Tuesday, April 6, 2010

गोडा पुरांण

आं दिनां म्हनै आखो दिन माचै माथै ई काटणो पड़ै। स्यात थांनै ठाह नीं हुयसी, म्हारै डावड़ै पग माथै अेक रतकड़ निसरर्यो है। पण फगत पग कैयां थे सावळ नीं समझ्या हुयसी। हम्बै सा ! समझस्यो बी किंयां ? चिटली आंगळी सूं लेय`र अेडी, पंजो, टंटो, पिंडी, नळी, ढकणी, गोडो, गाबची, साथळ अर ठेठ ढुगरै तांई आखो पग ई तो हुवै। पण सा.. इण लाम्बी-चौड़ी लिस्ट मांय अैन बिचाळै चोभ मांय रैंवतै गोडै रो जिकर करणो चावै हो म्हैं।
गोडै माथै गूमड़ो हुयो तो म्हारा गोडा-सा टूटग्या। नीं नीं गोडा तोड़ दिया नीं। ब्होत फरक हुवै 'गोडा टूटग्या` अर 'गोडा तोड़ दिया` मांय। म्हारी तो किण ई साथै दुसमणी नीं है, पछै कुण तोड़ै हो म्हारै गोडा ! हां.. जकी पैलड़ी बात म्हैं थांनै कैयी बा इंयां ई कैय दीवी ही। बिंयां आं दिनां म्हैं कोई खास काम मांय नीं लाग्योड़ो हो जकै रै नीं सर्यां म्हारा गोडा-सा टूटता। ..खैर ओ अेक न्यारो साच है कै गोडै माथै रतकड़ हुय जावणो गोडा टूटण सूं कितणो कमती-बेसी हुवै। उठो तो गोडां माथै हाथ, बैठो तो गोडां माथै हाथ ! चालो तो गोडां रै तांण अर ऊभा हुवो तो गोडां रै पांण। अर इस्यै मांय रतकड़ न्यारो ! आखै दिन गोडो.. गोडो। गोडै सूं अळगो कीं नीं सूझै।
गोडै री बात चाली है तो म्हनै म्हारी भुआ री ओळ्यूं आवै ! भुआ हाल है तो कोनी। राम नै प्यारी हुयां नै बखत हुयग्यो, पण बां री अेक अेक बात आज ई जींवती है जाणै। भुआ जद ई म्हारै घरां आंवती, आखो घर अेक नूंवै चेळकै सूं भर जांवतो। अुणो-कूणो पळपळाट करण लागतो। पळकै बी क्यूं नीं। साळ-ढूंढां रै गारो लीपीजतो। भींतां रै पुस्ती बंधती। गूदड़ गाभा धोयिजता। मिरच-मसालो पिसीजतो। अर इंयां सगळा कामां साथै साथै चालती बास री काकी-ताईयां री हताई ! दिन तो दिन, रात री इग्यारहा बज जांवती। ओजूं दिन उगतां ई बै सागी समचार ! घरां जाणै मेळो-सो लाग्यो रैंवतो। साल खंड रा लटक्योड़ा काम हफ्तै खंड मांय ई सळट जांवता। अर आं सगळा कामां रै अैन बिचाळै हुंवती भुआ। भुआ... फगत भुआ !
बास री लुगाईयां ई भुआ नै चक्यां राखती.... 'बाई अे थारो तो अठै गोडां तांई रो राज है।`
म्हारी चिन्नी-सै दिमाग मांय आ बात कदेई कोनी सुळझी कै लुगाईयां भुआ री बडाई करती हुंवती का आपरो रोजणो रोंवती हुंवती। पछै म्हैं सोचण ढुकतो कै गोडां तांई ओ राज कड़तू तांई क्यूं नीं हुवै ? कड़तू तो आखै डील रो बिचाळो हुवै। पण समझ मांय जद आयी नीं अर आज ई।
बियां गोडो बी पग रै अैन बिचाळै ई हुवै। सक री गुंजास ई कोनी। अर पग रै ई क्यूं ! आपणी बतळावण, संस्कार अर भासा-संस्कीरती री बी तो चोभ हुवै गोडो। कोनी मानो ? चलो नां मानो ! पण म्हैं कूड़ो कोनी कैवूं। किण ई सजोरै मिनख रै डील कानी अेक सांतरी निजर मार`र आपरै मूंडै सूं मतै ई निसर जावै, 'हाड-गोडां रो धणी है भई.... थू..थू !` तो फेर ? अर गोडां मांस ढळणै री बात कांई म्हारी गोडां घड़्योड़ी है ? कोनी नीं ? झूठ-साच री कूंत गोडां सूं ई हुवै। '... नां भई नां, आ तो गोडां घड़्योड़ी है` अर 'गिरधारियो कद रो हरिस्चंदर है... बीं रा तो गोडा ई गोळ है।` अबैं बोलो सा ! म्हैं गळत कैयी ही कांई ? हुवै नीं भासा री डोर सूं संस्कारां री कूंत ? इंयां तो कांई किण ई रो मंूडो पकड़ीजै ! कैवण नै तो थे आ बी कैय सको हो कै खुद री पिलाणै सारू म्हैं गोडा ई दे दिया। भाई जी आ पिलाणै री बात कोनी समझणै री बात है। चलो थे ई बता देवो, संस्कार कठै सूं आवै ? कोई बाप आपरै घरां माची माथै बैठ`र आपरा टाबरां नै संस्कारां रो पाठ पढा सकै है कांई ? बोल्या कोनीं ?.... खैर, अै सगळी बातां तो आपणै काम करण रै ढंगढाळै, बोलण-बतळाणै सूं ई धकै बधै। बोलण-बतळाणै री बात हुवै तो 'बात-कहाणी री बात हुंवणी लाजमी है। लोक री बात ! हां.. हां कीं लारै मुड़`र देखो दखां। चेतै आयसी दादी-नानी रै मंूडै सूं झरती लाखीणी बातां रो रस। आंधी नानी घरां आयोड़ै आपरै दोहितै रो सिर पळूंस्यो। सिर साथै ऊभा दोनूं गोडा ई। अर पूछ्यो, 'तीनूं भाई ई आयग्या कांई ? दे देवो पडूतर ! किण ई रो सिर गोडै बरगो हुवै तो हुवै ई। अर किण ई रा गोडा सिर बरगा तो कुण कांई करै !
थे सोचता हुयसी कै डील तो और घणो ई ठाडो पड़्यो हो, इंयां गोडा-पुरांण रै लारै पड़णै री कांई जुरत ही ? जुरत ही सा ! जुरत घणी ई है। जमानो बदळीज रैयो है। घणी तेजी सूं। जठै कदेई भाखर हुया करता हा बठै आज फैक्टरियां लागरी है। जठै टीब्बा हुया करता हा अर टीटण जाम्या करती ही, बठै सूं नाज रा बोरा भरीजै। आपणो खावणो-पीवणो, ओढणो-पै`रणो अर अठै तांई कै आखो लाजमो-संस्कार अर साहित तकात रा पासा फुर रैया है। जका सैंग सूं लारै हुंवता हा, बै आज आगै आय`र माकड़ी कूट रैया है। सईकां संू जका खुद पींचिजता आया हा... आज मळाई चाट रैया है। नूंवी पूंन चालै अर नूंवां बूंटा रोपीजै। 'स्त्री चेतना` अर 'दलित विमर्श` री डैरूं बाजै अर आं रै लारै ऊभा पळगोड आपरी तूंद माथै हाथ फेर रैया है। इस्यै मांय संस्कार-लाजमै-साहित री कठै पगी लागै ? जाणै सो कीं ओजूं लिखीजसी। पै`लां लिख्योड़ै अेक अेक सबद रा बचिया कढसी। ओ सो कीं सोच`र म्हारो माथो भूंगग्यो। समाज मांय वरग री थापना हुंवती बरियां सूद्र नै सैंग सूं हेटै मानिज्यो हो। जद रै 'सूद्र` नै आज रो 'दलित` बणाय`र टोगी माथै बिठाइजणै री आफळ हुय रैयी है। तो पछै डील मांय सैंग सूं हेटै मानिजणआळो पग कद तांई भूंडीजतो रैयसी। अर बिंयां ई स्यात समाज रै वरगां नै थरपती बरियां डील नै तो चेतै राखिज्यो ई हुयसी। क्यूं कै सिर सूं बामण, हाथ सूं छत्री, पेट सूं बाणियै अर पग सूं सूद्र रो मेळ मानिज्यो हो। आयगी बात बठै ई ! हरमेस पग री जूती मानिजती लुगाई अर पींचिजतो दलित आज दूजां रै मोडां चढ`र टीकली कमेड़ी हुंवण नै त्यार है तो बिच्यारै पग कांई मोरड़ी रै भाटो मार दियो ? अर गोडो ? गोडो तो अैन पग रै बिचाळै ई हुवै। पड़ी`क नीं कीं पल्लै ? ठीक है फेर ! चालू राखूं गोडा-पुरांण ? कांई कैयो... थकग्या ? चलो खैर... अेक कमरसियल बरेक ले लेवां। जाईयो नां कठै ई। बरेक रै पछै ओजूं मिलस्यां।

1 comment:

  1. गोडा पुरांण जबरी।
    पण, दलित चेतना री बात रो ढंग नीं जच्‍यो।
    बरसूं-बरस दबीचता-रीगदीजता दलित आज ऊभा हुया है तो वां माथै व्‍यंग्‍य री नीं गरब री वांणी निसरणी जरूरी है।
    वां रो हक आपां ई मारयो----- आ सांच है भलां-ई आपां नै दो'री लागै।
    जमीदारां रै घरां रैंवता हाळी मोटी कहाणी कैवै----- बांचों पुरांण!

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