो। इब बारी आयी रोटी री...। इस्यै मांय रोटी रो डौळ किस्यो`क हुवै ? पण देखां तो कोई खास समस्या कोनी हुयी। कबीलां री पंचायत बैठती अेक गोळ घेरै मांय। पंच आपरी बात कैवण सारू ऊभौ हुंवतो। बैठी पंचायत रै साम्ही गोळ गोळ गेड़ो काट`र कोथ का कै`नाणां मांय आपरो पख मेल`र ओजूं आपरी ठौड़ आ बैठतो। कबीलाई बखत री आ रीत आज ई जिंयां री तिंयां चालती आवै है। संसद हुवै चायै विधानसभा सैंग गोळ ई हुवै। खेल रा मैदान उण बखत मांय ई गोळ हुंवता हा अर आज ई गोळ हुवै। पछै इस्यै समाज नै पोखणआळी रोटी गोळ क्यूं कोनी हुवै।

मनोविग्यानिक कारण : मिनख चायै धापेड़ो हुवै चायै भूखो, बीं री आंख्यां मांय सुपना तो हुवै ई है। सईकां पै`लां पैलीपोत कुण ई राजा आपरी त्यागत बधाई हुयसी तो आखी धरती (जकी गोळ है) नै कब्जै करण रो सुपनो तो पाळ्यो ई हो। सुपनां जद छोळां हुवै तो गोळ हुंवता जावै। अबार इण बखत मांय बूकियां रो धणियाप राखणिया का तंगळियां सूं सरकावणिया देस इण गोळ धरती सूं ऊपर उठ`र चांद-सूरज, बुध-मंगळ सूं ई परै किण ई दूजी दुनियां तांई पूगण रो सुपनो पाळै। दुनिया आ ई गोळ है अर जे कठैई और है तो बा ई गोळ है। चांद, सूरज, बुध, मंगळ सैंग गोळ ई तो है। घणी कांई कैंवां आखी झ्यांन (फगत छेकड़लै मिनख नै छोड़`र) रा सुपनां ई गोळ है। हां...जको गरीब है, भूखो है, बीं रो सुपनो... अब सा...नागी रो किस्यो सिणगार ? पण खैर.. छेकड़लो हुयग्यो तो कांई है...है तो मिनख ई नीं ! आखै दिन हाड गाळतां थकां ई दोनूं बखत दरड़ो कोनी भरीजै। भूखी आंतड़ी कुरळावै पण नींद कोनी आवै। पड़्यो-पड़्यो साम्ही देखबो करै। निजर खेजड़ी री टोगी जा टंगै। इकलंग। अचाणचक ई भभड़क`र निजर तिसळै...अेकर लागै जाणै खेजड़ी माथै रोटी टंगरी हुवै, पण...! मांय ई मांय हांसी आवै अर ऊपर आभै कानीं देखण लागै। गिरदै सूं भर्योड़ो चांद इब खेजड़ी री टोगी सूं कीं ऊंचो सरक आवै। चांद इब रोटी लागै। बो निजरां माथै चढ`र चांद कनै जा पूगै। कनै, कीं और कनै ! छेकड़ चांद...नां-नां... बा ठाडी-सी रोटी बीं रै भीतर उतर आवै अर...।
कैवो बात ! चांद गोळ...दुनियां गोळ... सुपनां गोळ... अर रोटी गोळ....।
बियां जे कठैई जिकर नां करो तो अेक भीतरली बात बताऊं थांनै ! रोटी गोळ तो हुवै पण हुवै गरीब री ई है। जद सूं अमीर खुद नै अमीर मानण लाग्यो, अैन उण दिन सूं ई बो गोळ रोटी सूं पासो देयग्यो। बीं री रोट तीन कूंटआळी का च्यार कूंटी हुंवती गयी। रोटी डबलरोटी मांय बदळीजती बदळीजती पीजा अर बरगर हुंवती गयी।
स्यात थांनै ओ ई ठाह कोनी हुयसी कै गरीब रै गरीब रैवण रो कारण ई गरीब री रोटी रो गोळ हुंवणो है। गरीब बिच्यारो आखी जिनगी रोटी रै चौगड़दै गेड़ा मारतो रैवै। अर दे गेड़ां माथै गेड़ा ओजूं बठै ई आ पूगै.... घाणी रै बळद दांई। गोळ गेड़ां रो कांई पूरो हुवै ! पूरा हुवै सांस...।
अमीर स्याणो निसर्यो। गोळ गेड़ो छोड़तां ई दीठ चकीजी, पछै धंूसीजतां कांई जेज लागै ही। गरीबियो आज ई लाग रैयो है.... दे गेड़ां माथै गेड़ा। हां.. अेक बात और, इंयां बीं रै हरेक गेड़ै पछै रोटी रो आकार कीं छोटो हुंवतो जावै, पण इचरज री बात है कै रैवै गोळ ई है। छेकड़ गेड़ा मारतो मारतो बिच्यारो खुद ई दुनियां सूं गोळ हुय जावै।
खैर.. अेकर ओजूं चेतै करा देवूं जांवतो जांवतो... पण जाणद्यो ! ईं बात रो कठैई जिकर नां कर देईयो... कठैई मरा देवो लाई नै !


पूर्ण ार्मा 'पूरण`
प्रा० स्वा० के० रामगढ़
त० नोहर, जिला- हनुमानगढ़
९८२८७६३९५३

मोड़

मोड़


सेको अैन उण दिन सरू हुयो जद पैली-पै`ल बीं नै लाग्यो कै इब बाजार बदळग्यो है। बात भलां ई इतणी सी`क ई ही पण इयां मै`सूस हुवण सूं अैन पै`लां बीत्योड़ो कोई अेक पल बीं री बाकी बच्योड़ी जिनगी मांय खुसी सूं भर्यो छेकड़लो पल हुंवणो चावै हो।
अैन ओ ई पल हो जकै रै पछै बो चुप चुप अर गम्योड़ो-सो रैवण लाग्यो हो। दुकान मांय हुंवतां थकां ई कोनी हुंवतो-सो ! सै`र रै अैन बिचाळै, जठै हाल ई सै`र रो काळजो धड़कतो, बीं री दुकान ही। रेडिमेड गाभां री छोटी सी दुकान। आखै दिन बो दुकान मांय ई रैंवतो। आपरी साढी तीन नम्बरआळी मोटै फरेम री अेनक नै ऊपर हेटै सरकांवतो बैंवती सड़क नै जोंवतो रैंवतो। बडै झांझरकै ई उठ`र दुकान री बुहारी झाड़ी रो काम हाल ई बो हरमेस री भांत करतो। चौरावै माथै लाग्योड़ी टूंटी सूं बाल्टी भर-भर`र पाणी लांवतो। दुकान री तळी नै धोंवतो-पूंछतो। बारै सड़क माथै पाणी छिड़कतो। अेक बंधी-बंधाई लीक माथै सो कीं बिंयां ई करतो जिंयां लारलै बीस-इक्कीस बरसां सूं करतो आवै हो....का स्यात इण सूं ई बेसी बरसां सूं। जद सूं ई .... जद कै बीं रै होठां माथै रूंआड़ी ई कोनी फूटी ही स्यात !
घरां अेकलो छोरो हो बो। बीं सूं बडी पांच भैणां ही जकी कदेन री ई ब्याहीजी ही। सैंग सूं बडी दो भैणां रो ब्याव तो उण बखत ई हुयग्यो हो जद बो दो तीन साल रो ई हुयसी। बीं रै सावळ सूं चेतै कोनी जद भैणां री बारात आयी ही पण पछली तीनूं भैणां रै ब्याव मांय बो खूब भाज्यो भाज्यो फिर्यो हो। चिन्नो-सो कोई काम हुंवतो तो बापू बीं नै हेलो पाड़ता.... 'जैनू.... देखी दखां....`।
बापू कदेई बीं नै जयनारायण नांव सूं कोनी बतळांवता। खुद बीं नै ई बापू रो 'जैनू` कैवणो आछो लागतो। बीं नै लागतो जाणै इंयां कैंवतां बापू री मीठी-मीठी सौरम ई बीं तांई आयगी हुवै। मां अर भैणां री झोळियां सूं निसर`र बो बापू री रजाई मांय आ बड़तो.... 'म्हैं तो अठै ई बैठस्यूं....`। बापू री रजाई मांय बापू री सौरम ! बीं नै ब्होत आछो लागतो।
आपरै छेकड़ला दिनां मांय बापू रा सामला च्यारूं दांत टूटग्या हा। आदत मुजब बै अबार ई बीं नै जैनू कैय`र बतळांवता। पण 'जै...नू..` कैंवतां थकां जैनू रो 'नू` कठैई बिचाळै ई गम`र रैय जांवतो। बीं नै अटपटो सो लागतो। बापू रै खुल्लै मूंडै कानी केई ताळ देखबो करतो बो।
बापू दुकान जावण री टाळ कोनी करी कदेई। अठै तांई कै आपरै छेकड़लै दिन ई बै दुकान मांय ई हा। हां.. लारलै केई बरसां सूं जयनारायण ई बापू रै काम मांय सा`रो लगावण लाग्यो हो। हांडी बखत इस्कूल री छुट्टी हुयां पछै का कदे कदे पूरै दिन ई।
कदे कदे तो बीं नै दिनुगै पै`ली ई दुकान मांय आवणो पड़तो। दुकान री बुहारी-झाड़ी, धूप-बत्ती सूं लेय`र गिराक नै सामान दिखांवणै अर सामान री 'पैकिंग` करणै तांई रो काम ब्होत सावचेती सूं करतो बो। ...बापू दुकान मांय हुंवता तो ई।
सै`र रै नेड़ै-तेड़ै रा गामां सूं आवणियां गिराकां सूं बापू खूब बतळांवता... 'बेटी रो ब्याव कद है ?` बां री बतळांवण मांय घर-बारै सूं लेय`र धरम-करम री ब्होत सारी बातां हुंवती। गिराक ई बापू साथै ब्होत हेत राखता। बीं नै गादी माथै बैठ्यो देख पूछता...'बेटो है कांई ?` पडूतर मांय बापू री आंख्यां मांय चिलको बध जांवतो अर बां रो हाथ खुदोखुद बीं रै कंधोळै माथै कसीज जांवतो।
आपरै छेकड़लै दिनां मांय बापू री हरेक बात रो नमेड़ अटपटो-सो हुंवतो। बतळांवतां थकां बां री आंख्यां मांय अेक गम्यो-गम्यो सो भाव उतर आंवतो। बै घड़ी घड़ी आपरी मोटै फरेमआळी अेनक नै उतारता अर धोती रै पल्लै सूं पूंछण लागता। इंयां कर`र बै आपरी आंख्यां सूं झबळक आयी खालीपणै री किरचां नै पूंछता हुंवता जाणै। बो बापू रै मूंडै कानी देखबो करतो। बां रो मंूडो खुलो हुंवतो जाणै 'जै...नू..` कैय`र कीं कैवणो चांवता हुवै।
बां दिनां कीं कीं समझण लाग्यो हो बो कै सीधा दुनियादार लागता बापू क्यूं अेकदम ई दरवेस दांई लागण लागता हा।
दुकान रो काम बिंयां तो ठीक-ठाक ई हो पण अेक रै पछै अेक हुंवता गया भैणां रै ब्यावां रा खरचां पछै इतणो पीसो कनै नीं रैयो हो कै बाजार री जुरतां नै पूर्यो जा सकै। बिंयां तो गामां सूं आवणिया गिराक हाल ई बापू कनै आंवता हा पण जी` सोरै रा 'आइटम` नीं लाधता। दुकान सूं खाली हाथ निसरतां कठैई कीं छूट`र रैय जांवतो जाणै। हळकी अर बिनां जुरत री कोई चीज लेय`र बापू रो हेत अर आ-बैठ बणायां राखण सारू कोसिस करता बिच्यारा गिराक।... पण आमदनी तो घटै ई ही।
इस्कूल री पढाई पूरी कर्यां पछै जयनारायण इब कॉलेज जावण लाग्यो हो। अेक दो 'पीरीयड` रै पछै बीं कनै बखत ई बखत हुंवतो इब। इंयां दुकान मांय बीं री हाजरी लगोलग बणी रैंवती। लगैटगै रोज ई दिनुगै पै`लां आवणो पड़तो अर सिंझ्या तांई रैवणो ई। बापू ठाह नीं कांई जुगाड़ मांय लाग्या रैंवता आं दिनां। दुकान सूं गायब हुंवता तो पूरो पूरो दिन निसर जांवतो। बो अेकलो ई दुकान री गादी सूं चिप्यो रैंवतो। खाली हुंवती अलमारियां कानी देखतो का बारै सड़क कानी। बारै सड़क माथै भीड़ मावती ई कोनी। ...भीतर ? खाली खाली दुकान रै भीतर बो हुंवतो.... खाली खाली ई। बैंवती सड़क सूं इंयां ई कदेई कोई गिराक छिंटै दांई उछळ`र दुकान मांय आ बड़तो तो बो फुरती सूं आपरी जिग्यां माथै आ जचतो। इस्या मौका मांय जद कदे ई बापू खुद दुकान मांय हुंवता तो बीं नै कोई घणी अबखाई कोनी हुंवती। बापू आपरै खास अंदाज मांय घुमा-फिरा`र सागी बा ई चीज दिखा देंवता जकी खातर गिराक पै`लां ई नाड़ मार देंवतो भलां ई। इस्यै मांय जे कोई जांण पिछांणआळो गिराक हुंवतो तो बापू रै चासणीआळां सबदां मांय अळूझतो ई अळूझतो। ...पण लगैटगै इब गिराकां नै आइटम घट ई दाय आंवता। कदे कोई 'बाबा सूट` का निक्कर आद दाय आ ई जांवती तो उण रो नम्बर छोटो हुंवतो का कीं ठाडो हुंवतो। 'छब्बीस नम्बर रो दिखाद्यो...` गिराक रै कैयां पछै बो इंयां ई झूठां ई आलमारी मांय हाथ मारतो। ठाडो नम्बर हुंवतो तो उण रो रंग अर डिजाइन सागी कोनी हुंवतो। छेकड़ गिराक खाली हाथ बारै...। गिराक घट्या तो घटता ई गया। अठै तांई कै कदे कदे तो बोवणी तकात ई कोनी हुंवती।
ठीक आं ई दिनां जद बजार सूं बां री दुकान रो गम जांवणो लगैटगै तै ई हुयग्यो हो, बापू अेक इस्यो फैसलो कर्यो कै दुकान ओजूं दीसण लागी।
आं दिनां सै`र भाजणो सरू ई कर्यो हो। अर उण रै भाजता पांवडां नै कीं बेसी 'स्पेस` री दरकार ही। भाजतै सै`र रो मूंडो जिन्नै हो बिन्नै ई बां रो घर हो। भूतियां रो बास। सै`र रै अगूणै पासै कीं कीं अळगो सो लागतो, ढाणी बरगो बास। जठै काची अर अधपाकी ईंटां सूं बणायोड़ा घर, घर कम अर मुरगियां रा दड़बा बेसी लागता। आं खिंड्योड़ा सा दड़बां बिचाळै ई बां रो दड़बो ... मतलब घर ! घर रै साम्ही अर पसवाड़ै दूर तांई खाली जिग्यां पसरी हुंवती, जकी माथै बोरड़ी, कींकर अर खेजड़ी रा दरखतां रै साथै साथै कैर, बुई, खींप अर सीणिंया रा बोझा ई पसर्योड़ा हुंवता। बो भखांवटै ई लोटो लेय`र 'ल्है-ल्है` करता आं बोझां लारै फिरण सारू जांवतो। बावड़ती बरियां दुड़की लगांवतो तो ताजा बायरो बीं री छाती मांय भर आंवतो। सै`र री सड़कां हाल इन्नै कोनी आयी ही। जिन्नै मूंडो करो बिन्नै ई भाज छूटो। इब जद सै`र रा भाजता पग अठै तांई पूग लिया तो साथै साथै सड़कां ई पूगली। देखतां देखतां ई खाली पड़ी जमीनां अड़ाडोट हुयगी।
बापू स्यात भाजतै सै`र री सांसां नै पै`लां ई मै`सूस लियो हो। बां दिनां ई अेक सिंझ्या घरां आंवतां ई बां उतावळी सी पण कीं मर्योड़ी सी आवाज मांय कैयो.. 'आपां किरायै रै घर मांय चालस्यां`।
अबैं जाय`र बीं रै समझ मांय आयी कै बापू सगळै सगळै दिन कठै गम्या रैंवता हा।
घर रै बिकणै सूं जको पीसो हाथ आयो उण सूं दुकान मांय सामान बधायिज्यो। सामान बध्यो तो गिराकी ई ओजूं बधण लागी। सरू सरू मांय घर बेचण रै बापू रै इण फेसलै नै बो सई कोनी मानतो हो। अलबत आपरी निराजी चौड़ै कोनी करी बण पण मन ई मन बापू सारू अेक रीस रो भाव बण्यो रैंवतो। दुकान सूं बावड़`र किरायै रै घरां आंवतो, जको दुकान री पिछोकड़ी गळी मांय हो, तो लागतो जाणै किण ई अणचौबड़ जिग्यां आयग्यो हुवै। रात नै नींद मांय आळ-जंजाळ मांय फंस जांवतो। इण बिचाळै खाली बखत मांय बो दो अेक बरियां आपरै पुराणियै घर कानी ई हुय आयो हो। बठै पैलड़ी भींतां नै हटाय`र नूंवी 'बिल्डिंग` घालिजै ही। खाली पड़ी दूजी जमीनां माथै ई काम चालै हो। रेत अर सिम्मट रै डूंडां बिचाळै बो मोड़ै तांई ऊभौ रैयो.... गम्योड़ो सो। भीतर कठैई अेक डूंड उठ्यो अर देखतां ई देखतां बारै उठता रेत अर सिम्मट रै डूंडां मांय जा रळ्यो। डाफांचूक सो बो बावड़ तो आयो पण पग पूठा पड़ै हा।
दुकान मांय गिराकी बधी तो थिति कीं सुधरण लागी। बापू री खाली खाली आंख्यां मांय इब पैलड़ी सी चिलक बावड़ आयी ही। बीं नै इब लागण लाग्यो, बापू सई बखत मांय सई फैसलो लियो हो। सिंझ्या गल्लै सूं आखै दिन री बिकरी गिणतां थकां बीं रै भीतर इब विरोध अर रीस री जिग्यां बापू सारू आसति रो भाव हुंवतो।
घर री बिकरी रै पीसै सूं अेक काम और कर्यो बापू। लग्यै हाथ बीं रो ब्याव ई कर दियो।
सविता बीं री जिनगी मांय आयी तो खुद रै घर सारू बीं री रही-सई टीस ई जांवती रैयी। साल हुंवतां हुंवतां बो अेक टाबर रो बाप ई बणग्यो। पढाई पकायत ई छूटगी ही। .... हां मन मांय हाल ई अेक उडीक ही कै अबकाळै पढस्यूं। पण इंयां हुयो कोनी कदेई। बापू अेक सिंझ्या सोया तो दिनुगै सूत्या ई रैयग्या। थिर सूत्या बापू कानी बण देख्यो बापू रो मूंडो खुल्लो रैयग्यो हो। बीं नै लाग्यो स्यात बापू कीं कैवणो चावै हा।
केई महीनां पछै मां ई बीं नै छोड`र चाल ब्हीर हुयी तो बो जाणै कतैई अेकलो हुयग्यो। बापू रै चल्यां पछै जुमेवारी रै ओचट भै सूं झिझको खाय`र थम्योड़ा आंसू मां रै मरणै साथै ई सगळा बंधा तोड़ग्या। सारी सारी रात रोंवतो रैयो बो। सविता बीं नै थ्यावस दिरांवती रैंवती पण बो घड़ी घड़ी आपरो सिर हलांवतो रैयो... 'इब किंयां हुयसी....`।
बखत निसर्यां जयनारायण खुद नै ओजूं सम्हाळ लियो। दुकान रो काम ई जिंयां तिंयां चालतो रैयो। दो छोरी ही अर अेक छोरो। तीनूं पढै हा हाल। घर हाल ई किरायै रो हो। हां.. दुकान घरू ही। स्यात आ ई अेक खुसी ही भीतर।
गिराकी घणी तो कोनी ही पण काम-चलाऊ ही। दुकान मांय बिकरी रो पीसो लेय`र बो लुधियाणै जांवतो अर रेडिमेड रो सामान ले आंवतो जको महीनै तांई मोकळो रैंवतो। इण सूं बत्तो नांणौ ई कोनी हो बीं कनै। बापू रै बखत मांय जको कीं पल्लै हो बो बापू अर मां रै औसर मांय लागग्यो। दुकान री आमदनी तो हाथ सूं मूंडै तांई ई ही। रोज कूवो पटो अर रोज पाणी पीवो। अर फेर महीनै तांई घर रो खरचो अर टाबरां री पढाई ई तो पांख पड़ा देवै है ! लुधियाणै जांवती बरियां हरेक गेड़ै बीं रै मन मांय हुंवती कै कीं मूंगा आइटम लेय`र आवूं। गिराकां री जुरतां दिनूंदिन बदळै-बधै ही। सामान रै तोड़ै मांय गिराक खाली हाथ निसरतो तो काळजै मांय डीक सी चालती।
दुकान मांय बड़तां ई गिराक जद 'लेविस` रो कोट का 'कूटोन्स` री पैंट मांगतो तो काळजै री डीक आंख्यां मांय उतर आंवती। पण फेर ई पड़तख मांय बो गिराक नै सस्तै कोट अर पैंट मांय अळूझाणै री कोसिस करतो। आपरै चासणी लपेटड़ा सबदां सूं गिराकां नै पटावतां थकां बीं नै लागतो जाणै बापू बीं रै भीतर उतर आया हुवै। बीं रै लम्बूतरै चेरै माथै कीं कीं भीतर नै सरकती गंज देख`र सविता ई आं दिनां कैवण लागी ही, ' थे तो अैन बापू दांई लागण लाग्या`। सुण`र आंख्यां मांय थम्योड़ो पाणी ढळकण नै हुंवतो.... जाणै साम्ही जोड़ायत नीं कोई गिराक ऊभौ हुवै अर 'मोटिंकार्लो` री 'टी ार्ट` मांगतो हुवै।
लागण नै तो केई दिन पै`लां सूं ई बीं नै इंयां लागण लाग्यो हो कै बीं रै इंयां झाड़-बोझै बारैकर फिर्यां नाको कोनी लागै। दुकान मांय जको कीं हो बो नूंवी मांग मुजब कतैई नीं हो। इन्नै आं दिनां बीं रै दोनूं कानी अर साम्ही री लैण मांय बोदी दुकानां नै फोड़`र नूंवी बिल्डिंगां घलै ही। बीस बीस फुट ऊंची सटरआळी दुकानां कानी देखतां ई आंख्यां मांय चिलको पड़ै इसी। खुलै सटर रै भीतर चम-चम करता सीसां मांय धर्योड़ा रेडिमेड रा 'शोपीस` बैंवती सड़क नै बारै सूं मलोमल मांय खींच ल्यावै।
अछंट जयनारायण नै लाग्यो कै सगळै रा सगळा लोग बां ई दुकानां मांय बड़ रैया हा। बो ई पल ....अैन बो ई पल हो जद ओ सेको बीं रै भीतर जाम्यो। बो भीतर तांई धूज`र रैयग्यो जद बीं नै लाग्यो कै बीं री दड़बै बरगी दुकान मांय इब कोई नीं आयसी। दिनुगै सूं सिंझ्या तांई दुकान री गादी माथै बैठ्यो रैवणियो बो मतलब जयनारायण मतलब आपरै बापू रो 'जैनू` किण ई दिन इंयां ई गादी सूं चिप`र रैय जायसी... अेकलो अर अळगो ! बारै बैंवती सड़क हुयसी पण भीतर सो कीं थम जासी।
भै सूं धूजण लाग्यो बो। बारै सड़क कानी देख्यो। तिसळती भीड़ मांय आपरा जाणकार गिराकां नै पिछाणणो चायो....पण....बण देख्यो सगळी भीड़ कतैई अणचौबड़ ही। आज सूं पै`लां बां नै कदेई कोनी देख्यो हो बण। बो सै`र रै अेक अेक मिनख नै जाणै हो पण ...पण भीड़ मांय सै`र रो अेक ई मिनख कोनी हो। सै`र तो सै`र गामां आंवणिया गिराकां, जकां नै बो बापू रै बखत सूं ई जाणै हो, बैंवती सड़क सूं गायब हा। आ किंया हुयी बटी। सैंग रा सैंग अणजाण ! ठाह नीं कठै सूं आयग्या इतणा सारा अणजाण लोग ! अेक समचै ई ? इण सूं पै`लां कठै हा अै... बीं रै समझ मांय कोनी आयी। घबरावट मांय बीं री सांस फूलण लागी। लाग्यो काळजो फड़क`र बारै निसरसी। बण जोर जोर सूं सांस खींचण री कोसिस करी। इंयां करतां थकां बीं री आंख्यां लट्टू री दांई बारै लटकण नै हुय आयी। धूजतै हाथां बण आपरी अेनक पसवाड़ै हटायी अर आपरो लिलाड़ मसळण लाग्यो। पसेवै रा कतरा हथाळी मांय चिपग्या तो बीं नै लाग्यो बीं री घबरावट और बधगी अर बीं रो काळजो फड़कै चढग्यो। बो धूजण लाग्यो। गै`बरतां बण आपरी हथाळी कानी ओजूं देख्यो। हथाळी री लीक हळवां हळवां गमण लागी। बण आपरै सिर नै झटको दियो अर ओजूं देख्यो...। अबकाळै पूरी हथाळी ई गमगी। हथाळी री जिग्यां खाली ही। बो घड़ी घड़ी हथाळी री खाली जिग्यां कानी देखतो रैयो अर आपरै सिर नै झटकतो रैयो। भै री अेक रीळ आयी अर बीं री रूंआड़ियां री बंधा अेक समचै ई टूटग्या। अर बो पसेवै रै दरियाव मांय डूबतो गयो।
इण घटना नै घट्यां आज चौथो दिन हो। बीं री खतरनाक चुप्पी नै ई आज चौथो दिन हो। सविता सो कीं देखै ही पण जाण`र कोई जिकर कोनी कर्यो बण। आं दिनां मांय दुकान री घटती बिकरी छानी कोनी ही बीं सूं। अबार दूसरो महीनो ई कदेन रो ई टिपग्यो हो पण लुधियाणै जांवण रो जिकर तकात कोनी कर्यो हो जयनारायण। आं नै चिंत्या नीं हुयसी तो किण नै हुयसी, सोच्यो सविता ! पण चौथै दिन ई चालती इण चुप्पी सूं भीतर तांई धूजगी सविता। हुवै नीं हुवै, बात कीं और ई है। तंगी तो बापू रै बखत सूं ई ही पण इंयां तो कोनी हुयो कदेई !
रोजिना री भांत दिनुगै पै`ली दुकान जांवती बरियां बापू री फोटू साम्ही ऊभौ हो जयनारायण ! सविता उण बखत ई सोच लियो हो कै सिंझ्या घरां आयसी जद लाजमी पूछस्यूं।
सिंझ्या जयनारायण घरां आयो तो बीं रै मूंडै कानी देख`र सविता री हिम्मत कोनी हुयी कै कीं पूछ लेवै। मोड़ै तांई उडीकती रैयी...स्यात टाबर सोयां पछै पूछूं दखां कांई बात है ! पण इंयां हुयो कोनी...। नींद कद मांयकर आय`र फिरगी ठाह ई कोनी लाग्यो।
दिनुगै न्हा-धो`र ओजूं बापू री फोटू साम्ही हो जयनारायण। सविता रसोई मांय जांवती जांवती देख्यो, बो फोटू रै साम्ही आंख्यां मीच्यां ऊभौ हो।
कीं ताळ पछै जयनारायण आपरी आंख्यां खोली अर पूठो मुड़ण लाग्यो.... पण छिन-अेक लाग्यो जाणै बापू री फोटू रा होठ हाल्या हा। बो जांवतो जांवतो थमग्यो। सविता हाल रसोई मांय ई ही। केई ताळ पछै बीं रै चेतै आयी, 'स्यात बै हाल तांई गया कोनी` ! बा कमरै रै खुलै बारणै तांई आयी। देख्यो, जयनारायण हाल ई फोटू रै साम्ही ऊभौ है। बण सुण्यो, जयनारायण होठां ई होठां मांय कीं बरड़ावै हो। बिना किण ई खटकै-पटकै बा किवाड़ां री ओट मांय हुयगी अर कान मांड लिया। ..पण सिवाय बरड़ाट रै और कीं कोनी सुणिज्यो। लारलै च्यार दिनां सूं बीं रै भीतर भेळी हुंवती चिंत्या औचट भै मांय बदळगी। बण जोर सूं हेलो पाड़णो चायो...........'पुन्नु... रा बापू....`।
पण तद तांई जयनारायण फोटू रै साम्ही सूं हटग्यो हो। कमरै सूं बारै आयो अर ओसारै मांय किवाड़ री ओट मांय ऊभी सविता कानी अेक निजर देख्यो। होठां माथै मुळक तिसळी अर ....'चालूं...` कैय`र घर रै बारणै सूं पार निसरग्यो।
सविता रै समझ मांय हाल ई कीं कोनी आयो हो। बीं नै कांई ठाह बाप-बेटै बिचाळै कांई बातां हुयी हुयसी ! बा तो फगत बाको पाड़्यां बीं नै बारै जांवती देखती रैयी बस। गळी रै मोड़ माथै जद जयनारायण री पीठ लुकगी तो जिंया सविता नै कीं चेतो हुयो अर बा ई हळवां हळवां मुळकण लागी।


-पूर्ण ार्मा 'पूरण`
प्रा. स्वा. केन्द्र रामगढ़