Saturday, April 10, 2010

बिरछ अर आदमी

बिरछ अर आदमी


बिरछ
बिरछ हुवै
आदमी, आदमी
बिरछ
बिरछ ई रैवंणौ चावै
पंण आदमी ?
नां आदमी ई रैवंणौ चावै
नां
बिरछ ई हुवंणौ चावै।


कदै-कदै
मिनख रै मरंणै सूं पैलां ई
मर जावै
मिनखपंणौ
पंण बिरछ
मर्यां पछै ई जींवतौ रैवै
कठै न कठै।


थे
किंण ई
मर्योड़ै मिनख नै
बोलतां देख्यौ है ?
कोनी नीं ?
पंण
थे सुंण सकौ
किंण ई ठूंठ हुयोड़ै बिरछ रै
खरखोदरै सूं आंवती
'चूं..चीं , चूं...चूं...`
री आवाज।


लफंणा मांय
चिंचाट करता चिड़िया
इण डाळी सूं उण डाळी तांई
उडती पांख्यां
खरखोदरां मांय उडीकती आंख्यां
अर अठै तांई कै
मुस्कल सूं ठरड़ीज आई
सांसां नै ई
कीं नां कीं देयां पछै
उबरतौ ई रैवै
उण कंनै बिरछपंणौ।


टाबरपंणै मांय
छादी
रोज सुणांवती
घर साम्ही ऊभै नींम रै
हांसंणै
मुळकंणै
सांस लेवंणै
अर बतळावंणै री बातां
पंण हाल
नां दादी है
नां नींम ई।

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