Thursday, April 1, 2010

विकास बनाम न्यारपणो

विकास बनाम न्यारपणो


दिन दसेक पै`लां म्हे न्यारा हुया अर अेक घर रा तीन घर हुयग्या। जबरी हुयी बटी ! पण घरआळी रो चेळको देख्यां ई जावो थे ! टाबर.....? अेक तो साल पांचेक रो.... बिच्यारै नै ठाह ई कोनी कै हुयो कांई है। दूजी छोरी है, बरस तेरहा चौदहा री। जकी नूंवै आंगणै घाट अर दादीआळै आंगणै बेसी ! लारै बच्यो म्हैं.... लाई ! लोगां रै सुवालां रो उथळो देंवतो देंवतो बेदमाल हुयग्यो। और तो और बो ई जकै सूं कदेई राम रूमी ई कोनी रैयोड़ी, खट पूछ लेवै... 'किंयां न्यारपणो जचा लियो कांई ?` अर लुगाईयां ? ओ..हो...हो, छोड देवो गल्ल ! कुम्हारां रो बास, चंडीगढ मोहल्लो, भूतियां रो टीब्बो.... घणी कांई बतावंू आखै गाम मांय आग लागगी जाणै। मिलै जको ई अेकर पूछ्यां बिना कोनी रैवै। केई तो जाणै आपरी पीड दाबता सा लागै...'निहाल हुयग्यो रैय !` अर लुगाईयां... 'आछो कर्यो देवरा ! म्हारी द्योराणी नै ई कीं सुख हुय जासी !` अबैं बां नै कोई पूछणियो हुवै कै थूं कितणी`क पांगरगी ? पै`लां तो कीं गोतो ई मार लेंवती ही। 'आज तो सिर दुखै, म्हारै सूं खेत कोनी जाइजै।` का फेर 'आज तो म्हारो बरत है.... आज तो सिर धो`स्यूं। सुकरवार है।` कैय दियो तो कैय दियो। कुण पालै ? इण नै ई तो कैवै सीर ! जठै आला-सूका सैंग बळै। कोई न्हावो तो कोई खावो। कठै कुण कांई करै, घणी गिनरत नीं। पण न्यारो तो न्यारो ई हुवै। गाम-गामितरै जावणो तो सेको। घरां सोयसी कुण ! खेत गयोड़ा हुवै तो घरां आयोड़ो बटाऊ सिर मारतो फिरो भलां ई। चाय रो कोपड़ो कोई पाड़ौसी झला देवै तो सावळ नींतर उडीकबो करो। बिंयां`स चाय मायं डोको तो न्यारा हुयोड़ा घरां मांय कोनी ऊभौ हुय सकै। बूढिया तो बिच्यारा हांस्यां बिना कोनी रैवै, 'आ रै खीर रा घसाक `। बां रो खोट ई कांई है। हरमेस ओ ई मानीजतो आयो है कै न्यारो हुंवणियै रै मन मांय लाडू फूटता रैवै कै अबार तो जी करसी जद ई खीर बणा`र खायस्यां। अरै बावळा ! खीर छोड`र चाय ई ढंगसर मिल जावै तो ई चोखी।
बिंयां`स आ कोनी कै न्यारा हुंवणिया धीणौ कोनी राखै। कुणसै नै ई टोक लेवो भलां ई, ' धीणौ क्यांरो है ?` पडूतर हुयसी, 'भैंस रो !` पण जे बांं नै पूछिजै कै खावो हो कांई ? तो पडूतर कोनी लाधसी। अलबत तो डेयरी मांय देयां पछै दूध बचै ई कोनी अर जे कोई घणो ई सुंवाजी अर जाचो हुवै तो बिलोवा-बिलोवी ई कर सकै। पण बिलोवणै रै चक्कर मांय सिंझ्या जको दूध टाबरां नै घालिजै, उण रै कानी कोनी देखिजै। लाल... बम्म ! लीली छिंयां रळ्योड़ो ! पळियो खंड ठरकायो अर वा ! दिनुगै किसी दही हुवै। ढंगसर री लासी रो ई तोड़ो ! लासी मांय बाल्टी भर`र पाणी नीं सरकावै तो पाड़ौसी निराज हुय जावै....'आं रै ई धीणौ देख्यो `! अबैं सगळो बास लासी लेवण नै आवै तो बिच्यारा टाबरां नै दही कठै ? अर चोपड़ ? बो कठै हो ? ' थनै आज चोपड़्यो है पप्पूड़ा... थनै विकासिया आगलै अदीतवार नै तपास्यूं जद... अर..अर !` कांई बतावूं सा ! बाकियां रो नम्बर आंवतां आंवता जे दिन फळांणां पड़ै तो कांई इचरज।
खैर... म्हैं म्हारली बात बतावै हो थांनै। काल रात री ई बात है। दसेक बज्या हुयसी। म्हैं नींद रै बारणै बड़ै-निसरै हो।
'नींद आयगी कांई ?` जोड़ायत ही।
'आं...।` म्हैं नींद रै दुराजै सूं बारै ई ऊभौ हुयग्यो।
'आपणै न्यारो बारणो तो काढल्यो।`
ल्यो करल्यो बात ! न्यारा हुयग्या इण मांय ई कोई सक रैयग्यो ना ? आपरी पोवो अर आपरी खावो। बारणै सूं कांई हंकरावै ही ! पण लुगाई पीदै कुण ?
'घर सीर अर बटोड़ा न्यारा... धिकै कांई ? न्यारा घरां रा तो न्यारा ई बारणा हुवै। `
झूठ हुवै भलां ई पण जोर सूं बोलिजै तो साच सूं बत्तो असर करै। सेवट म्हे आज आपरो न्यारो बारणो काढ ई लियो। इब थारै सूं कांई लुकोवणो है। दिनुगै सूं जी ब्होत उदास है ... भांत भांत री घड़ामंडी चालै अर मांय घिरळमिरळ सी हुय रैयी है। कांई हुयसी ? किंयां हुयसी ? घरां अमूझणी सी आवै। अर बारै ? बारै संको।
दिनुगै दिनुगै ई हरलाल ताऊ आयग्या। फौजी मिनख। हांसै जद खुल`र हांसै। म्हारै साथै तो आछी पटै। आंवतां ई कारो मचा दियो, 'अरै भई ! न्यारो हुयो जको तो आछो... पण कोई न्यांगळ-न्यूंगळ ? सीरो ना सई लापसी ई बणा लेवो।`
घरआळी चाय बणा`र ले आयी। म्हे बैठग्या। म्हैं ताऊ नै भीतरली बात बतादी। ताऊ ठठा`र हांस्या। ' बावळो हुयग्यो रैय मास्टर ! टाबरां नै पढावै न्यारो है। अरै बावळा, न्यारो हुंवणो कांई गाळ है ? थूं तो विकास री बातां कर्या करै। न्यारो हुंवणो तो विकास रो पांवडो है। समाज रो विकास ! समाज बणै परवारां सूं। जठै मिनख फगत जामै ई कोनी, मिनख नै घड़िजै बी है। हम्बै.... साची कैवूं ! ठाडा परवारां मांय हरेक जणै माथै पूरी ख्यांत कोनी करीजै। कुण टाबर पढाई मांय हुंस्यार है, किण मांय किस्यो`क लक्खण है, इण री कूंत रळगडै मांय कोनी हुय सकै। अर ना ई बिस्या मौका ई देयिजै, जिस्या टाबर नै दरकार हुवै।` कीं थम`र ताऊ ओजूं कैवण लाग्या, 'मानां कै अेकल परवारां रा आपरा खोट हुवै है पण आज भाजम भाज रो बखत है जठै दिमाग रा पीसा बंटै। बावळा आपणै परवारां मांय ठाह नीं कितणां विग्यानिक जाम्या बैठ्या है। जे बां माथै सावळ ध्यान देयिजै तो आपां कांई औरां सूं लारै रैयस्यां ? अर आ ई क्यूं ! जद समाज रै विकास री बात करां तो थूं ई बता कै जद मिनख जंगळी हो अर अेक टोळ मांय भेळो रैवणो सरू कर्यो हो तो बठै सूं धकै बधण मांय ओ न्यारपणो काम कोनी आयो ? जे ओ न्यारपणो नीं हुंवतो तो आपणै कनै अळगा-अळगा लाजमा किंयां हुंवता। सिंधु अर नील रै लाजमै री बात तो छोड पण आज रै भारत री कूंत करणै सारू पिच्छम रै लाजमै रो नांव कठै हुंवतो ? ओ तो जुगां जुगां सूं ई चालतो आवै है गूंगा ! इण मांय जी दोरौ करण री कांई बात है ? लोग जे न्यारा ई नीं हुंवता तो गाम बारैकर बाड़ ई हुंवती नीं। इंयां घरां घरां भींत ऊभी करणै री कांई जुरत ही ! पण जुरत ही अर जुरत है। लगोलग है। क्यूंकै आपां नै आगै बधणो है, आगै चालणो है। पूठो नीं जावणो। आगै रो नांव ई विकास है.... अर विकास रो नांव है न्यारो हुंवणो।`
म्हैं बाको पाड़्यां हरलाल ताऊ रै मूंडै कानी देखै हो। ताऊ अेकर म्हारै चेरै कानी ख्यांत्यो अर भळै बोल्या, 'जिंयां जिंयां मिनख बधै, बिंयां बिंयां सेका ई बधता जावै। पछै दो ई आंटा साम्ही रैवै... का तो न्यारा हुवो अर का पछै घरां बधतै जण मांय कट-बढ`र मर जावो। थूं कांई मानै ? न्यारो हुंवणो चाइजै का कट-बढ`र मर जावणो ?`
म्हारै मूंडै सूं उतावळी सी निसरग्यो, ' न्यारो !`
ताऊ तो गया परा पण ताऊआळी बात हाल ई म्हारै जची कोनी। थारै जचगी कांई ?

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