Sunday, April 25, 2010

अेकलपौ

अेकलपौ


आभै सूं पड़ती
ओळ्यूं री अेक छांट सूं
किंया ठंडो हुवै
उकळती रेत सौ
म्हारो अेकलपौ


रूसेड़ी सी धरती
अैरकेड़ौ सौ
आभौ
कदै-कदै चिलकता
डर्योड़ा सा तारा
अर
च्यांचप अंधारौ
सैंग अेकला है
म्हारली दांई


टाबरपंणै री
कोथळी झड़काय
जुवांनी रौ दग्गड़
चक्यां फिरै आजकलै
म्हारौ अेकलपौ


म्हैं जागूं
पंण
होळै सीक
पसवाड़ौ फोर्यां सूत्यौ है
म्हारै भीतर अेकलपौ

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