Wednesday, March 24, 2010

रोटी गोळ क्यूं हुवै

रोटी गोळ क्यूं हुवै ?


आपणै साम्ही सुवाल है कै रोटी गोळ ई क्यूं हुवै ? बियां तो कांई है कै उमावड़ां सूं ई धिका देवो भलां ई पण विग्यान रो जुग है अर किण ई समस्या नै समझणै रो ढंगढाळो जे अविग्यानिक हुवै तो आछो कोनी लागै। रोटी गोळ क्यूं हुवै है, सुवाल री पड़ताळ ई विग्यानिक नीत रीत सूं हुवणी चाइजै। इण ढाळै सोचां तो आपां नै अेतिहासिक, आर्थिक अर मनोविग्यानिक जड़ां री पड़ताळ सोधणी पड़सी।

अेतिहासिक कारण : किण ई देस रै लिखतु इतियास सारू पैलीपोत अेक भासा री दरकार हुवै। आज तांई इसी कोई भासा कोनी जकै मांय लिख्योड़ो इतियास का साहित री उमर आंगळियां माथै नीं गिणिज सकै। हां...लोक साहित री उमर री कूंत करणी मुस्कल है। क्यूंकै जद लोक जाम्यो हुयसी, अैन उण रै साथै साथै ई का अेक पांवडो लारै लोक साहित जाम्यो हुयसी, चायै बो गीत-संगीत हुवै चायै वात-कथा। ओ सो कीं जद लिखिजतो कोनी हो। बातां रा गोट गुड़ता अर आगली पीढी मांय जा रूढ़ता। इंयां जबानी साहित अर कीं पछै लिखतु साहित रै थोगै ई बात करां तो जठै जठै आं लोक कथावां मांय रोटी रो जिकर आयो है, बठै बठै रोटी रो डोळ, गोळ ई थरपीजतो रैयो है।
अेक लोक कथा रै ओलावै बातड़ी कीं और साफ कर लेवां दखां - बा बात तो थारी सुण्योड़ी ई हुयसी..? दो मिनकी ही अर अेक बांदरियो। दोनूं मिनकियां नै अेक रोटी लाधी। पांती करण लागी तो लड़ पड़ी। इण बिचाळै इण कथा मांय अेक बांदर आवै। बांदर खांतिलौ। रोटी रा दो टुकड़ा कर्या अर ताकड़ी मांय धर दिया। पण अेक कानी रो पालड़ो झुकग्यो। झुकतै पालड़ै कांनी सूं टुकड़ो तोड़्यो अर खाग्यो। पछै ओजूं तोली पण अबकाळै दूजी ठौड़ पालड़ो झुकग्यो। घणी बातां मांय कांई है, इंयां करतां करतां पूरी रोटी ई बांदरियो चेपग्यो।
इण कथा मांय मिनकियां नै लड़ाईखोरी अर बांदर नै खांतिलौ बताय`र नीत रीत री बातां करीजगी हुयसी भलां ई... पण असल मांय सोध रो विसै ओ है कै रोटी दो बरोबर हिस्सां मांय करीजगी कोनी का करी कोनी ? सीधी सी बात है, बांदर बिच्यारो कर ई कांई सकै हो। रोटी रो डौळ ई इस्यो हो कै बा दो बरोबर हिस्सा मांय कोनी हुय सकी। हाथां घड़्योड़ी रोटी कितणी`क गोळ हुय सकै ही ! आ ई रोटी जे च्यार कूंटआळी हुंवती तो बिच्यारै बांदर रै मूंडै काळख क्यूं मसळीजती ? आ ई हुय सकै ही कै स्यात मिनकी ई आपसरी मांय नीं लड़ती, क्यूंकै रोटी जे चौकूंटी हुंवती तो बिचाळै सूं दोलड़ी कर`र च्यारूं कूंट मिलाई अर दो बरोबर हिस्सा त्यार! पछै लड़ाई किण बात री ? लड़ाई नीं हुंवती तो आ लोककथा ई कोनी हुंवती अर...अर स्यात आज तांई रोटी च्यार कूंट री ई हुंवती......।

आर्थिक कारण : मिनख जद जंगळी सूं समाजी बण्यो तो ओ बीं रै विकास रो सरूआती पांवडो हो। आगै जा`र पआियै री खोज मिनख रै विकास री इण जातरा रो अेक इस्यो पड़ाव हुयग्यो जठै सूं मंजल चडूड़ दीसण लागी। ओ पआियो गोळ हो। विकास रा पांवडा बध्या तो धंधो बध्यो। धंधो बध्यो तो सुंवाज बध्यो अर छेकड़ रिपीयो जाम्यो.........ओ रिपीयो गोळ हो ( अजै तांई गोळ ई है )। कुल मिला`र कैय सकां हां कै कंद-मूळ अर फळ-फूल (अै सगळा ई गोळ हुवै) खावणियो मिनख आपरी आखी विकास जातरा मांय गोळ जिंसां रो सा`रौ ई लियो। गाडी-मोटर हुवै चायै ठाडा-ठाडा कारखानां, पाणी मांय उतरणो हुवै चायै चांद माथै चढणो, ...पआियै, चकरी, गरारी बिना पांवडो ई कोनी पाटै। अर अै सगळा गोळ ई हुवै। मतलब कै आखो विकास ई गोळ हुवै। जद विकास ई गोळ हुवै तो रोटी च्यार कूंटी किंयां हुवै ही... छेकड़ विकास रा पांवडा भरीज्या तो रोटी रै तांण ई नीं.....?

सामाजिक कारण : मिनख सुपनै मांय जीवणियो हुवै है....सक कोनी। कीं कीं 'सोमशर्मा पितृकथा` दांई। कुरळांवती आंतड़ियां री मून आवाज सूं लेय`र आखै बिरमांड री जातरा पूरी कर`र बठै ई आ पूगै। ओ पूरो रो पूरो गोळ गेड़ो छेकड़ पेट री भूख साम्ही ई आय`र पूरो हुवै। इंयां...रोटी रो डौळ स्यात गोळ थरपीज्यो हुयसी। समाजसास्तरीय अध्ययन रै मुजब रोटी नै गोळ ई हुवणो चाइजै हो। मिनख जद कीं जंगळी सूं मिनख बणण लाग्यो अर कबीलै मांय रैवण लाग्यो तो कंद-मूळ अर लळभख री जिग्यां कीं खेती-पाती रो जुगाड़ सरू हुयो। इब बारी आयी रोटी री...। इस्यै मांय रोटी रो डौळ किस्यो`क हुवै ? पण देखां तो कोई खास समस्या कोनी हुयी। कबीलां री पंचायत बैठती अेक गोळ घेरै मांय। पंच आपरी बात कैवण सारू ऊभौ हुंवतो। बैठी पंचायत रै साम्ही गोळ गोळ गेड़ो काट`र कोथ का कै`नाणां मांय आपरो पख मेल`र ओजूं आपरी ठौड़ आ बैठतो। कबीलाई बखत री आ रीत आज ई जिंयां री तिंयां चालती आवै है। संसद हुवै चायै विधानसभा सैंग गोळ ई हुवै। खेल रा मैदान उण बखत मांय ई गोळ हुंवता हा अर आज ई गोळ हुवै। पछै इस्यै समाज नै पोखणआळी रोटी गोळ क्यूं कोनी हुवै।

मनोविग्यानिक कारण : मिनख चायै धापेड़ो हुवै चायै भूखो, बीं री आंख्यां मांय सुपना तो हुवै ई है। सईकां पै`लां पैलीपोत कुण ई राजा आपरी त्यागत बधाई हुयसी तो आखी धरती (जकी गोळ है) नै कब्जै करण रो सुपनो तो पाळ्यो ई हो। सुपनां जद छोळां हुवै तो गोळ हुंवता जावै। अबार इण बखत मांय बूकियां रो धणियाप राखणिया का तंगळियां सूं सरकावणिया देस इण गोळ धरती सूं ऊपर उठ`र चांद-सूरज, बुध-मंगळ सूं ई परै किण ई दूजी दुनियां तांई पूगण रो सुपनो पाळै। दुनिया आ ई गोळ है अर जे कठैई और है तो बा ई गोळ है। चांद, सूरज, बुध, मंगळ सैंग गोळ ई तो है। घणी कांई कैंवां आखी झ्यांन (फगत छेकड़लै मिनख नै छोड़`र) रा सुपनां ई गोळ है। हां...जको गरीब है, भूखो है, बीं रो सुपनो... अब सा...नागी रो किस्यो सिणगार ? पण खैर.. छेकड़लो हुयग्यो तो कांई है...है तो मिनख ई नीं ! आखै दिन हाड गाळतां थकां ई दोनूं बखत दरड़ो कोनी भरीजै। भूखी आंतड़ी कुरळावै पण नींद कोनी आवै। पड़्यो-पड़्यो साम्ही देखबो करै। निजर खेजड़ी री टोगी जा टंगै। इकलंग। अचाणचक ई भभड़क`र निजर तिसळै...अेकर लागै जाणै खेजड़ी माथै रोटी टंगरी हुवै, पण...! मांय ई मांय हांसी आवै अर ऊपर आभै कानीं देखण लागै। गिरदै सूं भर्योड़ो चांद इब खेजड़ी री टोगी सूं कीं ऊंचो सरक आवै। चांद इब रोटी लागै। बो निजरां माथै चढ`र चांद कनै जा पूगै। कनै, कीं और कनै ! छेकड़ चांद...नां-नां... बा ठाडी-सी रोटी बीं रै भीतर उतर आवै अर...।
कैवो बात ! चांद गोळ...दुनियां गोळ... सुपनां गोळ... अर रोटी गोळ....।
बियां जे कठैई जिकर नां करो तो अेक भीतरली बात बताऊं थांनै ! रोटी गोळ तो हुवै पण हुवै गरीब री ई है। जद सूं अमीर खुद नै अमीर मानण लाग्यो, अैन उण दिन सूं ई बो गोळ रोटी सूं पासो देयग्यो। बीं री रोट तीन कूंटआळी का च्यार कूंटी हुंवती गयी। रोटी डबलरोटी मांय बदळीजती बदळीजती पीजा अर बरगर हुंवती गयी।
स्यात थांनै ओ ई ठाह कोनी हुयसी कै गरीब रै गरीब रैवण रो कारण ई गरीब री रोटी रो गोळ हुंवणो है। गरीब बिच्यारो आखी जिनगी रोटी रै चौगड़दै गेड़ा मारतो रैवै। अर दे गेड़ां माथै गेड़ा ओजूं बठै ई आ पूगै.... घाणी रै बळद दांई। गोळ गेड़ां रो कांई पूरो हुवै ! पूरा हुवै सांस...।
अमीर स्याणो निसर्यो। गोळ गेड़ो छोड़तां ई दीठ चकीजी, पछै धंूसीजतां कांई जेज लागै ही। गरीबियो आज ई लाग रैयो है.... दे गेड़ां माथै गेड़ा। हां.. अेक बात और, इंयां बीं रै हरेक गेड़ै पछै रोटी रो आकार कीं छोटो हुंवतो जावै, पण इचरज री बात है कै रैवै गोळ ई है। छेकड़ गेड़ा मारतो मारतो बिच्यारो खुद ई दुनियां सूं गोळ हुय जावै।
खैर.. अेकर ओजूं चेतै करा देवूं जांवतो जांवतो... पण जाणद्यो ! ईं बात रो कठैई जिकर नां कर देईयो... कठैई मरा देवो लाई नै !


पूर्ण ार्मा 'पूरण`
प्रा० स्वा० के० रामगढ़
त० नोहर, जिला- हनुमानगढ़
९८२८७६३९५३

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