Monday, April 12, 2010

घर




घर

धड़ाधड़ धुड़ै
घर
तौ ई उण नै लागै
नीं हुवंण सूं बेसी हुवै
हुवंण रौ डर।


मुच्योड़ी सी देगची
थाळी
बाटकिया
अर पेडै सारै दौ ठीया
औ ई है
.....उण रौ घर।


आंगंणौ
नीं बारंणौ
लीपंणौ
नीं सुवांरंणौ
अर नां ई
छात पड़ंणै रौ डर।


वा चीड़ी
रोज ल्यावै घोचा
लांबा-ओछा
जचावै
इन्नै-बिन्नै सरकावै
अर वौ
खुद नै समझावै।


काल
उण अेक घर देख्यौ
ढूंढां मांय ढूंढा
अर ढूंढां माथै ई ढूंढा
जठै बारै बैठ्या अेक डोकरौ अर डोकरी
तावड़ी सेकै हा
नां....नां
स्यात कीं उडीकै हा।

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