Tuesday, April 6, 2010

ओल्यूं रै मिस


म्हारै बारंणै
अर आंगंणै
थूं आवै रोज
पंण म्हनै दीसै फगत
थारा
जांवता खोज।


आखी रात
भीज्यो म्हारौ गात
अर
'टप...टप चोयी छात।


थूं आवै
रोज आवै
अर आपरी चूंच सूं
आडा-टेडा तिणकला जचावै
उडीकूं
कद पूरो हुयसी थारौ आलंणौ
म्हारै भीतर।


म्हारै काळजै मांय
अंधारै रो रूं रूं टूटै
स्यात...
कोई किरंण फूटै।


मेळै जिसी भीड़ मांय ई
म्हनै
आवड़ै कोनी
तद कळमळायनै पूगंणौ चावूं
थारै तांई
पंण
हाथ पूगै कोनी।


'छंण...छंण..छुंण`
संणूं
म्हारै काळजै मांय
थारी पाजेब री
रूंण-झुंण


उकळती दुपारी मांय
म्हारै साथै
तपंणी नीं चावै
तारां छाई रात मांय
रमंणी नीं चावै
तौ बता
किंयां अवेरूं थारा पांवडा
थूं
छिंन-अेक ई
थमंणी नीं चावै।


म्हारै सूं नीं बोलै
अर ओलै-ओलै
हीयौ खोलै
ठुसका भरै
बावळी !
इंयां रूस्यां
कांई सरै ?


हींडतौ देखूं थंनै
ओळ्यूं रै हींडै
तौ
देही रै ठींडै-ठींडै
केई झरंणा फूटै
अर
पोर-पोर सूं
धारोळा छूटै।

१०
ऊमटती आंधी रै लारै
दीसतौ थंनै
मेह
धोबां-धोबां धोंवती
आंख्यां री खेह
देख आज ओजूं ऊमटी है
कळायण,
हुयसी हळाबोळ
बंजड़-झंखड़-बाढ
इंयां रीतौ कोनी जावै
म्हारी आंख्यां रौ असाढ।

११
टीबै री टोगी
चांद नीसरर्यौ है
चौगड़दै च्यानणौ पसरर्यौ है
भाजनै चढूं म्हैं
टोगी माथै
पंण
रेत मांय किंयां तिसळूं
अेकलौ ई।

१२
उडीकूं थंनै
सुपंनां मांय अंवेरूं
थूं उतरै होळै-सी`क
ओळ्यूं रै गातां
परूंसै
मैंदी राच्या हाथां
साची.... उण दिंन
रोटी ब्होत सुवाद हुवै।

१३
ढळती किरत्यां
कोई तेजौ गावै
'टिहू-टिहू` टिटूड़ी
किंण ई नै बुलावै
पूरब मांय भाग पाटती
झिझकै
आभै रै पटपड़ै
पसेवौ चूअ आवै
इस्यै मांय लागै
स्यात... थूं आवै।

१३
सरर-सरर सरकती
रेत रा ठीया
उतरती सिंझ्या रा
कूं-कूं पगलिया
आथूंणी कूंट तांई पसरती
बूढियै नींम री छिंयां
सोचूं... अै सगळा
थारै आवंण रा
अैनांण ई तौ है।

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