Thursday, April 1, 2010

सीर

सीर


बखत फुरै तो मिनख री सोच ई फुरै। अर सोच फुर्यां सो कीं फुरै। छेकड़ समाज री बुणगट है तो मिनख रै तांण ई। पण कदे- कदे ओ बदळाव कीं कीं अजोगतो-सो हुय जावै। अेक बखत हो जद समाज री मूळ धुरी, जको परवार नै मानिजै, सीर रो खास महत्त हो। अेक अेक परवार मांय सौ सूं ई बत्ता लोग अेक साथै रैंवता हा, पण मजाक है ओ अेकठपणो खिंड जावै ! हां... आ हुय सकै है कै इण अेकठपणै का सीर नै बचाणै रै चक्कर मांय परवार री आगळ आगै लारै सरकीजती रैंवती। पण फेर ई सीर जींवतो रैंवतो। असल मांय कांई है कै उण बखत लोगां रो ओ सीर फगत बारै रो सीर ई नीं हो, सीर रो ओ भाव बां रै भीतर ई जींवतो-जागतो रैंवतो हो। पण आज तीन तीन च्यार च्यार पीढीयां रै लोगां रै अेक चौभींतै रै भीतर अेक गाम दांई रैवण री सोचतां ई धड़धड़ी सी आवै। जद कै उण बखत लोग रैय लेंवता हा....अर रैंवता ई कांई ठाठ सूं रैंवता हा सा ! कदेई कोई राड़ कोनी। कठैई कोई बाड़ कोनी। इब तो सा.. बखत कांई फुर्यो पासा ई फुरग्या। सीर री दुसमी भींत घरां बिचाळै कांई लोगां रै मनां बिचाळै हुयगी। जकां रै भीतर-बारै सीर हुंवतो हो अबार बां रै भीतर-बारै सीर री जिग्यां भींत हुवै। जका कदेई सीर नै महतावू मानता हा अबार भींत नै खास मानै।
आ सगळी गांगरत तो ही घर री। सीर फगत घर मांय ई नीं खेती-पाती मांय बी हुंवतो हो अर काम-धंधै मांय ई। पण कांई है कै घर-सीर अर बारै रै सीर री तासीर मांय रात दिन रो फरक हुवै। स्यात इण खातर ई जठै आज इण नूंवै जमानै मांय घर सीर रा सुपनां ई नीं आवै बठै ई बारलै सीर री आंगळियां घी मांय है। हां इतणो लाजमी है कै घर बारलै इण सीर रो नूंवो नांव 'गठबंधन` हुयग्यो है। जूनै बखत रो ओ सीर मरतो-पड़तो छेकड़ आपरी ठौड़ ऊभौ तो रैय ई गयो। नांव रो कांई बखत फुर्यां तो सो कीं फुर जावै ! पण घर बारलै इण सीर मतलब गठबंधन रो टिकाव सीर करणियां री परकीरती अर सुभाव माथै टिक्योड़ो हुवै। नींतर उतावळी ई घर सीर अर बटोड़ा न्यारा हुंवता हुंवता छेकड़ खाता पाटतां जेज कोनी लागै।
बारलै सीर मांय खास बात आ हुवै है कै सीरवाळी जे अेकसा हुवै तो ई फोड़ो अर जे भोळा स्याणां हुवै तो जाबक ई सेको। क्यूंकै दोनूं सीरवाळी जे भोळा हुवै तो ई सीर धिक जावै लाजमी कोनी। घोचांआळा ई तो आप री बांण भुगतावै है। कोई सावळ दिन तोड़ लेवै, आ कद सुहावै आं नै। अर भोळा तो भोळा ई हुवै। ऊंदी खांनै बैठगी तो बैठगी। पछै सीर रो कांई माजणो ! सीरवाळियां मांय जे अेक जणो भोळो अर दूजो चंट हुवै तो ई नाको लाग जावै पकायी कोनी। चंट सीरवाळी नै भोळो थ्या जावै तो और कांई चाइजै ? इस्यै मांय सीर हुंवतो रैवो भलां ई लीरमलीर ! अर दोनूं पासै रा सीरवाळी ई जे चंट हुवै तो सीर चालण रो खानो ई कोनी। पत्थर सूं पत्थर भिड़ै जद तो आग ई पाटै। दो सीरवाळी अर दोनूं ई अेक दूजै री आंख्यां संू काजळ काढण री कोसिस मांय लाग्या रैवै तो सीर नै कठै जिग्यां ?
पण फेर ई सा ! आ दुनिया है। अर दुनिया मांय सो कीं हुय सकै। आंट अड़ै पण आंटा ई काढिजै। सीर री गुळजट पार नीं पड़ी तो लोगां नांव फोर न्हाख्यो। सीर इब गठबंधन हुंवतां ई परवार अर गाम नै छेक`र देस अर आखी दुनियां तांई पसरण री कोसिस मांय है। आजकलै कुणसी ई तारीख रो अखबार चक`र देख लेवो भलां ई। फलाणी टूथपेस्ट री कंपनी फलाणी कंपनी नै आपरा से`र बेच`र बीं मांय रळगी। फलाणी मोबाइल कंपनी धिकड़ी मोबाइल कंपनी साथै रळ`र आपरो नूंवो नांव धर लियो।
घर बारलै सीर मतलब गठबंधन रो ओ पसराव कंपनियां अर बौपार आद मांय ई हुयो हुवै, आ बात कोनी ! आजकलै तो राज ई गठबंधन रो है। इण राज्य री सरकार गठबंधन री। उण राज्य री सरकार गठबंधन री। और तो और सेंटर री सरकार ई गठबंधन री ! जाणै आ पुखता हुयगी कै जे सरकार बणसी तो गठबंधन री मतलब सीर री ई बणसी नींतर बणै ई कोनी।
कितणै इचरज री बात है कै जकै मिनख सईकां री पिछांण सीर-संस्कीरती नै हळवां हळवां बिसार दीवी ही, गमा न्हाखी ही उण नै ई अचाणचक इब इंयां छाती रै चेपली ? मिनख ई कितणो खेलो करै ! अेक बखत हो जद घर-परवार सीर मांय हुंवता पण राज-सरकार अेकल अर न्यारी-निरवाळी। खुदमुख्त्यार। आज जद सरकार सीर (गठबंधन) री हुवै पण घर परवार अेकला-न्यारा अर मां मर्योड़ी गधियै-सा। जद मिनख रै संस्कार मांय सीर रळ्योड़ो हो तद सरकार रळ्योड़ी कोनी हुंवती। इब जद सरकार रळगड हुवै तो घरां सीर कोनी। करै तो कोई कांई करै ? बूढो-ठेरो कोई कैय बैठै का सीर-सांझै रो जिकर ई कर बैठै तो लेणै रा देणां पड़ज्यै। 'मायतां...सीर री तो होळी हुया करै...... जकी नै फूंक्यां ई सरै।` कर लेवो बात ! बिच्यारो बूढियो टुकर-टुकर भलां ई देखबो करो। जीभ ताळवै रै चिप जावै।

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